नमो नमो दुर्गे सुख करनी Namo Namo Durge Sukh Karni चालीसा PDF

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नमो नमो दुर्गे सुख करनी Namo Namo Durge Sukh Karni चालीसा - Summary

नमो नमो दुर्गे सुख करनी चालीसा का पाठ माँ दुर्गा की असीम कृपा पाने का एक बहुत सरल और असरदार तरीका है। यह चालीसा खासतौर पर नवरात्रि के पवित्र मौके पर बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ी जाती है। कई भक्त इस चालीसा का रोजाना जाप करके अपनी मनचाही इच्छाएं पूरी करते हैं। माँ दुर्गा सनातन हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पूजी जाने वाली देवियों में से एक हैं, जिनकी पूजा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। आप नमो नमो दुर्गे सुख करनी चालीसा PDF डाउनलोड कर इसे कभी भी, कहीं भी पढ़ सकते हैं।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी चालीसा PDF की मुख्य बातें

इस पवित्र चालीसा के पाठ से भक्तों को कई आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ मिलते हैं। अगर आप भी जीवन में सुख, अच्छा स्वास्थ्य और सफलता चाहते हैं, तो इस चालीसा का नियमित पाठ बहुत फायदेमंद होता है। इसमें माँ दुर्गा की महानता का सुंदर वर्णन किया गया है, जिसे पढ़कर भक्तों का दिल माँ से जुड़ जाता है।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी की अहमियत

माँ दुर्गा पर गहरी आस्था रखने वाले भक्तों के लिए यह चालीसा मन, बातों और कामों को शुद्ध करके जीवन की कई मुश्किलें दूर करती है। चाहे आप किसी बीमारी, पैसों की समस्या या मानसिक परेशानी का सामना कर रहे हों, इस चालीसा का पाठ आपकी समस्याओं का समाधान दे सकता है। यह माँ दुर्गा से सीधे जुड़ने का एक आसान तरीका है जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। 2025 में भी इस चालीसा का महत्व पहले जैसा ही बना हुआ है।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी के पाठ के फायदे

  • इस चालीसा का रोजाना और सच्चे दिल से पाठ करने पर जीवन में मनचाहे आशीर्वाद मिलते हैं।
  • जो कोई भी किसी काम में सफलता चाहता है, उसे इस चालीसा से बहुत फायदा होता है।
  • इसे हर दिन पढ़ने से माँ दुर्गा की कृपा जल्दी मिलती है और दुख दूर होते हैं।
  • यह चालीसा सभी तरह की परेशानियों से, खासकर पैसों की मुश्किलों से छुटकारा दिलाती है।
  • मन और शरीर की शांति के लिए यह पाठ बहुत अच्छा माना जाता है।

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नमो नमो दुर्गे सुख करनी के गीत हिंदी में – नमो नमो दुर्गे सुख करनी

नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी, तिहुँ लोक फैली उजियारी।

शशि ललाट मुख महाविशाला, नेत्र लाल भृकुटि विकराला।
रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे।

तुम संसार शक्ति लै कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला।

प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।

रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा, परगट भई फाड़कर खम्बा।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दयासिन्धु दीजै मन आसा।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी।

मातंगी अरु धूमावति माता, भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।
श्री भैरव तारा जग तारिणी, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।

केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।
कर में खप्पर खड्ग विराजै, जाको देख काल डर भाजै।

सोहै अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहुँलोक में डंका बाजत।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।
महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी।

रूप कराल कालिका धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा ।
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब ।

अमरपुरी अरु बासव लोका, तब महिमा सब रहें अशोका।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नरनारी।

प्रेम भक्ति से जो यश गावें, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्ममरण ताकौ छुटि जाई।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी, योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।
शंकर आचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को, काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।
शक्ति रूप का मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदम्ब भवानी।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।

मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।
आशा तृषणा निपट सतावें, मोह मदादिक सब बिनशावें।

शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।
करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ, तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ।
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै, सब सुख भोग परमपद पावै।

देवीदास शरण निज जानी, कहु कृपा जगदम्ब भवानी।

।। दोहा ।।

शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक,
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिए अंक।

।। इति श्री दुर्गा चालीसा ।।

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