हनुमान चालीसा संकट मोचन बजरंग बाण Hindi PDF
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हनुमान चालीसा भगवान हनुमान जी की स्तुति में एक हिंदू भक्ति भजन है। यह तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया था, और रामचरितमानस के अलावा उनका सबसे प्रसिद्ध पाठ है। अवधी के अलावा, हनुमान चालीसा संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, तमिल और गुजराती सहित विभिन्न भाषाओं में भी उपलब्ध है। हनुमान चालीसा का जाप करके, भगवान राम का आशीर्वाद भी लिया जा सकता है, जो हनुमान को अपना सबसे करीबी दोस्त मानते हैं । जो हनुमान चालीसा गाता है वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है क्योंकि भगवान हनुमान उच्च विद्वान हैं। चालीस श्लोकों का जाप करके भगवान हनुमान की भलाई को आत्मसात किया जा सकता है।
हनुमान चालीसा में 40 श्लोक हैं (शुरुआत में और अंत में दोहे को छोड़कर)। वैसे तो शास्त्रों में हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए नियम का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार हनुमान चालीसा को मंगलवार या शनिवार के दिन शुरू करना चाहिए और अगले 40 दिन तक इसका नियमित पाठ करना चाहिए। यह कार्य सुबह सूर्योदय के पूर्व यानि कि सुबह 4 बजे शुरू करना होता है।
हनुमान चालीसा संकट मोचन बजरंग बाण पीडीएफ़ | Hanuman Chalisa Sankat Mochan Bajrang Baan Lyrics
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरन सरोज रज,निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउं रघुबर विमल जसु,जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै,सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी।कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुवेसा।कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै।काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन।तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा।विकट रुप धरि लंक जरावा॥
भीम रुप धरि असुर संहारे।रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिकपाल जहां ते।कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना।लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट ते हनुमान छुड़ावै।मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के तुम रखवारे।असुर निकन्दन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता।अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई।कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो शत बार पाठ कर सोई।छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित,ह्रदय बसहु सुर भूप॥
संकट मोचन | Sankat Mochan Lyrics in Hindi
बाल समय रवि भक्षि लियोतब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग कोयह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनतीतब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥
बालि की त्रास कपीस बसैगिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियोतब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभुसो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥
अंगद के सँग लेन गये सियखोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जुबिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबैतब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥
रावन त्रास दई सिय कोसब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभुजाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सुदै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥
बान लग्यो उर लछिमन केतब प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबैगिरि द्रोन सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दईतब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥
रावन जुद्ध अजान कियोतब नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दलमोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जुबंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥
बंधु समेत जबै अहिरावनलै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सोंबलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब हीअहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥
काज कियो बड़ देवन के तुमबीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब कोजो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभुजो कुछ संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग मेंकपि संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन,जय जय कपि सूर॥
बजरंग बाण | Bajrang Baan Lyrics in Hindi
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते,बिनय करै सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी।सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै।आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा।सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका।मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा।अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा।लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई।जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता।आतुर होइ दु:ख करहुं निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर।सुर समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले।बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो।महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो।बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा।ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके।रामदूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा।दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा।नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं।तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाय परौं कर जोरि मनावों।यह अवसर अब केहि गोहरावों॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता।शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक।राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की।राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो।ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा।सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥
चरण शरण करि जोरि मनावों।यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई।पांय परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता।ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल।ॐ सं सं सहम पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो।सुमिरत होय आनन्द हमारो॥
यहि बजरंग बाण जेहि मारो।ताहि कहो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की।हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै।तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥
धूप देय अरु जपै हमेशा।ताके तन नहिं रहे कलेशा॥
॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै,सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
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