अहोई अष्टमी माता की आरती – Ahoi Mata Aarti Hindi PDF

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अहोई अष्टमी माता की आरती – Ahoi Mata Aarti - Summary

अहोई अष्टमी माता की आरती – Ahoi Mata Aarti

अहोई अष्टमी माता का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद मनाया जाता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान के जीवन में सुख और समृद्धि बनाए रखने के लिए करती हैं। नि:संतान महिलाएं भी बच्चों की कामना में अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। आप अहोई माता की आरती को PDF प्रारूप में डाउनलोड कर सकते हैं, जिसकी लिंक नीचे दी गई है।

अहोई माता के पूजन का महत्व

अहोई माता के पूजन में अहोई अष्टमी व्रत कथा को पढ़ना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि किसी भी प्रकार का पूजन या अनुष्ठान बिना आरती के पूरा नहीं माना जाता। इसलिए, पूजन के अंत में संबंधित देवी-देवताओं की आरती करना आवश्यक है। आप भी अपने अहोई अष्टमी के पूजन के बाद अहोई अष्टमी माता की आरती अवश्य करें।

अहोई अष्टमी माता की आरती – Ahoi Mata Aarti in Hindi

जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।

ब्राह्मणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।

माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।

तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।।

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।।

श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।

अहोई माता की कहानी – Ahoi Mata Ki Kahani

प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं, तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी। साहुकार की बेटी जहां से मिट्टी ले रही थी, वहीं स्याहु (साही) अपने बेटों के साथ रहती थी। खोदते हुए गलती से साहूकार की बेटी ने खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मार दिया।

स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली, “मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी।”

स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक करके विनती करती है कि वे उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे, वे सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगती हैं। अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।

स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएं होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा-भरा हो जाता है। अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से “अनहोनी को होनी बनाना” है, जैसा कि साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।

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