चित्रगुप्त आरती Chitragupta Aarti - Summary
भगवान चित्रगुप्त, जिन्हें देवलोक के धर्म अधिकारी के रूप में जाना जाता है, लेखन से गहरा जुड़ाव रखते हैं। इसलिए, इस खास अवसर पर कलम और दवात की पूजा बहुत खास होती है। भगवान चित्रगुप्त का ज़िक्र कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जैसे पद्य पुराण, स्कन्द पुराण, ब्रह्मपुराण, यमसंहिता, और याज्ञवलक्य स्मृति। अगर आप चित्रगुप्त आरती PDF डाउनलोड करना चाहते हैं, तो आप यहाँ सही जगह पर हैं। यहाँ आपको चित्रगुप्त आरती आसानी से मिल जाएगी।
चित्रगुप्त आरती का महत्व और पूजा तरीका
चित्रगुप्त आरती करना बहुत फलदायक माना जाता है। भाईदूज के दिन भक्त श्री चित्रगुप्त जी का पंचामृत स्नान, श्रृंगार, हवन और आरती करते हैं। इस खास दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाने से पहले भगवान चित्रगुप्त की खास पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि चित्रगुप्त की आरती करने से भाई की उम्र लंबी होती है और उन्हें सुख-समृद्धि मिलती है। चित्रगुप्त आरती का पाठ करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
चित्रगुप्त पूजा कब होती है?
चित्रगुप्त की पूजा खासतौर पर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को की जाती है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त को खीर का भोग लगाया जाता है और खास आराधना की जाती है। अगर आपके घर में चित्रगुप्त जी की तस्वीर या मूर्ति नहीं है, तो आप उनके रूप में एक कलश रखकर भी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा और चित्रगुप्त आरती कर सकते हैं। भगवान चित्रगुप्त हमारे कर्मों का हिसाब रखते हैं और उसी के अनुसार न्याय करते हैं।
चित्रगुप्त जी की आरती (Chitragupt Aarti in Hindi – ऑनलाइन पढ़ें या PDF डाउनलोड करें 2025)
ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,
प्रकटभये स्वामी॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
कलम, दवात, शंख, पत्रिका,
करमें अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणनमें धाये॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
यादतुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
दारा, सुत, भगिनी,
सबअपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा,
आसकरूँ जिसकी॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते।
‘नानक’ शरण तिहारे,
आसन दूजी करते॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे।
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