दुर्गा आरती – Durga Mata Aarti Hindi PDF

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दुर्गा आरती – Durga Mata Aarti - Summary

दुर्गा आरती हिंदू धर्म में माता दुर्गा की उपासना का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ गाया जाता है ताकि देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त हो सके। आरती गाने से वातावरण पवित्र होता है और साधक के मन, तन और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवरात्रि के दिनों में दुर्गा आरती का विशेष महत्व होता है, लेकिन इसे सामान्य दिनों में भी किया जा सकता है।

माना जाता है कि दुर्गा आरती करने से भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। यह आरती माँ दुर्गा की शक्ति, करुणा और रक्षा की भावना को व्यक्त करती है। परिवार और समाज की भलाई के लिए भी इसे गाया जाता है, जिससे घर में मंगल और शांति बनी रहती है।

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दुर्गा आरती का महत्व

दुर्गा मां की आरती करते समय पूजा की थाल में कपूर या गाय के घी का दीपक जलाएं। जब आप मां की आरती करें तो ढोल या मृदंग जरूर बजाएं। इसके साथ ही आरती के साथ शंख और घंटी बजाने से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। ऐसी ध्वनि से हमारे घर में सकारात्मकता बनी रहती है।

दुर्गा आरती – Durga Mata Aarti Lyrics

ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, मैया जी को सदा मनावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, निर्मल से दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गलमाला, लाल कुसुम गलमाला, कण्ठन पर साजै ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी ।
सुर नर मुनिजन सेवत, सुर नर मुनिजन ध्यावत, तिनके दुखहारी ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, मधुर विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

चण्ड मुण्ड संघारे, शोणित बीज हरे ।
मधुकैटभ दोउ मारे, मधुकैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, चारों वेद बखानी, तुम शिव पटरानी ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरू ।
बाजत ताल मृदंगा, बाजत ढोल मृदंगा, अरु बाजत डमरू ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता ।
भक्तन की दुख हरता, संतन की दुख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, मनइच्छा फल पावत, सेवत नर नारी ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत, धोळा गिरी पर राजत, कोटि रतन ज्योति ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावै, मैया प्रेम सहित गावें ।
कहत शिवानन्द स्वामी, रटत हरिहर स्वामी, मनवांछित फल पावै ।।

ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, मैया जी को सदा मनावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।।
ॐ जय अम्बे गौरी ।

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