पूर्णिमा व्रत कथा (Purnima Vrat Katha) Hindi

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पूर्णिमा व्रत कथा (Purnima Vrat Katha) in Hindi

Purnima Vrat Katha

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन माता महालक्ष्मी की उपासना की जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की आराधना करने से घर में धन-धान्य की प्राप्ति होती है। बताया जाता है कि इस दिन चांद की रोशनी में खीर रखकर खाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इससे आकाश से अमृत की वर्षा होती है। कई लोग इस दिन को महत्वपूर्ण मानते हुए व्रत रखते हैं।

अगर आप अपने जीवन में बहुत सी मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं, तो शरद पूर्णिमा का व्रत जरूर करना चाहिए। विद्द्वानो के अनुसार कोई भी व्रत बिना व्रत कथा के पूरा नहीं माना जाता है। इसलिए शरद पूर्णिंमा व्रत की सफलता के लिए शरद पूर्णिमा व्रत कथा को अवश्य पढ़ना चाहिए। इस कथा को पढ़ने के बाद ही आपका व्रत पूरा माना जाता है।

पूर्णिमा व्रत कथा (Purnima Vrat Katha)

द्वापर युग में एक समय की बात है कि यशोदा जी ने कृष्ण से कहा – हे कृष्ण! तुम सारे संसार के उत्पन्नकर्ता, पोषक तथा उसके संहारकर्ता हो, आज कोई ऐसा व्रत मुझसे कहो, जिसके करने से मृत्युलोक में स्त्रियों को विधवा होने का भय न रहे तथा यह व्रत सभी मनुष्यों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हो। श्रीकृष्ण कहने लगे – हे माता! तुमने अति सुन्दर प्रश्न किया है। मैं तुमसे ऐसे ही व्रत को सविस्तार कहता हूँ । सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को बत्तीस पूर्णमासियों का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के करने से स्त्रियों को सौभाग्य सम्पत्ति मिलती है। यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला एवं भगवान् शिव के प्रति मनुष्य-मात्र की भक्ति को बढ़ाने वाला है। यशोदा जी कहने लगीं – हे कृष्ण! सर्वप्रथम इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था, इसके विषय में विस्तारपूर्वक मुझसे कहो।

श्रीकृष्ण जी कहने लगे कि इस भूमण्डल पर एक अत्यन्त प्रसिद्ध राजा चन्द्रहास से पालित अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण ‘कातिका’ नाम की एक नगरी थी। वहां पर धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था और उसकी स्त्री अति सुशीला रूपवती थी। दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम के साथ रहते थे। घर में धन-धान्य आदि की कमी नहीं थी। उनको एक बड़ा दुख था कि उनके कोई सन्तान नहीं थी, इस दुख से वह अत्यन्त दुखी रहते थे। एक समय एक बड़ा तपस्वी योगी उस नगरी में आया। वह योगी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर अन्य सब घरों से भिक्षा लाकर भोजन किया करता था। रूपवती से वह भिक्षा नहीं लिया करता था। उस योगी ने एक दिन रूपवती से भिक्षा न लेकर किसी अन्य घर से भिक्षा लेकर गंगा किनारे जाकर, भिक्षान्न को प्रेमपूर्वक खा रहा था कि धनेश्वर ने योगी का यह सब कार्य किसी प्रकार से देख लिया।

पूर्णमासी – शरद पूर्णिमा व्रत विधि (Purnima Vrat Vidhi)

चंद्रदेव की आरती (Chandra Dev Ki Aarti Lyrics)

ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।
दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी।
रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी।
दीन दयाल दयानिधि, भव बंधन हारी।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
सकल मनोरथ दायक, निर्गुण सुखराशि।
योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, संत करें सेवा।
वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी।
प्रेमभाव से पूजें, सब जग के नारी।
शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी।
धन सम्पत्ति और वैभव, सहजे सो पावे।
विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी।
सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें।
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।

शरद पूर्णिमा पूजन सामग्री 

दूध, दही, घी, शर्करा, गंगाजल, रोली, मौली, ताम्बूल, पूंगीफल, धूप, फूल (सफेद कनेर), यज्ञोपवीत, श्वेत वस्त्र, लाल वस्त्र, आक, बिल्व-पत्र, फूलमाला, धतूरा, बांस की टोकरी, आम के पत्ते, चावल, तिल, जौ, नारियल (पानी वाला), दीपक, ऋतुफल, अक्षत, नैवेद्य, कलष, पंचरंग, चन्दन, आटा, रेत, समिधा, कुश, आचार्य के लिए वस्त्र, शिव-पार्वती की स्वर्ण मूर्ति (अथवा पार्थिव प्रतिमा), दूब, आसन आदि।

पूरी कथा पढ़ने के लिए डाउनलोड पूर्णमासी व्रत कथा PDF नीचे दिए लिंक का उपयोग करके | You can download the Purnima Vrat Katha in PDF format using the link given below.

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