पद्मिनी एकादशी व्रत कथा (Padmini Ekadashi Vrat Katha) Hindi PDF

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पद्मिनी एकादशी व्रत कथा (Padmini Ekadashi Vrat Katha) in Hindi

धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल प्राप्त करते हैं, वही फल इस एकादशी पर शेषनाग पर शयन करने वाले श्रीविष्णु को नमस्कार करने से ही मिल जाते हैं और मनुष्य को यमलोक के दु:ख नहीं भोगने पड़ते हैं। यह एकादशी उपवासक (व्रत करने वाले) के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक लेकर जाती है। हिन्दू धर्मानुसार प्रत्येक महीने की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन एकादशी व्रत किया जाता है। वैष्णव समाज और हिन्दू धर्म के लिए एकादशी व्रत महत्वपूर्ण और पुण्यकारी माना जाता है। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं।

अधिकम मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है, क्योंकि ये भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस मास में एकादशी का पड़ना बहुत ही पुण्यफल देने वाली होती है। पद्मिनी एकादशी रविवार को है और इस एकादशी पर यदि आप सच्चे मन से व्रत और पूजन करें तो आपकी कोई भी मनोकामना पूर्ण हुए बिना नहीं रहेगी। शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी होती है। एकादशी पर भगवान विष्णु के पूजन का विधान होता है, लेकिन पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा जरूर सुनी जाएं। कथा वाचन के बिना व्रत को अधूरा माना जाता है। तो आइए व्रत कथा के साथ पारण का शुभ मूहुर्त भी आपको बताएं।

पद्मिनी एकादशी पूजा विधि

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा (Padmini Ekadashi Vrat Katha)

त्रेतायुग में महिष्मती पुरी नामक राज में कृतवीर्य नामक प्रतापी राजा राज करता था। नरेश कृतवीर्य महान योद्धा थे। उन्होंने आसपास के नरेशों को परास्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। इस वजह से उनकी एक से अधिक भार्या थीं, किन्तु सभी निःसंतान थीं। संतान प्राप्ति के लिए राजा कृतवीर्य ने देवी-देवताओं की पूजा-उपासना की। वैद्य और चिकित्सक से भी सलाह ली। इसके बावजूद संतान की प्राप्ति नहीं हुई। ये सोच नरेश कृतवीर्य ने कठोर तपस्या करने का निश्चय किया। इसके पश्चात, मंत्री को कार्यभार सौंप वर्षों तक गंधमादन पर्वत पर राजा कृतवीर्य ने तपस्या की। इससे भी उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। उस समय पतिव्रता रानी पद्मिनी से अनसूया ने मलमास महीने में पड़ने वाली सावन मास की एकादशी व्रत करने की सलाह दी।

अनसूया के वचनानुसार, महारानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति हेतु पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी का व्रत रख विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा उपासना की। साथ ही रात्रि जागरण भी की। महारानी पद्मिनी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इस व्रत के पुण्य प्रताप से महारानी पद्मिनी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। धार्मिक मान्यता है कि कृतवीर्य का पुत्र कार्तवीर्य तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली थे। उन्हें भगवान को छोड़ कोई युद्ध के मैदान में परास्त नहीं कर सकता था। लंका नरेश रावण को कार्तवीर्य ने चुटकी में हरा दिया था। वर्तमान समय तक पृथ्वी लोक पर कार्तवीर्य की शक्ति के समतुल्य कोई पैदा नहीं हुआ है। परास्त करना तो दूर की बात है।

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