Laxmi Chalisa Aarti (लक्ष्मी चालीसा, स्तुति, स्तोत्र, और आरती) - Summary
श्री लक्ष्मी चालीसा इन हिन्दी PDF (Laxmi Chalisa) हिन्दी अनुवाद सहित: प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन लक्ष्मी पूजन करने का विशेष विधान है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके लंका विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे थे।
इसी दिन भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि की कैद से लक्ष्मी सहित अन्य देवताओं को छुड़वाया, जिससे उनका सारा धन-धान्य, राजपाठ और वैभव लक्ष्मीजी की कृपा से पुनः परिपूर्ण हुआ था। इसीलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है। मां लक्ष्मी भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं और इनकी सिद्धि से ही जीवन में भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
सम्पूर्ण लक्ष्मी चालीसा हिन्दी में (Laxmi Chalisa Lyrics in Hindi)
॥दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥
अर्थ: हे मां लक्ष्मी, कृपा करके मेरे हृदय में वास करो। मेरी मनोकामनाओं को सिद्ध कर मेरी आशाओं को पूर्ण करो।
॥सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥
अर्थ: हे मां, मेरी यही अरदास है। मैं हाथ जोड़कर बस यही प्रार्थना कर रहा हूं कि आप हर प्रकार से मेरे यहां निवास करें। हे जननी, हे मां जगदम्बिका आपकी जय हो।
॥चौपाई॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
अर्थ: हे सागर पुत्री, मैं आपका ही स्मरण करता/करती हूं, मुझे ज्ञान, बुद्धि और विद्या का दान दो। आपके समान उपकारी दूसरा कोई नहीं है। हर विधि से हमारी आस पूरी हों, हे जगत जननी जगदम्बा आपकी जय हो, आप ही सबको सहारा देने वाली हो, सबकी सहायक हो। आप ही घट-घट में वास करती हैं, ये हमारी आपसे खास विनती है। हे संसार को जन्म देने वाली सागर पुत्री, आप गरीबों का कल्याण करती हैं।
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
अर्थ: हे मां महारानी, हम हर रोज आपकी विनती करते हैं, हे जगत जननी भवानी, सब पर अपनी कृपा करो। आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें। हे मां, हमारे अपराधों को भुलाकर हमारी सुध लें। मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए, हे जग जननी, मेरी विनती सुन लीजिए। आप ज्ञान, बुद्धि एवं सुख प्रदान करने वाली हैं, आपकी जय हो, हे मां, हमारे संकटों का हरण करो।
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
अर्थ: जब भगवान विष्णु ने दूध के सागर में मंथन करवाया, तो उसमें से चौदह रत्न प्राप्त हुए। हे सुखरासी, उन्हीं चौदह रत्नों में से एक आप भी थीं जिन्होंने भगवान विष्णु की दासी बनकर उनकी सेवा की। जब भी भगवान विष्णु ने जहां भी जन्म लिया अर्थात जब भी भगवान विष्णु ने अवतार लिया, आपने भी रूप बदलकर उनकी सेवा की। स्वयं भगवान विष्णु ने मानव रूप में जब अयोध्या में जन्म लिया, तब आप भी जनकपुर में प्रगट हुईं और सेवा कर उनके दिल के करीब रहीं। अंतर्यामी भगवान विष्णु ने आपको अपनाया, पूरा विश्व जानता है कि आप ही तीनों लोकों की स्वामी हैं।
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
अर्थ: आपके समान और कोई शक्ति नहीं आ सकती। आपकी महिमा का कितना भी बखान करें, वह शब्दों में नहीं आ सकती, अर्थात आपकी महिमा अकथ है। जो भी मन, वचन और कर्म से आपका सेवक है, उसके मन की हर इच्छा पूरी होती है। छल, कपट और चतुराई को त्याग कर विविध प्रकार से मन लगाकर आपकी पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मैं और क्या कहूं, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करता है, उसे कोई कष्ट नहीं मिलता और वह मनवांछित फल प्राप्त करता है।
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु सम्पति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
अर्थ: हे दुखों का निवारण करने वाली मां, आपकी जय हो। तीनों प्रकार के तापों सहित सारी भव बाधाओं से मुक्ति दिलाती हो। जो भी चालीसा को पढ़ता है, पढ़ाता है या फिर ध्यान लगाकर सुनता और सुनाता है, उसे किसी तरह का रोग नहीं सताता, उसे पुत्र आदि धन संपत्ति प्राप्त होती है। पुत्र एवं संपत्ति हीन हो, अथवा अंधा, बहरा, कोढ़ी या बहुत गरीब ही क्यों न हो, अगर वह ब्राह्मण को बुलाकर आपका पाठ करवाता है और दिल में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रखता, अर्थात पूरे विश्वास से पाठ करता है। चालीस दिनों तक पाठ करवाए तो हे मां लक्ष्मी आप उस पर अपनी दया बरसाती हैं।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
अर्थ: चालीस दिनों तक आपकी पाठ करने वाला सुख-समृद्धि और बहुत सी संपत्ती प्राप्त करता है। उसे किसी चीज की कमी नहीं होती। जो बारह मास आपकी पूजा करता है, उसके समान धन्य और दूसरा कोई भी नहीं है। जो मन ही मन हर रोज आपका पाठ करता है, उसके समान भी संसार में कोई नहीं है। हे मां, मैं आपकी क्या बड़ाई करूं? आप अपने भक्तों की परीक्षा भी अच्छे से लेती हैं।
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
अर्थ: जो भी पूर्ण विश्वास कर नियम से आपके व्रत का पालन करता है, उसके हृदय में प्रेम उपजता है और उसके सारे कार्य सफल होते हैं। हे मां लक्ष्मी, हे मां भवानी, आपकी जय हो। आप गुणों की खान हैं और सबमें निवास करती हैं। आपका तेज इस संसार में बहुत शक्तिशाली है, आपके समान दयालु और कोई नहीं है। हे मां, मुझ अनाथ की भी अब सुध ले लीजिये। मेरे संकट को काट कर मुझे आपकी भक्ति का वरदान दें।
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥
अर्थ: हे मां, अगर कोई भूल चूक हमसे हुई हो तो हमें क्षमा कर दें, अपने दर्शन देकर भक्तों को भी एक बार निहार लो मां। आपके भक्त आपके दर्शनों के बिना बेचैन हैं। आपके रहते हुए भारी कष्ट सह रहे हैं। हे मां, आप तो सब जानती हैं कि मुझे ज्ञान नहीं है, मेरे पास बुद्धि नहीं, अर्थात मैं अज्ञानी हूं आप सर्वज्ञ हैं। अब अपना चतुर्भुज रूप धारण कर मेरे कष्ट का निवारण करो मां। मैं और किस प्रकार से आपकी प्रशंसा करू, इसका ज्ञान व बुद्धि मेरे अधिकार में नहीं, अर्थात आपकी प्रशंसा करना वश की बात नहीं है।
॥दोहा॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
अर्थ: हे दुखों का हरण करने वाली मां, दुख ही दुख हैं, आप सब पापों का हरण करो। हे शत्रुओं का नाश करने वाली मां लक्ष्मी, आपकी जय हो, जय हो। रामदास प्रतिदिन हाथ जोड़कर आपका ध्यान धरते हुए आपसे प्रार्थना करता है। हे मां लक्ष्मी, अपने दास पर दया की नजर रखो।
॥ श्री लक्ष्मीजी की आरती ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निशदिन सेवत मैयाजी को निस दिन सेवत हर विष्णु विधाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता। ओ मैया तुम ही जग माता।
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत नारद ऋषि गाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
दुर्गा रूप निरंजनि सुख सम्पति दाता, ओ मैया सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुम को ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभ दाता, ओ मैया तुम ही शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता, ओ मैया सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता, ओ मैया वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव सब तुम से आता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता, ओ मैया क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता, ओ मैया जो कोई जन गाता।
उर आनंद समाता पाप उतर जाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
स्थिर चर जगत बचावे कर्म प्रेम ल्याता। ओ मैया जो कोई जन गाता।
राम प्रताप मैय्या की शुभ दृष्टि चाहता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
महालक्ष्मी स्तुति (Lakshmi Mahalaxmi Stuti)
आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि।
यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।1।।
सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि।
पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।2।।
विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि।
विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।3।।
धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि।
धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।4।।
धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते।
धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।5।।
मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि।
प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।6।।
गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वदेव स्वरूपिणि।
अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।7।।
धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स्वरूपिणि।
वीर्यं देहि बलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।8।।
जय लक्ष्मी नमस्तेऽस्तु सर्व कार्य जयप्रदे।
जयं देहि शुभं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।9।।
भाग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सौमाङ्गल्य विवर्धिनि।
भाग्यं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।10।।
कीर्ति लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु विष्णुवक्ष स्थल स्थिते।
कीर्तिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।11।।
आरोग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व रोग निवारणि।
आयुर्देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।12।।
सिद्ध लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व सिद्धि प्रदायिनि।
सिद्धिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।13।।
सौन्दर्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वालङ्कार शोभिते।
रूपं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।14।।
साम्राज्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मोक्षं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।15।।
मङ्गले मङ्गलाधारे माङ्गल्ये मङ्गल प्रदे।
मङ्गलार्थं मङ्गलेशि माङ्गल्यं देहि मे सदा।।16।।
सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।17।।
शुभं भवतु कल्याणी आयुरारोग्य सम्पदाम्।
।। इति लक्ष्मी स्तुति संपूर्णम ।।
इंद्रकृत लक्ष्मी स्त्रोत (Lakshmi Stotram)
ऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम:।
कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम:।।1।।
पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम:।
पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम:।।2।।
सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नम:।
सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नम:।।3।।
हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नम:।
कृष्णवक्ष:स्थितायै च कृष्णेशायै नमो नम:।।4।।
कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने।
सम्पत्त्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नम:।।5।।
शस्याधिष्ठातृदेव्यै च शस्यायै च नमो नम:।
नमो बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नम:।।6।।
वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्लक्ष्मी: क्षीरोदसागरे।
स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहे राजलक्ष्मीर्नृपालये।।7।।
गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता।
सुरभी सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामिनी।।8।।
अदितिर्देवमाता त्वं कमला कमलालये।
स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्यदाने स्वधा स्मृता।।9।।
त्वं हि विष्णुस्वरूपा च सर्वाधारा वसुन्धरा।
शुद्धसत्त्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायणा।।10।।
क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना।
परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा।।11।।
यया विना जगत् सर्वं भस्मीभूतमसारकम्।
जीवन्मृतं च विश्वं च शवतुल्यं यया विना।।12।।
सर्वेषां च परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी।
यया विना न सम्भाष्यो बान्धवैर्बान्धव: सदा।।13।।
त्वया हीनो बन्धुहीनस्त्वया युक्त: सबान्धव:।
धर्मार्थकाममोक्षाणां त्वं च कारणरूपिणी।।14।।
यथा माता स्तनन्धानां शिशूनां शैशवे सदा।
तथा त्वं सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपत:।।15।।
मातृहीन: स्तनत्यक्त: स चेज्जीवति दैवत:।
त्वया हीनो जन: कोऽपि न जीवत्येव निश्चितम्।।16।।
सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके।
वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि।।17।।
वयं यावत् त्वया हीना बन्धुहीनाश्च भिक्षुका:।
सर्वसम्पद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये।।18।।
राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि।
कीर्तिं देहि धनं देहि यशो मह्यं च देहि वै।।19।।
कामं देहि मतिं देहि भोगान् देहि हरिप्रिये।
ज्ञानं देहि च धर्मं च सर्वसौभाग्यमीप्सितम्।।20।।
प्रभावं च प्रतापं च सर्वाधिकारमेव च।
जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च।।21।।
फलश्रुति:
इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:।
कुबेरतुल्य: स भवेद् राजराजेश्वरो महान्।
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत् सोपि कल्पतरुर्नर:।
पंचलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।
सिद्धिस्तोत्रं यदि पठेन्मासमेकं च संयत:।
महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशय:।
लक्ष्मी पूजा विधि
- एक चौकी पर माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि लक्ष्मी की दाईं दिशा में श्रीगणेश रहें और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे।
- उनके सामने बैठकर चावलों पर कलश की स्थापना करें।
- इस कलश पर एक नारियल लाल वस्त्र में लपेट कर इस प्रकार रखें कि उसका केवल अग्रभाग ही दिखाई दे।
- दो बड़े दीपक लेकर एक में घी और दूसरे में तेल भरकर रखें। एक को मूर्तियों के चरणों में और दूसरे को चौकी की दाईं तरफ रखें।
- इसके अलावा एक छोटा दीपक गणेशजी के पास भी रखें।
- फिर शुभ मुहूर्त के समय जल, मौली, अबीर, चंदन, गुलाल, चावल, धूप, बत्ती, गुड़, फूल, धानी, नैवेद्य आदि लेकर सबसे पहले पवित्रीकरण करें। फिर सभी दीपकों (न्यूनतम 26 दियों को जलाना शुभ माना जाता है) को जलाकर उन्हें नमस्कार करें। उन पर चावल छोड़ दें। पहले पुरुष और बाद में स्त्रियां गणेशजी, लक्ष्मीजी व अन्य देवी-देवताओं का विधिवत षोडशोपचार पूजन, श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त व पुरुष सूक्त का पाठ करें और आरती उतारें।
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