ज्ञान माला (Gyan Mala) Hindi
ज्ञान माला (Gyan Mala) हिन्दी PDF डाउनलोड करें इस लेख में नीचे दिए गए लिंक से। अगर आप ज्ञान माला (Gyan Mala) हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको दे रहे हैं ज्ञान माला (Gyan Mala) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और पीडीएफ़ का direct डाउनलोड लिंक।
ज्ञान माला पुस्तक एक महत्वपूर्ण हिंदी पुस्तक है। यह पुस्तक आपको जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान प्रदान करने का लक्ष्य रखती है। इस पुस्तक में अनेकों विषयों पर विचारों, उद्धरणों, कहानियों और ज्ञानवर्धक ज्ञान से भरी पंक्तियों का संग्रह है।
यह पुस्तक आपको व्यक्तिगत विकास, आत्म-प्रेरणा, संबंधों का महत्व, सफलता, स्वास्थ्य, आध्यात्मिकता और जीवन के अन्य पहलुओं के बारे में महत्वपूर्ण सबकेस देती है। यह आपको जीवन में नई सोच और आपकी उन्नति को प्रोत्साहित करने के लिए विचारशीलता प्रदान करेगी।
ज्ञान माला पुस्तक मनोहारी रंगीन चित्रों के साथ प्रकाशित की गई है, जो पठन के अनुभव को और भी आकर्षक बनाते हैं। इस पुस्तक को पढ़कर आप अपनी ज्ञान की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं और अपने जीवन को सकारात्मक बना सकते हैं।
ज्ञान माला (Gyan Mala) by Khemraj Publication
एक दिन राजा परीक्षित् राजगद्दी पर बैठे थे तिसी समय श्रीकृष्ण द्वैपायन श्रीव्यास देव जी के पुत्र श्री शुकदेव जी आये, राजा देखते ही सिंहास- न से उठ खड़ा हुआ और ऋषि के चरणारविंद में गिर के साष्टांग दण्डवत् कीनी । फिर बडे आदर और सत्कार सहित उनको सुन्दर स्थान में ले जाके रत्नजडित सिंहासन पे बैठाय दोऊ चरण- कमलों को धोके चरणोदक लिया और विधि- पूर्वक पूजन करके नाना प्रकार की सामग्री भोजन करवायी, जब श्रीशुकदेवजी प्रसन्नतासहित बैठे तब राजाने दोऊ कर जोड़के विनती कीनी कि, कृपासिंधु दीनदयालु !
आपकी अति दयालुता से सदैव वेद और पुराण के सुनने से मेरे हृदय में चांदना होता है और मनको आनन्द प्राप्त होता है परन्तु अब मेरे मन में एक सन्देह उत्पन्न भया है कि, संसारमें ऊंचे और नीचे दोऊ कर्म हैं सो आप कृपा करके इन दोनों कमों के भेद भिन्न २ मोसे कहो और मेरे मनका संदेह निवारण करो । राजाका यह प्रश्न सुनकर श्रीशुकदेवजी बहुत प्रसन्न भये और आज्ञा कीनी कि है राजा ! तेरे प्रश्न से संसारी मनुष्यों को बड़ा लाभ है और जो यह संदेह तेरे मनमें उपजा है सोही अर्जुनके मन में उत्पन्न भया था सो श्रीकृष्णजी ने उसके प्रश्नों का जिस भांति उत्तर दिये सोही मैं तेरे आगे कहता हूँ तू मन देके सुन श्रीशुकदेवजीका राजा परीक्षितसे ऊंच नीच कर्मका भेद वर्णन करना ।
हे राजा । एक दिन प्रातःकाल श्रीकृष्णजी अर्जुन के गृह पधारे, खबर पायी कि अर्जुन सोके है यह बात सुनके श्रीकृष्णजी अचंभे में रहे फिर अर्जुन ने श्रीकृष्णजी को स्वप्नमें देखा और तुरत जाग उठा, सेवकों ने अर्जुन सों यह कही कि, हे स्वामी ! श्रीकृष्णजी पधारे हैं यह सुनकर अर्जुन दौड़कर श्रीकृष्णजीके चरणारविंद में गिरा और दण्डवत् करिके स्थित हो दोऊ कर जोड़के विनती कीनी कि हे सच्चिदानन्द जगदीश ! मोते यह अपराध अनजाने ही बन पड़ा है सो आप कृपा करके क्षमा करो और मेरी रक्षा करो ।
यह सुन के श्रीकृष्णजी ने अर्जुन से कहा कि है अर्जुन ! तू बड़ा बुद्धिमान और ज्ञानी है या समय मैंने तुझे सोया स्वप्नावस्था में देखके बहुत शोच कीनो है क्योंकि मनुष्यदेह कठिनता से प्राप्त होती है सो या मनुष्य देहको पायके ऐसे समय में सोना बुद्धिमान को उचित नहीं है, ये वचन श्रीकृष्णजी के सुनके अर्जुन ने फिर विनती करके प्रश्न कियो कि हे दीनबंधु दीनानाथ ! जो अपराध सेवक सों अनजाने बन आया है। वाको कृपा दृष्टि से क्षमा करके अब आप कृपा करके आज्ञा करो कि कौन कौन से अहित – कारी कर्मन का त्याग करना अवश्य है ? तब श्रीकृष्णजीने उत्तर दियो कि हे मित्र ! जो बातें वेदसे गुप्त हैं और देवताओं ने जानी नहीं हैं सो तेरे आगे कहता हूँ मन लगाय के सुन और इन शिक्षाओं को तू अथवा और कोई जो सुनेगा या पढ़ेगा या प्रेमपूर्वक इसकी एक प्रति अंगीकार करेगा या ब्राह्राणको दान करेगा सो पापके बन्धनसे छटके मुक्ति पावेगा ।
You can download the ज्ञान माला (Gyan Mala) PDF using the link given below.
