संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran) - Summary
संस्कृत व्याकरण के अध्ययन में आपकी मदद करने के लिए यह लेख यहाँ प्रस्तुत किया गया है। संस्कृत भारतीय उपमहाद्वीप की एक धार्मिक भाषा है, जिसे देववाणी और सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा है, जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा है।
आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि सभी संस्कृत से विकसित हुई हैं। इनमें यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गए हैं। इसके अलावा, बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) और जैन धर्म के कई महत्वपूर्ण ग्रंथ भी संस्कृत में उपलब्ध हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं।
संस्कृत व्याकरण – Sugam Sanskrit Vyakaran
संस्कृत में व्याकरण की परंपरा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कारण यह वेद का एक प्रमुख अंग माना जाता है (देखें ‘वेदांग’)। व्याकरण के मुख्यतः पाँच प्रयोजन होते हैं – रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह। व्याकरण के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक यह है: “विहस्य” छठी विभक्ति का है और “विहाय” चौथी विभक्ति का है; “अहम् और कथम्”(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकते हैं।
संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी और सुरभारती के नाम से भी जाना जाता है। यह भाषा पूरे विश्व में अपनी प्राचीनता के लिए जानी जाती है। आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास भी इसी से हुआ है। संस्कृत में वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का समृद्ध संग्रह है, जो आज भी धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयोग किया जाता है।
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