जगजननी जय जय आरती Jagjanani Jai Jai Aarti - Summary
माँ दुर्गा के कई रूपों में माँ जगजननी एक खास और पवित्र रूप हैं। अगर आप जगजननी जय जय आरती का PDF डाउनलोड करना चाहते हैं, तो यह आपके लिए सही जगह है। जगजननी जय जय आरती का पाठ करना बहुत ही लाभकारी माना जाता है, जिससे भक्ति और सुखद अनुभव मिलता है। खासकर नवरात्रों के पवित्र अवसर पर इस आरती का पाठ करने का विशेष महत्व होता है। आप यहाँ से 2025 के लिए जगजननी जय जय आरती PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
जगजननी जय जय आरती का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व
जगजननी जय जय आरती हमारे मन में माँ दुर्गा के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति जगाती है। नवरात्रों और अन्य शुभ दिनों पर, भक्तजन इसे पढ़कर माँ की कृपा और आशीर्वाद पाते हैं। यह आरती माँ जगजननी की महिमा का गुणगान करती है और जीवन में सकारात्मकता लाती है। जगजननी जय जय आरती का नियमित पाठ सभी दुखों को दूर कर सुख-समृद्धि लाता है।
जगजननी जय जय आरती PDF डाउनलोड करें
अगर आप इस आरती को आसानी से पढ़ना चाहते हैं, तो आप इसकी PDF डाउनलोड कर सकते हैं। जगजननी जय जय आरती PDF में उपलब्ध है ताकि आप इसे कहीं भी और कभी भी पढ़ सकें। 2025 में इस PDF को डाउनलोड करके आप अपने पूजा-पाठ में आसानी ला सकते हैं।
जगजननी जय जय आरती के बोल
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी…
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी…
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी…
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहार करनी॥ जगजननी…
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी…
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वांछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥ जगजननी…
दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी…
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी…
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी…
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी…
মূলाधার निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी…
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी…
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी…
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी मां…