गणपति सहस्रनाम स्तोत्र – Ganapati Sahasranama Stotram - Summary
गणपति सहस्रनाम स्तोत्र (Ganapati Sahasranama Stotram) का महत्व गणेश पुराणम में लिखा गया है। भगवान गणेश ने मुझे इस स्तोत्र का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। जब मैंने इस कार्य की समीक्षा, संपादन एवं संकलन समाप्त किया, तब गणेश की कृपा मेरे ऊपर स्पष्ट थी। गणपति सहस्रनाम का महत्व इस तथ्य में भी है कि भास्करराय, जिन्होंने ललिता शस्त्रनाम पर एक भाष्य लिखा था, ने गणपति सहस्रनाम के लिए भी एक भाष्य खद्योता में लिखा।
गणपति सहस्रनाम स्तोत्र का महत्व
फलश्रुति में वर्णित कुछ मूर्त परिणाम हैं: बाधाओं को दूर करना, प्रसिद्धि, तीव्र बुद्धि, योगिनी, भूत, प्रेत, और पैसों जैसे नकारात्मक तत्वों से मुक्ति, धन की प्राप्ति, शत्रुओं पर विजय, अच्छा स्वास्थ्य और शारीरिक शक्ति, समीचीन ज्ञान, अच्छी संतति, बुरे सपनों से सुरक्षा, वरिष्ठों के साथ अनुकूल संबंध, और गर्भाक्ष जैसे हानिकारक प्रभावों से सुरक्षा।
अगर आप इस गणपति सहस्रनाम स्तोत्र को PDF के रूप में डाउनलोड करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करें और दीक्षा मंत्र की सिद्धि के लिए जपे। यह स्तोत्र विशेष रूप से धार्मिक गतिविधियों का पालन करने की प्रवृत्ति में मदद करता है।
गणपति सहस्रनाम स्तोत्र (Ganapati Sahasranama Stotram)
मुनिरुवाच
कथं नाम्नां सहस्रं तं गणेश उपदिष्टवान् ।
शिवदं तन्ममाचक्ष्व लोकानुग्रहतत्पर ॥ 1 ॥
ब्रह्मोवाच
देवः पूर्वं पुरारातिः पुरत्रयजयोद्यमे ।
अनर्चनाद्गणेशस्य जातो विघ्नाकुलः किल ॥ 2 ॥
मनसा स विनिर्धार्य ददृशे विघ्नकारणम् ।
महागणपतिं भक्त्या समभ्यर्च्य यथाविधि ॥ 3 ॥
विघ्नप्रशमनोपायमपृच्छदपरिश्रमम् ।
सन्तुष्टः पूजया शम्भोर्महागणपतिः स्वयम् ॥ 4 ॥
सर्वविघ्नप्रशमनं सर्वकामफलप्रदम् ।
ततस्तस्मै स्वयं नाम्नां सहस्रमिदमब्रवीत् ॥ 5 ॥
अस्य श्रीमहागणपतिसहस्रनामस्तोत्रमालामन्त्रस्य ।
गणेश ऋषिः, महागणपतिर्देवता, नानाविधानिच्छन्दांसि ।
हुमिति बीजम्, तुङ्गमिति शक्तिः, स्वाहाशक्तिरिति कीलकम् ।
सकलविघ्नविनाशनद्वारा श्रीमहागणपतिप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
अथ करन्यासः
गणेश्वरो गणक्रीड इत्यङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
कुमारगुरुरीशान इति तर्जनीभ्यां नमः ॥
ब्रह्माण्डकुम्भश्चिद्व्योमेति मध्यमाभ्यां नमः ।
रक्तो रक्ताम्बरधर इत्यनामिकाभ्यां नमः
सर्वसद्गुरुसंसेव्य इति कनिष्टिकाभ्यां नमः ॥
लुप्तविघ्नः स्वभक्तानामिति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अथ अङ्गन्यासः
छन्दश्छन्दोद्भव इति हृदयाय नमः ।
निष्कलो निर्मल इति शिरसे स्वाहा ।
सृष्टिस्थितिलयक्रीड इति शिखायै वषट् ।
ज्ञानं विज्ञानमानन्द इति कवचाय हुम् ।
अष्टाङ्गयोगफलभृदिति नेत्रत्रयाय वौषट् ।
अनन्तशक्तिसहित इत्यस्त्राय फट् ।
भूर्भुवः स्वरोम् इति दिग्बन्धः ।
अथ ध्यानम्
गजवदनमचिन्त्यं तीक्ष्णदंष्ट्रं त्रिनेत्रं
बृहदुदरमशेषं भूतिराजं पुराणम् ।
अमरवरसुपूज्यं रक्तवर्णं सुरेशं
पशुपतिसुतमीशं विघ्नराजं नमामि ॥
श्रीगणपतिरुवाच
ॐ गणेश्वरो गणक्रीडो गणनाथो गणाधिपः ।
एकदन्तो वक्रतुण्डो गजवक्त्रो महोदरः ॥ 1 ॥
…………….. (for brevity the rest of the stotram text would follow here)