Aahar Shastra - आहरशास्त्र Hindi
यह रोग-वृक्ष है। सम्पूर्ण वृक्ष को मानव शरीर समझकर जडो पानी योग्य आहार-विहारद्वारा इस घरीर-वृक्ष को पोषण दिया तो द्वारा, उसका तना (रस, रक्त, मास, मज्जा, शुक्र धादि) शुद्ध होकर ऊपर आनन्द. सुख, शांतिरूपी पत्ते, फूल व फल आएंगे। अभ्यचा बाज जैसी विचित्रता हो रही है, वह इस चित्रमें चित्रित की गई है।
इस लेख में निम्न दो उद्देश्यों पर विचार करने का सोचा है।
(१) पोषण-विज्ञान,
(२) खाद्य-तत्व |
पोषण शब्द के उच्चारण मात्र से हमे किसी जीवित तत्व का स्मरण होता है, क्योकि पोषण और जीवन का दिन और रात जितना सम्बन्ध है । ” पोषण किसका और क्यों ?” “जीव का और जीव के विकास के लिए,” सृष्टि की उत्पत्ति में ही जीव की उत्पत्ति दीखती है। जीव की उत्पत्ति के पहले ही कुदरत ने उसके पोषण की व्यवस्था कर रखी है। या ऐसा कहे कि पोषण व्यवस्था मे से ही ीव की उत्पत्ति हुई है।
एकत्रित गंदगी में हवा, गर्मी और आर्द्रता का स्पर्श होते हो कीटाणु (जीव) प्रकट होते है, और आश्चर्य की बात यह है कि जीव ही उस गन्दगी को चट कर जाते है और गन्दगी के नष्ट होते ही स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं, किन्तु इन्हें छोड़कर अन्य प्राणियों में यह विशेषता दिखाई देती है कि वे शुद्ध व प्राकृतिक वस्तुओंको ही स्वाभाविक रूपमे ग्रहण करते हैं। इतना भेद होते हुए भी प्रकृति का यह पोषण चक्र एक-दूसरे पर आधारित दिखता है। तीन प्रकार के स्वतन्त्र पोषणचक्र परस्पर कितने आधारित है, यह निम्न आकृति से स्पष्ट होगा।
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