चरक संहिता मराठी Marathi

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चरक संहिता मराठी Marathi

चरक संहिता या आयुर्वेदीय ग्रंथाचे संस्करण चरकाने केले. चरक संहितेचे नाव जरी चरक संहिता असले, तरी तीन विविध व्यक्तींनी त्याचे संपादन केले आहे. अग्निवेश या व्यक्तीने तिचे प्रथम संपादन केले म्हणून त्यास अग्निवेश संहिता असे देखील म्हटले जाते. चरक हा चरक संहितेचा दुसरा संपादक आहे.

ब्रह्मदेवाने प्रजापतिंना आयुर्वेद शिकवला. प्रजापतिने तो अश्विनीकुमारांना शिकवला. त्यांनी ते ज्ञान इंद्राला दिले. इंद्राने आयुर्वेद भारद्वाज ऋषींना शिकवला. त्यांनी तो पुनर्वसू ऋषी आणिअत्रि ऋषींना शिकवला. या दोन ऋषींनी तो आपल्या सहा शिष्यांना शिकवला. अग्निवेश ऋषी, भेद, जतुकर्ण, पराशर, हरित आणि क्षारपापाणि. यात अग्निवेशांनी त्याची संहिता लिहून काढली. चरकाने हीच संहिता संस्कारित केली. म्हणून चरक संहितेत पहिल्या अध्यायाच्या अंती म्हंटले आहे, ‘इत्य अग्निवेशकृते तन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृते सूत्रस्थाने।

चरक संहिता मराठी – ग्रन्थ १६ अध्यायो मे विभक्त है

  • १ प्रथम अध्याय – इसके अन्तर्गत वातव्याधि निदान लक्षण आवरण, चिकित्सा के सामान्य सिद्धान्त, चिकित्सासूत्र, सामान्य चिकित्सा, विशिष्ट वातरोगो के लक्षण और विशिष्ट चिकित्सा का विस्तार से वर्णन किया गया है ।
  • २ द्वितीय अध्याय – इसमे स्थौल्य निदान, दोष दूष्य आदि चिकित्सा सूत्र और चिकित्सा का वर्णन है। कारोग का सर्वाङ्ग वर्णन तथा रिकेट्स, ऑस्टियोमैलेसिया, बेरी-बेरी और पेलाग्रा के निदान, लक्षण एव चिकित्मा का वर्णन और कुपोपणजन्य विकारों की रोकथाम का वर्णन किया गया है ।
  • ३ तृतीय अध्याय – इसमे प्रमुख अन्त स्रावी ग्रन्थियो के रोगो के निदान, लक्षण तथा चिकित्मा का वर्णन किया गया है । जैसे-चुल्लिका ग्रन्थि, उपचुल्लिका, उपवृक्क, थाइमस, पोषणिका, अग्न्याशय, वीजग्रन्थि, अन्त फल और अपरा का वर्णन है ।
  • ४ चतुर्थ अध्याय– इसमे आनुवशिक रोग, पर्यावरण, देश-काल-जल वायु, पर्यावरण परिवर्तनजन्य रोग, अशुधात और यात्राजन्य विकारो का वर्णन है ।
  • ५ पंचम अध्याय-पान-विपासना, भागे धातुजन्य विषाक्तता, पारद-नाग-पद में ओपनाको गामान्य चिकित्सा का उपेन है।
  • ६ चष्ठ अध्याय – उसने दशजनित विकार और उनका प्रतिकार बाजार आदि, मदर और उपचार, निदण, अलकंविष, विषजन्तु दंग, लूना, भूषा, मानपदी आदि तथा दक्षिण और चिकित्सा का वर्णन किया गया है ।
  • ७ सप्तम अध्याय – उनमे व्याधिक्षमिस, मीरम चिनिया, लमीका रोग, अनूजंठा एवं चिकित और उपचारों का वर्णन है ।
  • ८ अष्टम अध्याय – इसके क्षण तथा उनको चिकित्सा का वर्णन है ।
  • ९. नवम अध्याय – इसमे मन का निरूपण किया गया है ।
  • १० बाम अध्याय – इसमे मनोविज्ञान की उपादेयता, मानस रोगो का निदान और उनके लक्षणों का वर्णन है ।
  • ११ एकादश अध्याय – इसमे मानमरोगो का चिकित्सासूत्र एवं उन्माद रोग विस्तारपूर्णक वर्णित है ।
  • १२ द्वादश अध्याय – उसमे अपस्मार, अतत्वाभिनिवेण, मनोविक्षिप्ति ( Psychosis), अव्यवस्थितचित्तता ( Schizophrenia), विपाद (Depression) भ्रम ( Illusion), विश्रम ( Hallucination), सविभ्रम ( Paranoia ), व्यामोह ( Delusion ), मन श्रान्ति ( Neures thenia ) और मनोग्रन्थि – इन लक्षण और उपचार का वर्णन किया गया है ।
  • १३ त्रयोदश अध्याय – इसमे आत्यधिक चिकित्सा की परिभाषा, उसके स्वरूप, प्रकार एवं सामान्य सिद्धान्त का वर्णन है । तरल-वैद्युत्-अम्ल-क्षार के असन्तुलनजन्य विकारो तथा दग्ध और रक्तस्राव के विविध स्वरूपणे का सोपचार वर्णन है ।
  • १४. चतुर्दश अध्याय – इसमे तीव्र उदरशूल, अन्नद्रवशूल, परिणामशूल, आनाह, उदावर्त, तीव्र श्वासकाठिन्य और वृक्कशूल के निदान लक्षण चिकित्सा का वर्णन है ।
  • १५ पश्चदश अध्याय – इसमे मूत्रावरोध अन्त्रावरोध, हच्छल और मूर्च्छा का सविस्तर वर्णन किया गया है । I
  • १६. षोडश अध्याय – इसमे मधुमेहजन्य उपद्रव यथा – मधुमयताधिक्य एवं उपमधुमयता, उदर्याकलाशोथ, तीव्रज्वर, औषधप्रतिक्रिया एव विपाक्तता का वर्णन किया गया है ।

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