प्राचीन भारत का इतिहास 2025 Hindi PDF

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प्राचीन भारत का इतिहास 2025 - Summary

प्राचीन भारत का इतिहास 1200 ईसापूर्व से 240 ईसापूर्व तक की अवधि को कवर करता है। इतिहास के धार्मिक पहलुओं को अलग रखते हुए, संस्कृत और अन्य प्राचीन भाषाओं के आधार पर यह इतिहास लगभग 13,000 ईसापूर्व से शुरू होता है, जो आज से करीब 15,000 साल पुराना है। इस काल में महाजनपदों या सोलह गणराज्यों यानी अंग, अवंती, अस्सक, चेदि, गांधार, काशी, कम्बोज, कोसल, कुरु, मल्ल, मत्स्य, मगध, पांचाल, सुरसेन, वत्स और व्रिजी का उदय हुआ था।

प्राचीन भारत के नाम और संस्कृति

प्राचीन भारत के कई नाम प्रचलित रहे हैं जैसे जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया। वैदिक सभ्यता को यहाँ की सबसे पुरानी सभ्यता माना जाता है, जो आर्य लोगों के आगमन से जुड़ी है। आर्यों ने संस्कृत भाषा और वैदिक धर्म (सनातन धर्म) को स्थापित किया, जिसे बाद में विदेशी आक्रांताओं ने ‘हिंदू धर्म’ नाम दिया। प्राचीन इतिहास का आधार सुमेरियन क्यूनीफॉर्म लिपि माना जाता है, जो तीसरी सहस्राब्दी की सबसे प्राचीन लेखन प्रणाली है।

सिंधु घाटी काल की किलेबंदी और वास्तुकला

सिंधु घाटी सभ्यता के समय मिट्टी, पक्की ईंटों और पत्थरों से बने बड़े किलेबंद शहर मिलते हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों में नगरकोट (गढ़) और निचला शहर अलग-अलग हिस्से थे, जो सुरक्षा और सामाजिक संगठन का उदाहरण देते हैं। कोट दीजी का विशाल दुर्ग और कालीबंगा का किला भी इस काल के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। धोलावीरा में पत्थरों से बने मजबूत किलेबंदी और दीवारों के अवशेष मिले हैं, जो प्राचीन समाज के सुरक्षा उपायों को दिखाते हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ये किलेबंदी मुख्य रूप से बाढ़ से बचाव या सामाजिक कामों के लिए बनायी गयी थीं।

पुरापाषाण युग से मानव विकास

भारत का पुरापाषाण युग मुख्य रूप से तीन चरणों में बंटा है: प्रारंभिक (2,500,000 – 100,000 ईसापूर्व), मध्य (100,000 – 40,000 ईसापूर्व), और उच्च (40,000 – 10,000 ईसापूर्व)। महाराष्ट्र के बोरी क्षेत्र में मिले जीवाश्म बताते हैं कि मानव की उत्पत्ति लगभग 1.4 मिलियन साल पहले हुई। भारत में मानव ने कृषि और स्थाई आवास का विकास आने वाले हजारों सालों में किया। कुछ पुरापाषाण काल के औजार छोटे नागपुर पठार और आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले से मिले हैं। इस काल में मनुष्य मुख्य रूप से शिकार और भोजन संग्रह पर निर्भर था, जबकि पशुपालन कुछ क्षेत्रों में शुरू हुआ था।

मौर्य काल की किलेबंदी और प्रशासन

नंद वंश के पतन के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने 321 ईसापूर्व में महान मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। उनके मंत्री कौटिल्य के प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थशास्त्र में राज्य के सात अंगों का वर्णन है, जिसमें दंड और दुर्ग का खास महत्व है। कौटिल्य ने किलेबंदी के लिए ईंट और पत्थर के फाउंडेशन वाला मजबूत परकोटा बनाने, सैनिकों की तैनाती, और सुरक्षा के लिए खाइयों को सुझाया। मौर्य काल में कई प्रकार के किले थे, जैसे धन्व दुर्ग (रेगिस्तानी), माही दुर्ग (मिट्टी के), जल दुर्ग (जल आधारित), गिरि दुर्ग (पहाड़ी), वन दुर्ग (जंगल क्षेत्र में) आदि। शुंग वंश के समय भी बिहार में कटरागढ़ के किलेबंदी के प्रमाण मिलते हैं।

वैदिक काल के साहित्यिक और धार्मिक साक्ष्य

वैदिक काल से प्राप्त साक्ष्य मुख्य रूप से साहित्यिक हैं। ऋग्वेद में भरत नामक राजा का उल्लेख है, जिसने दासों को हराया था। हालांकि, भौतिक पुरातात्विक प्रमाण कम हैं। ऋग्वेद में यज्ञों और मंदिरों की संरचनाओं का वर्णन है। यजुर्वेद यज्ञ क्रियाओं का विस्तार करता है, सामवेद ऋग्वेद के मंत्रों में संगीत जोड़ने के लिए बनाया गया, और अथर्ववेद में आयुर्वेदिक और रहस्यमय विधाओं का उल्लेख है। इन वेदों के अध्ययन से प्राचीन भारत के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को बेहतर समझा जा सकता है।

ऋग्वेद के महत्वपूर्ण तथ्य

  • ऋग्वेद देवताओं की स्तुति का संग्रह है, जिसमें 1028 सूक्त होते हैं।
  • यह दस मंडलों में बंटा है; 2 से 7 मंडल सबसे पुराने माने जाते हैं।
  • इसमें 33 देवताओं का उल्लेख है, जिनमें गायत्री के बारे में प्रसिद्ध मंत्र ऋग्वेद में मिलता है।
  • ‘असतो मा सद्गमय’ जैसे मंत्र इसी वेद से हैं, और इसमें महिलाओं के नाम भी मंत्रों में मिलते हैं।

यजुर्वेद के मुख्य तत्व

  • यह यज्ञों की विधि और मंत्रों का संग्रह है, जिसमें कृष्ण और शुक्ल यजुर्वेद शाखाएं शामिल हैं।
  • इस ग्रंथ में राजसूय और वाजपेय जैसे राजकीय समारोहों का उल्लेख है।
  • यह गद्यात्मक और पद्यात्मक दोनों भाषाओं में लिखा गया है।

सामवेद की संगीतमय ध्वनि

सामवेद ऋग्वेद के मंत्रों को संगीत के रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें 1810 छंद होते हैं, जिनमें अधिकांश ऋग्वेद से लिए गए हैं। यह तीन शाखाओं में बटा है और भारत की पहली संगीत पुस्तक माना जाता है।

अथर्ववेद की जादुई तकनीक

  • इस वेद में आयुर्वेद, जादू, और रहस्यमय विधाओं का विवरण है।
  • यह 20 अध्यायों में 5687 मंत्रों से बना है।
  • अथर्ववेद में भेषज वेद और धातु वेद के दो प्रकार भी बताए गए हैं।

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