जल संसाधन Hindi

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जल संसाधन Hindi

जल संसाधन PDF पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है।  पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है।

जल संसाधन के स्रोत से आप विभिन्न प्रकार का जल प्राप्त कर सकते हैं। जल के भिन्न – भिन्न प्रकृतिक स्रोतों को जल संसाधन के रूप में जाना जाता है । यह संसाधन प्रकृतिक व अप्रकृतिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का 75% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल 25% ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है।

जल संसाधन के प्रमुख स्रोत क्या है

देश के जल संसाधनों को नदियों और नहरों, जलाशयों, कुंडों और तलाबों, आर्द्र भूमि और चापाकार झीलों तथा शुष्क पड़ते जलस्रोतों और खारे पानी के रुप में वर्गीकृत किया जा सकता है। नदियों और नहरों के अलावा बाकी के जल स्रोतों का कुल क्षेत्र 7 मिलियन हेक्टेयर है। नदियों और नहरों की कुल 31.2 हजार किलोमीटर लंबाई के साथ इस संबंध में उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है जो देश की नदियों और नहरों की कुल लंबाई का 17 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश के बाद जम्मू-कश्मीर और मध्य प्रदेश का स्थान आता है। देश में पाए जाने वाले शेष जल स्रोतों में कुंडों और तालाबों का जल क्षेत्र सर्वाधिक है (2.9 मिलियन हेक्टेयर) इसके बाद जलाशयों (2.1 मिलियन हेक्टेयर) का स्थान है।

अधिकांश कुंड और तालाब क्षेत्र आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के दक्षिण राज्यों में हैं। इसे पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के साथ जोड़ने पर ये कुंडों और तालाबों के कुल क्षेत्र का 62 प्रतिशत हिस्सा बनता है। जहां तक जलाशयों का प्रश्न है तो आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जलाशयों का बड़ा हिस्सा है। उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और असम में आर्द्र भूमि, चापाकार झीलों और शुष्क पड़ते जलस्रोतों का 77 प्रतिशत से भी अधिक भाग है। उड़ीसा में खारे पानी का कुल जलक्षेत्र सर्वाधिक है इसके बाद गुजरात, केरल और पश्चिम बंगाल का स्थान है। इस प्रकार देश के पांच राज्यों- उडीसा, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में जल संसाधन का कुल क्षेत्र असमान रुप से वितरित है जो देश के जल स्रोतों का आधे से अधिक हिस्सा है।

जल संसाधन के उपयोग

जल एवं मानव का गहरा एवं व्यापक सम्बन्ध है। मनुष्य जल को विभिन्न कार्यों में प्रयोग करता है। जैसे इमारतों, नहरों, घाटी, पुलों, जलघरों, जलकुंडों, नालियों एवं शक्तिघरों आदि के निर्माण में। जल का अन्य उपयोग खाना पकाने, सफाई करने, गर्म पदार्थ को ठंडा करने, वाष्प शक्ति, परिवहन, सिंचाई व मत्स्यपालन आदि कार्यों के लिये किया जाता है।

  1. सिंचाई : बेसिन में जल संसाधन का कुल उपलब्ध जल राशि का 44 प्रतिशत सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त होता है। बेसिन में 41,165 लाख घनमीटर सतही जल एवं 11,132 .93 लाख घन मीटर भूगर्भजल सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त होता है।
  2. औद्योगिक कार्य : औद्योगिक कारखानों के संचालन के लिये जल की खपत होती है। इंजनों, रासायनिक क्रियाओं के लिये, वस्त्र उद्योग में धुलाई, रंगाई-छपाई के लिये, लौह इस्पात उद्योगों में धातु को ठंडा करने के लिये, कोयला उद्योग में कोक को धोने के लिये, रसायन उद्योग में क्षारों और अम्लों के निर्माण तथा चमड़ा उद्योगों में भी अधिक मात्रा में शुद्ध जल का प्रयोग होता है।
  3. शक्ति संसाधन के रूप में जल का उपयोग : ऊपरी महानदी बेसिन के दो वृह्द जलाशय परियोजना है। इनमें (1) रविशंकर सागर परियोजना (गंगरेल) एवं (2) हसदेव बांगो परियोजना कोरबा (बिलासपुर) है। यहाँ शक्ति के उत्पादन में जल का उपयोग हो रहा है। बेसिन में कोयला से तापीय विद्युत शक्ति गृह केंद्र कोरबा में है। वर्तमान में औद्योगिक कारखानों के लिये, मशीनों को चलाने के लिये, धातु को गलाने एवं परिवहन के साधनों (रेलगाड़ियों आदि) में जल विद्युत शक्ति का प्रयोग होता है। यह सस्ता शक्ति उत्पादन होता है।
  4. नौ-परिवहन : जल संसाधन का उपयोग मनोरंजन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्षा के दिनों में नदियों में नौका विहार आने जाने के लिये एवं मनोरंजन के लिये होता है। महानदी के तट स्थित स्थानों में यह सुविधा उपलब्ध है। रविशंकर सागर जलाशय हसदेव-बांगो जलाशय एवं दुधावा जलाशय में मत्स्य पालन के लिये एवं मनोरंजन के लिये नौ परिवहन का उपयोग किया जाता है।
  5. मत्स्य पालन : मत्स्य पालन जलसंसाधन संसाधन विकास का महत्त्वपूर्ण पहलू है। बेसिन में उपलब्ध जल संसाधन क्षेत्रों में 1,71,228.45 हेक्टेयर में 1,29,040.86 टन मत्स्योत्पादन होता है।

भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन

  • जल संसाधनों के प्रबंध से अर्थ है- ‘‘ऐसा कार्यक्रम बनाना जिससे किसी जल श्रोत या जलाशय को क्षति पहुँचाये बिना विभिन्न उपयोगों के लिए अच्छे किस्म के जल की पर्याप्त पूर्ति हो सके।’’ जल संरक्षण के लिए इन बातों को ध्यान में रखने का प्रयास करना चाहिए –
  • जल प्रबन्धन के अन्तर्गत भूमिगत जलाशय का पुनर्भरण और आवश्यकता से अधिक जल वाले क्षेत्रों से अभाव वाले क्षेत्रों की ओर जल की आपूर्ति करना है।
  • भूमिगत जल का पुनर्भरण जल प्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है। पर्वतों और पहाड़ों पर जल विभाजक वनस्पति से ढंके होते हैं। जल विभाजक की घास – फूस से ढंकी मृदा से वर्षा का जल अच्छी तरह से अन्दर प्रविष्ट हो जाता है, यहाँ से यह जल जलभर में पहँच जाता है।
  • नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बरसाती पानी, इस्तेमाल किया हुआ पानी या घरेलू नालियों का पानी, गड्ढ़ों या किसी अन्य प्रकार के गड्ढ़ों में पहुँच जाता है। बाढ़ का पानी गहरे गड्ढ़ों के माध्यम से जलभर में पहुँच जाता है या छोटे – छोटे गड्ढ़ों से खेतों में फैल जाता है।
  • घरेलू और नगरीय अपशिष्ट जल के समुचित उपचार से औद्योगिक और कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त जल प्राप्त हो सकता है। अपशिष्ट जल के उपचार से प्रदूषकों, हानिकारक जीवाणुओं और विषाक्त तत्वों को हटाया जा सकता है।
  • समुद्री जल का विलवणीकरण किया जाये। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से समुद्रों के लवणीय जल का आसवान किया जा सकता है। जिससें अच्छी किस्म का अलवणीय व स्वच्छ जल प्राप्त हो सकता है। समुद्र जल के विलवणीकरण की इस विधि से जिससे पानी से लवणों को दूर किया जाता है, का इस्तेमाल हमारे देश में कुछ स्थानों जैसे गुजरात में भावनगर और राजस्थान में चुरू में किया जा रहा है।
  • जल के अति उपयोग को कम किया जाये। जल के अति उपयोग को कम करना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि आवश्यकता से अधिक जल का इस्तेमाल बहुमूल्य और अपर्याप्त संसाधन की ऐसी बर्बादी है जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता है। हमारे देश में नलों से पानी रिसने के कारण और नलकर्म की खराबी की वजह से बहुत से जल की बर्बादी होती है। इसी प्रकार अत्यधिक सिंचाई की रोकथाम भी जरूरी है।
  • सामान्य प्रवाह से अधिक जल और बाढ़ का पानी उन क्षेत्रों की ओर ले जाया जा सकता है जहाँ इसका अभाव है, इससे न केवल बाढ़ द्वारा नुकसान होने की सम्भावना समाप्त हो जावेगी, बल्कि अभावग्रस्त क्षेत्रों को भी लाभ पहुँचेगा।

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