Narsingh Chalisa (नरसिंह चालीसा) Hindi PDF

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Narsingh Chalisa (नरसिंह चालीसा) - Summary

भगवान नरसिंह की कृपा पाने के लिए आप सभी भक्त Narsingh Chalisa (नरसिंह चालीसा) का पाठ कर सकते हैं और नियमित श्रवण भी कर सकते हैं। नरसिंह चालीसा पढ़ने से भयानक भय, दोष और हर तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह चालीसा भगवान नरसिंह के अवतार और उनकी महिमा का सुंदर वर्णन करती है। अगर आप इस नरसिंह चालीसा की PDF डाउनलोड करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह Narsingh Chalisa की PDF पढ़ने में आपकी मदद करेगी।

नरसिंह चालीसा PDF: लाभ और महत्व

भगवान नरसिंह की भक्ति में डूबे भक्तों का जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है। नरसिंह चालीसा का पाठ करने से न केवल दुष्ट शक्तियों का नाश होता है, बल्कि मन को भी शांति और संतोष मिलता है। भक्तों का मानना है कि इससे मनोवांछित फल आसानी से प्राप्त होते हैं, दुख-दरिद्रता दूर होती है और संतान सुख भी मिलता है। चाहें आप इस नरसिंह चालीसा PDF को पढ़ें या सुनें, दोनों ही तरीके से लाभ होता है। नरसिंह चालीसा का पाठ खासकर वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था।

Narsingh Chalisa (नरसिंह चालीसा) के बारे में

नरसिंह चालीसा की रचना का सही समय और लेखक तो ज्ञात नहीं है, लेकिन माना जाता है कि इसे भगवान नरसिंह के भक्तों ने उनकी महिमा और भक्ति दिखाने के लिए लिखा है। यह चालीसा भगवान नरसिंह के अवतरण की कथा बताती है और उनकी शक्ति एवं कृपा की तारीफ करती है।

॥ दोहा ॥

मास वैशाख कृतिका युत, हरण मही को भार ।
शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन, लियो नरसिंह अवतार ॥
धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम ।
तुमरे सुमरन से प्रभु, पूरन हो सब काम ॥

॥ चौपाई ॥

नरसिंह देव में सुमरों तोहि । धन बल विद्या दान दे मोहि ॥१॥
जय जय नरसिंह कृपाला । करो सदा भक्तन प्रतिपाला ॥२॥
विष्णु के अवतार दयाला । महाकाल कालन को काला ॥३॥
नाम अनेक तुम्हारो बखानो । अल्प बुद्धि में ना कछु जानों ॥४॥

हिरणाकुश नृप अति अभिमानी । तेहि के भार मही अकुलानी ॥५॥
हिरणाकुश कयाधू के जाये । नाम भक्त प्रहलाद कहाये ॥६॥
भक्त बना विष्णु को दासा । पिता कियो मारन परसाया ॥७॥
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दंडा । अग्निदाह कियो प्रचंडा ॥८॥

भक्त हेतु तुम लियो अवतारा । दुष्ट-दलन हरण महिभारा ॥९॥
तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे । प्रह्लाद के प्राण पियारे ॥१०॥
प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा । देख दुष्ट-दल भये अचंभा ॥११॥
खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा । ऊर्ध्व केश महादष्ट्र विराजा ॥१२॥

तप्त स्वर्ण सम बदन तुम्हारा । को वरने तुम्हरों विस्तारा ॥१३॥
रूप चतुर्भुज बदन विशाला । नख जिह्वा है अति विकराला ॥१४॥
स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी । कानन कुंडल की छवि न्यारी ॥१५॥
भक्त प्रहलाद को तुमने उबारा । हिरणा कुश खल क्षण मह मारा ॥१६॥

ब्रह्मा, विष्णु तुम्हे नित ध्यावे । इंद्र महेश सदा मन लावे ॥१७॥
वेद पुराण तुम्हरो यश गावे । शेष शारदा पारन पावे ॥१८॥
जो नर धरो तुम्हरों ध्याना । ताको होय सदा कल्याना ॥१९॥
त्राहि-त्राहि प्रभु दुःख निवारो । भव बंधन प्रभु आप ही टारो ॥२०॥

नित्य जपे जो नाम तिहारा । दुःख व्याधि हो निस्तारा ॥२१॥
संतान-हीन जो जाप कराये । मन इच्छित सो नर सुत पावे ॥२२॥
बंध्या नारी सुसंतान को पावे । नर दरिद्र धनी होई जावे ॥२३॥
जो नरसिंह का जाप करावे । ताहि विपत्ति सपनें नही आवे ॥२४॥

जो कामना करे मन माही । सब निश्चय सो सिद्ध हुई जाही ॥२५॥
जीवन मैं जो कछु संकट होई । निश्चय नरसिंह सुमरे सोई ॥२६॥
रोग ग्रसित जो ध्यावे कोई । ताकि काया कंचन होई ॥२७॥
डाकिनी-शाकिनी प्रेत बेताला । ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला ॥२८॥

प्रेत पिशाच सबे भय खाए । यम के दूत निकट नहीं आवे ॥२९॥
सुमर नाम व्याधि सब भागे । रोग-शोक कबहूं नही लागे ॥३०॥
जाको नजर दोष हो भाई । सो नरसिंह चालीसा गाई ॥३१॥
हटे नजर होवे कल्याना । बचन सत्य साखी भगवाना ॥३२॥

जो नर ध्यान तुम्हारो लावे । सो नर मन वांछित फल पावे ॥३३॥
बनवाए जो मंदिर ज्ञानी । हो जावे वह नर जग मानी ॥३४॥
नित-प्रति पाठ करे इक बारा । सो नर रहे तुम्हारा प्यारा ॥३५॥
नरसिंह चालीसा जो जन गावे । दुःख दरिद्र ताके निकट न आवे ॥३६॥

चालीसा जो नर पढ़े-पढ़ावे । सो नर जग में सब कुछ पावे ॥३७॥
यह श्री नरसिंह चालीसा । पढ़े रंक होवे अवनीसा ॥३८॥
जो ध्यावे सो नर सुख पावे । तोही विमुख बहु दुःख उठावे ॥३९॥
“शिव स्वरूप है शरण तुम्हारी । हरो नाथ सब विपत्ति हमारी” ॥४०॥

॥ दोहा ॥

चारों युग गायें तेरी महिमा अपरम्पार ।
निज भक्तनु के प्राण हित लियो जगत अवतार ॥
नरसिंह चालीसा जो पढ़े प्रेम मगन शत बार ।
उस घर आनंद रहे वैभव बढ़े अपार ॥

॥ इति श्री नरसिंह चालीसा संपूर्णम् ॥

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