पूस की रात कहानी का सारांश (Poos Ki Raat Ki Kahani Ka Saransh)
पूस की रात कहानी का नायक हल्कू मामूली किसान हैं। उसके पास थोड़ी-सी ज़मीन है, जिस पर खेती करके वह गुज़ारा करता है लेकिन खेती से जो आय होती है। वह ऋण चुकाने में निकल जाती है। सर्दियों में कंबल खरीदने के लिए उसने मजूरी करके बड़ी मुश्किल से तीन रुपये इकट्ठे किये हैं। इस कहानी से हमे भूमि के प्रति किसान की यह उपराम दृष्टि जीवन की जिस अदृश्य दुर्घटना का परिणाम है,प्रेमचंद हमें उस पर सोचने को बाध्य करते हैं। सामाजिक विस्थापन की यह स्थिति समकालीन जीवन का विकट प्रकरण प्रस्तुत करती है।
पूस कीरात’ की मूल समस्या गरीबी की है, बाकी समस्याएँ गरीबी के दुष्चक्र से जुड़ कर ही आई हैं। जो किसान राष्ट्र के पूरे सामाजिक जीवन का आधार है, उसके पास इतनी ताकत भी नहीं है कि ‘पूस की रात’ की कड़कती सर्दी से बचने के लिए एक कंबल खरीद सके। इस कहानी का मुख्य पात्र गरीब हल्कू पूस की एक रात एक मोटी चादर के सहारे खेत की रखवाली कर रहा है, आग जलाकर तापता है आग से मन व शरीर को सुकून देने वाली गर्माहट इतनी अच्छी लगती है कि वहीं सो जाता है, जंगली पशु लहलहाती फसल चर के खत्म कर देते हैं और वह सोया ही रह जाता है।
पूस की रात कहानी का सारांश (Poos Ki Raat Ki Kahani Ka Saransh Likhiye)
पूस की रात’ कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित है, इस कहानी का नायक मामूली किसान हैं । उसके पास थोड़ी – सी जमीन है, जिस पर खेती करके वह गुजारा करता लेकिन खेती से जो आय होती है, वह ऋण चुकाने में निकल जाती है सर्दियों में कंबल खरी के लिए उसने मजूरी करके बड़ी मुश्किल से तीन रूपये इकट्ठे किये हैं, लेकिन वह तीन रूपये भी महाजन ले जाता है, उसकी पत्नी मुन्नी इसका बहुत विरोध करती है । किंतु वह भी अंत में लाचार हो जाती है । हल्कू अपनी फसल की देखभाल के लिए खेत पर जाता है, उसके साथ उसका पालतु कुत्ता जबरा है, वही अंधकार और अकेलेपन में उसका साथी है । पौष का महीना है, ठंडी हवा बह, रही है, हल्कू के पास चादर के अलावा औढ़ने को कुछ नहीं है । वह कुत्ते के साथ मन बहलाने की कोशिश करता है, किंतु ठंड से मुक्ति नहीं मिलती, तब वह पास के आम के बगीचे से पत्तियाँ इकट्ठी कर अलाव जलाता है । अलाव की आग से उसका शरीर गरमा जाता है, और उसे राहत मिलती है । आग बुझ जाने पर भी शरीर की गरमाहट से वह चादर ओढ़े बैठा रहता है, उधर खेत में नीलगायें घुस जाती है ।
जबरा उनकी आहट से सावधान हो जाता है वह उन पर भुंकता है । हल्कू को भी लगता है कि खेत में नीलगायें घुस आई हैं लेकिन वह बैठा रहता है, नीलगायें खेत को चरने लगती हैं, तब भी हल्कू नहीं उठता । वह अपने मन को झूठी दिलासा देते हए सोचता है कि जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता है, एक बार उठता भी हैं, दो – तीन कदम चलता है, लेकिन ठंड के तेज झोंके के कारण वह फिर अलाव के पास बैठ जाता है । आखिरकार नीलगायें पूरे खेत को नष्ट कर देती हैं । सुबह उसकी पत्नी उसे जगाती है और बताती है कि सारी फसल नष्ट हो गयी है । वह चिंतित होकर यह भी कहती है कि ‘ अब मजदूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी, इस पर हल्कू प्रसन्न होकर कहता है कि ‘रात को ठंड में यहाँ, सोना तो न पड़ेगा ।
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