लव स्टोरी – Love Story By Rajvansh - Summary
लव स्टोरी (Love Story) एक दिलचस्प प्रेम कहानी का उदाहरण है जो राजवंश और उनकी प्यार भरी जीवन यात्रा को दर्शाता है। इस किताब में प्रेम और संबंधों को सुंदरता से और जीवंतता के साथ वर्णित किया गया है। आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके राजवंश द्वारा लव स्टोरी को PDF प्रारूप में डाउनलोड कर सकते हैं।
राजवंश की प्रेम कहानी का सार
(लव स्टोरी) Rajvansh Love Story
संगीत की तरंगें धीरे-धीरे बह रही थीं और हॉल में ट्यूबलाइट का चांदनी जैसा प्रकाश छिटका हुआ था। खिड़की के पास ही रात की रानी के महकते हुए पौधे चुपचाप गुमसुम खड़े थे… राजन ने सिगरेट का अंतिम कश खींचकर सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक दी। उसी समय पीछे से संध्या ने उसके कंधे पर हाथ रखा। राजन बिना उसे देखे कठोर स्वर में बोला, “क्यों आई हो मेरे पास ?”
“इधर देखो तो बताऊं….”
राजन धीरे से संध्या की ओर मुड़ा। संध्या ने उसकी आंखों में देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ कहा, “चैन नहीं पड़ता तुम्हें रूठे देखकर…”
“फिर स्वयं क्यों रूठ जाती हो?”
“इस आशा पर कि शायद तुम कभी स्वयं ही मना लो।”
“यह जानते हुए भी कि…”
“कि तुम किसी को नहीं मनाते…” संध्या आंखें मींचकर खोलती हुई मुस्कराई।
“कठोर हृदय हो ना… आज तक तुम्हें ही सब मनाते चले आए हैं … तुमने कभी किसी को नहीं मनाया… तुम क्या जानो किसी को मनाने में कितना आनन्द आता है…”
“अच्छा… .” राजन ने संध्या की आंखों में देखकर कहा, “तो एक बार फिर रूठ कर देखो… मैं देखूंगा कि कितना आनन्द आता है मनाने में….”
“नहीं…” संध्या राजन के कंधे से सिर लगाकर बोली, “अब में तुमसे कभी नहीं रूलूंगी… डरती हूं, किसी दिन तुम रूठे ही रह गए तो मैं कहीं की न रहूंगी…”
“सच…!” राजन की मुस्कराहट गहरी हो गई।
“काश! तुम्हें मेरे प्यार पर विश्वास आ सके..”
“यदि विश्वास न होता तो इतने फूलों में से मैं तुम्हें न चुनता…” राजन धीरे से बोला, “आओ यह काठ के फर्श का हृदय तुम्हारे चांदी के से पैरों तले धड़कने को व्याकुल है…”
“या एक राजकुमार के कोमल चरणों को चूमने के लिए…..” राजन ने संध्या की कमर में हाथ डाल दिया और दोनों वहीं से साज की ध्वनि पर नृत्य करते हुए काठ के फर्श की ओर बढ़ने लगे… एक मेज़ पर बैठे हुए जोड़े ने उन्हें देखा और स्त्री ने एक ठंडी सांस ली।
“हाय! कितने खोए-खोए हैं एक-दूसरे में…”
“काश! कभी तुम भी इसी भाव से मुझे देखतीं।”
“हां! तुम्हें… तुममें और राजन में कौन-सी बात एक है ?”
“तो फिर तुमने मुझे किसलिए चुना था ?”
“इसलिए कि राजन ने संध्या को चुन लिया था।” स्त्री हंस पड़ी।
पुरुष ने बुरा-सा मुंह बनाकर शराब का गिलास होंठों से लगा लिया और चुस्कियां लेने लगा। एक दूसरी मेज पर बैठे हुए जोड़े में से स्त्री ने कहा, “हाय राजकुमार है. बिल्कुल राजकमार…”
“करोड़पति है ना..” पुरुष बुरा-सा मुंह बनाकर बोला, “तुम स्त्रियों को हर वह व्यक्ति राजकुमार दिखाई देता है जो पैसा पानी के समान बहाए…”
“और तुम पुरुष हर ऐसे व्यक्ति से इसलिए जल उठते हो कि किसी बात में उससे होड़ नहीं ले सकते…”
“तो जाओ ना, हाथ थाम लो उसका…”
“जब भी संध्या ने छोड़ा अवश्य थामने का प्रयत्न करूंगी…”
राजन और संध्या साज पर झूमते-झूमते नाचने वालों की भीड़ में सम्मिलित हो चुके थे… संध्या ने राजन के कंधे से सिर लगाकर आंखें बन्द कर लीं… उसके पांव स्वयं ही साज की धीमी गति पर सर के साथ उठ रहे थे।
“क्या सोच रही हो…?” राजन ने धीरे से पूछा।
“कुछ नहीं… एक स्वप्न देख रही हूं…” संध्या गुनगुनाई।
“क्या? मैं भी तो सुनूं…”
“हमारा ब्याह हो गया है और हम यहां से दूर स्विटजरलैण्ड के सुन्दर वातावरण में ‘हनीमून’ मना रहे हैं…”
“यह कोई स्वप्न है… यह तो अर्थ है पगली… हमारे प्यार के स्वप्न का …”
“जो शायद कभी साकार न हो सके…”
…अब दिन ही कितने रह गए हैं इस स्वप्न को साकार होने में… केवल दो महीने बाद “हत्… परीक्षा है… परीक्षा समाप्त होते ही सफलता की पार्टी में हमारी सगाई की घोषणा हो जाएगी और कुछ समय बाद ब्याह…”
“तुम्हें परीक्षा में अपनी सफलता का इतना विश्वास है?”
“विश्वास मेरा नहीं… मुझे पढ़ाने वालों का है… वे लोग कहते हैं कि जो शब्द मेरी दृष्टि से एक बार गुजर जाए उसे मैं कभी नहीं भूलता… कहो तो पाठ्य पुस्तक का कोई भी पाठ दोहराऊं…”
संध्या मुस्कराई, फिर ठंडी सांस लेकर बोली, “फिर भी पांच-छ: महीने तो लगेंगे ही…”
“पांच-छ: महीने तो पलक झपकने में ही बीत जाएंगे…”
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