त्रिपिंडी श्राद्ध विधि | Tripindi Shraddha Vidhi Hindi

त्रिपिंडी श्राद्ध विधि | Tripindi Shraddha Vidhi Hindi PDF Download

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त्रिपिंडी श्राद्ध विधि | Tripindi Shraddha Vidhi Hindi

त्रिपिंडी श्राद्ध विधि | Tripindi Shraddha Vidhi हिन्दी PDF डाउनलोड करें इस लेख में नीचे दिए गए लिंक से। अगर आप त्रिपिंडी श्राद्ध विधि | Tripindi Shraddha Vidhi हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको दे रहे हैं त्रिपिंडी श्राद्ध विधि | Tripindi Shraddha Vidhi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और पीडीएफ़ का direct डाउनलोड लिंक।

त्रिपिंडी श्राद्ध का अर्थ है पिछली तीन पीढ़ियों से पूर्वजों के पिंड का दान करना होता हैं । अगर किसी की पिछली तीन पीढ़ियों मे परिवार के किसी भी व्यक्ति की कम उम्र या बुढ़ापे में मर जाता है तब वो लोग परिवार के लिए समस्या पैदा करते हैं। तब उन लोगों की आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करना पड़ता है।

यदि लगातार तीन वर्षों तक यह योगदान नहीं किया गया तो वे प्रियजन क्रोधित हो जाते है । इसलिए उन्हें शांत करने के लिए ये योगदान किए जाते हैं। अधिकांश लोगों का विचार है कि त्रिपिंडी का अर्थ है 3 पीढ़ी के पूर्वजों (पिता-माता, दादाजी-दादी और परदादा- परदादी ) को संतुष्ट करना। लेकिन यह 3 पीढ़ियों के साथ प्रकट नहीं होता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध विधि पीडीएफ़ | Tripindi Shraddha Vidhi

त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रम्हा, विष्णु तथा महेश की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा करके पूजन करने का विधान है। जो आत्मा आपको परेशान कर रही थी वह त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद प्रेत योनि से मुक्त हो जाएगी।

त्रिपिंडी श्राद्ध कब करना चाहिए :-  कोई भी आत्मा जो अपने जीवन में शांत नहीं है और शरीर छोड़ चुकी है, भविष्य की पीढ़ियों को परेशान करती है। ऐसी आत्मा को ‘त्रिपिंडी श्राद्ध’ की सहायता से मोक्ष की प्राप्ति करवाई जा सकती  है। श्राद्ध का उद्देस्य पूर्वजों के लिए उनके अपने वंशजों द्वारा ईमानदारी से किया गया अनुष्ठान है।

त्रिपिंडी श्राद्ध करने का लाभ :- त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिये पितृ पक्ष के दिनों में पिशाच मोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। श्राद्ध की इस विधि और पिशाच मोचन तीर्थस्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व

जिसकेभी कुंडली में पितृ दोष, काल सर्प दोष या ग्रहण दोष होते हैं, उनके जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं मिलता है। पितृ दोष के मुख्य कारणों में पंचम स्थान में सूर्य का नीच होना, आगे-पीछे ग्रह का नहीं होना, लग्न सूर्य मंगल, शनि अथवा आठवें एवं बारहवें भाव में गुरु एवं राहु का होना पितृ दोष का सृजन करते हैं। जिसके चलते जीव इस संसार में बड़ा ही कष्ट पाता है। इससे मुक्ति पाने के लिए पितरों को इस समय ही नारायण नाग-नागबली या त्रिपिंडी श्राद्ध द्वारा शांत किया जाता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध की सामग्री

  • धूप बत्ती (अगरबत्ती),
  • कपूर,
  • केसर और चन्दन,
  • यज्ञोपवीत,
  • कुमकुम,
  • चावल,
  • अबीर,
  • गुलाल,
  • अभ्रक,
  • हल्दी,
  • आभूषण,
  • नाड़ा,
  • रुई,
  • रोली,
  • सिंदूर,
  • सुपारी,
  • पान के पत्ते,
  • पुष्पमाला,
  • कमलगट्टे,
  • धनिया खड़ा सप्तमृत्तिका,
  • सप्तधान्य,
  • कुशा व दूर्वा,
  • पंच मेवा,
  • गंगाजल, शहद (मधु) और शकर,
  • घृत (शुद्ध घी), दही और दूध,
  • ऋतुफल,
  • नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि) इलायची (छोटी), लौंग, मौली, इत्र की शीशी, सिंहासन (चौकी आसन), पंच पल्लव आदि।

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Also Check – सुगम श्राद्ध पद्धति पीडीएफ़

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