बृहस्पति व्रत कथा (Brihaspati Vrat Katha & Pooja Vidhi) Hindi

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बृहस्पति व्रत कथा (Brihaspati Vrat Katha & Pooja Vidhi) in Hindi

हिन्दू धर्म में हर दिन किसी न किसी भगवान की पूजा की जाती है, इसमें गुरुवार का व्रत बड़ा ही फलदायी माना जाता है। बृहस्पति के दिन जगतपालक श्री हरि विष्णुजी की पूजा का विधान है। कई लोग बृहस्पतिदेव और केले के पेड़ की भी पूजा करते हैं। बृहस्पतिदेव को बुद्धि का कारक माना जाता है। केले के पेड़ को हिन्दू धर्मानुसार बेहद पवित्र माना जाता है।

बृहस्पति व्रत कथा भगवान विष्णु को समर्पित है। बृहस्पति देव को धन, बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है। बृहस्पति देव की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है और परिवार में सुख-शांति रहती है। बृहस्पति व्रत का पालन करने से मनुष्य की कुंडली से गुरु सम्बंधित दोष दूर हो जाते हैं। यदि आप विवाह संबधी समस्याओं से ग्रसित हैं अथवा आपका विवाह होने में विभिन्न प्रकार की बाधएँ उत्पन्न हो रही हैं, तो आपको भी नियमित रूप से पुराण विधि – विधान के साथ इस चमत्कारी गुरुवार व्रत का पालन करना चाहिए।

बृहस्पति व्रत कथा, आरती और पूजा विधि (Brihaspativar Vrat Katha, Aarti, & Pooja Vidhi)

बृहस्पति व्रत कथा का महत्‍व

ऐसी मान्‍यता है कि व्रत करने और बृहस्पति व्रत कथा सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।  इस व्रत से धन संपत्ति की प्राप्ति होती है।  जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।  परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, उनका जल्दी ही विवाह हो जाता है।  ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।  बुद्धि और शक्ति का वरदान प्राप्त होता है और दोष दूर होता है।

बृहस्पति व्रत कथा (Brihaspativar Vrat Katha in Hindi)

एक समय की बात है कि भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी।

एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा माँगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा: हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। मेरा पति सारा धन लुटाते रहिते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।

साधु ने कहा: देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो। धन, सन्तान तो सभी चाहते हैं। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए।

यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खुलवाओ। जो निर्धन अपनी कुंवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो। ऐसे और कई काम हैं जिनके करने से तुम्हारा यश लोक-परलोक में फैलेगा। परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली: महाराज आप मुझे कुछ न समझाएं। मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बाँटती फिरूं।

साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्‌टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्‌टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से आलोप हो गये।

साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे, कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा।

तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते हैं।

पूरी कथा पढ़ने के लिए डाउनलोड करे बृहस्पति व्रत कथा PDF नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके

बृहस्पति पूजा विधि – Brihaspati Puja Vidhi

बृहस्पति देवा आरती – Brihaspati Aarti

ॐ जय बृहस्पति देवा
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

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