पापमोचनी (मोहिनी) एकादशी व्रत कथा – Mohini Ekadashi Vrat Katha Hindi

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पापमोचनी (मोहिनी) एकादशी व्रत कथा – Mohini Ekadashi Vrat Katha in Hindi

चैत्र का मास प्रारंभ हो चुका है। शास्त्रों में इस मास का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है। इस मास की एकादशी तिथि को महत्वपूर्ण माना गया है। पंचांग के अनुसार 28 मार्च 2022, सोमवार को चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार पापमोचनी एकादशी सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाती है।  ये एकादशी इस बात का भी अहसास कराती है कि जीवन में कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए। हर संभव प्रयास से उन जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए। जानें अंजाने यदि गलत हो भी जाए तो इस एकादशी का व्रत उन सभी पापों से छुटकारा दिलाता है। इसीलिए पापमोचनी एकादशी को पापों से मुक्ति पाने वाली एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन नियमानुसार व्रत रखने से भक्तों को विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

मोहिनी (पापमोचनी) एकादशी की महिमा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, यह सब विस्तारपूर्वक बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।

महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।

मोहिनी एकादशी कुछ जगहों पर आज 22 मई, शनिवार को मनाई जा रही हैं वहीं वैष्णव जन कल यानी कि 23 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रखेंगे क्योंकि उदया तिथि 23 मई को ही है। मोहिनी एकादशी पर भक्त भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करे।

पाप मोचनी एकादशी व्रत कथा – Papmochani Ekadashi Vrat Katha in Hindi

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में चैत्ररथ सुंदर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी तपस्या में लीन थे। एक दिन एक अप्सरा मंजुघोषा वहां से गुजरी। अप्सरा मेधावी को देख मोहित हो गई। अप्सरा ने मेधावी को आकर्षित करने के जतन किए, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। अप्सरा उदास होकर बैठ गई। तभी वहां से कामदेव गुजरे। कामदेव अप्सरा की मंशा को समझ गए और उसकी मदद की। जिस कारण मेधावी मंजुघोषा के प्रति आकर्षित हो गए।

अप्सरा को पिशाचिनी होने का श्राप मिला अप्सरा के इस प्रयास से मेधावी भगवान शिव की तपस्या को भूल गए। कई वर्ष बीत जाने के बाद जब मेधावी को अपनी भूल याद आई तो उन्होने मंजुघोषा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। मेधावी को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने इस कृत्य के लिए माफी मांगी। अप्सरा की विनती पर मेधावी ने पापमोचनी एकादशी का व्रत के महत्व के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को विधि पूर्वक पूर्ण करो। सभी पाप दूर होंगे।

अप्सरा ने कहे अनुसार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा। विधि पूर्वक व्रत का पारण किया। ऐसा करने से उसके पाप दूर हो गए और उसे पिशाच योनी से मुक्ति मिल गई। इसके बाद अप्सरा वापिस स्वर्ग लौट गई हो गई। दूसरी तरफ मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से मेधावी भी पाप मुक्त हो गए।

मोहिनी (पापमोचनी) एकादशी पूजा विधि

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