Ramcharitmanas (श्री रामचरितमानस) - Summary
रामचरितमानस (श्री रामचरितमानस) भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह शायद ही कोई हिन्दू परिवार होगा जहाँ रामचरितमानस न हो। यह ग्रंथ बड़े महलों से लेकर छोटी झोपड़ियों तक में श्रद्धा और सम्मान के साथ पढ़ा जाता है। कुछ लोग इसे धार्मिक दृष्टि से, कुछ इसे ऐतिहासिक दृष्टि से और अन्य इसे राजनैतिक दृष्टि से अध्ययन करते हैं।
यह ग्रंथ उस समय की रचना है जब हिन्दू जनता अपना सारा साहस और शक्ति खो चुकी थी। विदेशी आक्रमणकारियों का प्रभाव भारत में स्थापित हो चुका था। उस समय दो भिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं का संघर्ष हो रहा था। इसी समय में भक्त कवि तुलसीदास (Tulsidas) का जन्म हुआ, जिन्होंने लोक चित्त को जगाने वाली शक्तियों की पहचान की। उन्होंने भगवान राम के दिव्य चरित्र को गाया और समाज में नव-जागरण की प्रेरणा दी।
रामचरितमानस चौपाई अर्थ सहित – Ramcharitmanas Hindi
इस महान ग्रंथ में तुलसीदास जी ने भगवान राम को अपने आराध्य के रूप में लिया और उनके गुणों का वर्णन किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सभी काव्य शैलियों का सुंदर प्रयोग किया है। ‘मानस’ का शिल्प अनूठा है।
मानस में कुल सात कांड हैं –
- बालकाण्ड (Balkand)
- अयोध्याकाण्ड (Ayodhya Kand)
- अरण्यकाण्ड (Aranya Kand)
- किष्किन्थाकाण्ड (Kishkindha Kand)
- सुन्दरकाण्ड (Sunderkand)
- लंकाकाण्ड (Lanka Kand)
- उत्तरकाण्ड (Uttar Kand)
तुलसीदास जी ने इस महाकाव्य में अवधी भाषा का प्रयोग कर इसे आम जन के लिए सुलभ बनाया। इसमें दोहा-चौपाई की शैली बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत की गई है।
रामचरितमानस मे कथा का शिल्प अत्यंत बुद्धिमत्तापूर्ण है। इसमें भगवान राम के पावन चरित्र का विस्तार से वर्णन हुआ है। यह सच है कि मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं और भावनाओं का इतना सुंदर वर्णन किसी और महाकाव्य में नहीं मिलता।
‘रामचरितमानस’ एक अद्वितीय महाकाव्य है। भगवान राम ‘मानस’ के धीरोदात्त नायक हैं। वे परब्रह्म होते हुए भी इस ग्रंथ में एक गृहस्थ की तरह प्रकट होते हैं। वे सदैव आदर्श की रक्षा करते हैं। तुलसीदास ने इस काव्य के माध्यम से समाज को मानवीय मूल्यों की दीक्षा दी है जो समय और स्थान की परिधियों से परे हैं।
सम्पूर्ण रामचरितमानस – Ram Charit Manas
यह अद्भुत ग्रंथ गोसाईं जी ने संवत् 1631, चैत्र शुक्ला 6 (रामनवमी) मंगलवार को 42 वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया। यह उनका पहला ग्रंथ माना जाता है। उन्होंने इसे अयोध्या में आरंभ किया और अरण्यकाण्ड तक लिखकर काशी चले गए, जहाँ उन्होंने इसे पूरा किया। गोसाईं जी ने इसे ‘रामचरित मानस’ नाम दिया और इसमें सात सोपान बनाए।
गोसाईं जी ने संसार के कल्याण के लिए मनोहारी ग्रंथ की रचना की। इसमें श्रीरामचन्द्र जी का पवित्र चरित्र ऐसे जल की तरह है जिसमें प्रेम और भक्ति की मिठास और शीतलता है। इसे पढ़ने वाले भक्तों के लिए यह पवित्र अनुभव है।
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