सरस्वती चालीसा पाठ (Saraswati Chalisa) Hindi PDF

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सरस्वती चालीसा पाठ (Saraswati Chalisa) - Summary

हिंदू धर्म में माता सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है। सरस्वती जी को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय है, जो सादगी और शुद्धता का प्रतीक है। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से मनुष्य बुद्धिमान बनता है। किसी भी प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले माँ सरस्वती का ध्यान करना चाहिए और सरस्वती चालीसा का पाठ करके माँ सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

हर साल, हिंदू पंचांग के अनुसार, बसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती जी की जयंती भी होती है। बसंत पंचमी पर लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं।

सम्पूर्ण सरस्वती चालीसा हिन्दी में (Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi)

॥ दोहा ॥

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

अर्थ: माता-पिता के चरणों की धूल मस्तक पर धारण करते हुए, हे सरस्वती मां, आपकी वंदना करता हूं/करती हूं। हे दातारी, मुझे बुद्धि की शक्ति दीजिए। आपकी अमित और अनंत महिमा पूरे संसार में व्याप्त है। हे मां, रामसागर (चालीसा लेखक) के पापों का हरण अब आप ही कर सकती हैं।

॥ चालीसा ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥

अर्थ: बुद्धि का बल रखने वाली, अर्थात समस्त ज्ञान शक्ति को रखने वाली, हे सरस्वती मां, आपकी जय हो। सब कुछ जानने वाली, कभी न मरने वाली, कभी न नष्ट होने वाली माता सरस्वती, आपकी जय हो। हे मां, आपके हाथों में वीणा है और आप हंस की सवारी करती हैं। आपके चार भुजाएं पूरे संसार में प्रसिद्ध हैं। जब-जब इस दुनिया में पाप बुद्धि अर्थात विनाशकारी और अपवित्र वैचारिक कृत्यों का चलन बढ़ता है, तब धर्म की ज्योति फीकी हो जाती है। हे मां, तब आप अवतार धारण करती हैं और इस धरती को पाप मुक्त करती हैं।

बाल्मीकि जी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥

अर्थ: हे मां सरस्वती, जो वाल्मीकि जी हत्यारे हुआ करते थे, उनके साथ जो प्रसाद मिला, उसे पूरा संसार जानता है। आपकी दया दृष्टि से रामायण की रचना कर उन्होंने आदि कवि की पदवी प्राप्त की। हे मां, आपकी कृपा दृष्टि से कालिदास जी प्रसिद्ध हुए। तुलसीदास, सूरदास जैसे विद्वान और भी कई ज्ञानी हुए हैं, उन्हें और किसी का सहारा नहीं था; ये सब केवल आपकी ही कृपा से विद्वान बने हैं।

करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहूता। तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

अर्थ: हे मां भवानी, मुझे, जो दीन दुखी हूं, अपना दास जानकर कृपा करो। हे मां, पुत्र तो बहुत से अपराध करते हैं, आप उन्हें अपने चित्त में न रखें अर्थात मेरी गलतियों को क्षमा करें। हे मां, मैं कई प्रकार से आपकी प्रार्थना करता हूं, मेरी लाज रखना। मुझ अनाथ को सिर्फ आपका सहारा है। माँ जगदंबा, दया करना, आपकी जय हो!

मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥

अर्थ: मधु कैटभ जैसे शक्तिशाली दैत्यों ने भगवान विष्णू से युद्ध करने का मन बनाया, लेकिन 5000 वर्षों तक युद्ध करने के बाद भी विष्णु भगवान उन्हें समाप्त नहीं कर सके। तब आपने ही भगवान विष्णू की मदद की और राक्षसों की बुद्धि को भ्रमित कर दिया। इस प्रकार उन राक्षसों का अंत हुआ। हे मां, मेरा मनोरथ भी पूरा करो! चंड-मुंड जैसे विख्यात राक्षस का संहार आपने पल में किया। रक्तबीज जैसे शक्तिशाली पापियों से, जो देवताओं और ऋषि-मुनियों को भयभीत करते थे, आपने उनका सिर काटकर उसे केले की तरह खा लिया। हे मां जगदंबा, मैं बार-बार आपकी प्रार्थना करता हूं, आपको नमन करता हूं। हे मां, आपने पूरे संसार में महापापी शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों का भी एक पल में नाश कर दिया।

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई। रामचंद्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा। सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥

अर्थ: हे मां सरस्वती, आपने ही भरत की माता केकैयी की बुद्धि उलटकर भगवान श्री रामचंद्र को वनवास पर भेजा। इसी प्रकार रावण का वध भी आपने करवाया, जिससे देवताओं, मनुष्यों, और ऋषि-मुनियों सबको सुख मिला। आपका यश अनादि और अनंत है इसलिए आपके गुण गाने का सामर्थ्य किसी में नहीं है। जिनकी रक्षा आप करती हैं, उन्हें खुद भगवान विष्णु और भगवान शिव भी नहीं मार सकते। रक्त दंतिका, शताक्षी, दानव भक्षक जैसे आपके अनेक नाम हैं।

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई॥

अर्थ: हे मां दुर्गा, मुश्किल से मुश्किल कार्यों को कराने के कारण ही समस्त संसार ने आपको दुर्गा कहा। आप कष्टों का हरण करने वाली हैं, जब भी कृपा करती हैं, सुख देती हैं। जब कोई राजा क्रोधित होकर मारना चाहता हो, या जंगल में खूंखार जानवरों से घिरा हो, या समुद्र के बीच तूफान आ गया हो, भूत प्रेत परेशान कर रहे हों, या गरीबी और किसी भी प्रकार के कष्ट सताते हों, तब आपका नाम जपने से सब ठीक हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आपका नाम जपने से बड़े से बड़े संकट भी खत्म हो जाते हैं।

पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
करहु कृपा भवमुक्ति भवानी। मो कहं दास सदा निज जानी॥

अर्थ: जो संतानहीन हैं, उन्हें सब कुछ छोड़कर आप माता की पूजा करनी चाहिए और हर दिन इस सरस्वती चालीसा का पाठ करना चाहिए। इस तरह उन्हें गुणवान और सुंदर संतान मिलेगी। साथ ही, माता पर चढ़ाए गए धूप आदि से सारे संकट दूर हो जाते हैं। जो भी माता की भक्ति करता है, उसके पास कष्ट नहीं आते। जो भी सौ बार बंदी पाठ करता है, उसके बंदी पाश दूर हो जाते हैं। हे माता भवानी, मैं आपको सदा अपना दास समझकर कृपा करें और इस भवसागर से मुक्ति दें।

॥ दोहा ॥

माता सूरज कान्ति तव, अंधकार मम रूप। डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु। अधम रामसागरहिं तुम, आश्रय देउ पुनातु॥

अर्थ: हे मां, आपकी दमक सूरज के समान है, जबकि मेरा रूप अंधकार जैसा है। मुझे भवसागर में डूबने से बचाइए। हे मां सरस्वती, मुझे बल, बुद्धि और विद्या का दान दीजिए। हे मां, इस पापी रामसागर को अपना आश्रय देकर पवित्र करें।

सरस्वती माता की आरती

ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्‍गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
जय….. चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ जय…..
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ जय…..
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ जय…..
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय…..
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ जय…..
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें ॥ जय…..
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्‍गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय…

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