Guru Gita (गुरु गीता) - Summary
गुरु गीता (गुरु गीता) एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है, जिसे “गुरु का गीत” कहा जाता है। यह पवित्र हिंदू धर्मग्रंथ “स्कंद पुराण” से लिए गए छंदों का एक अनमोल संग्रह है। इसे श्रद्धेय भारतीय ऋषि व्यास ने लिखा है और इसमें भगवान शिव और उनकी पत्नी एवं शिष्या, देवी पार्वती के बीच एक विचारशील वार्तालाप का वर्णन किया गया है। गुरु गीता का पाठ करने से न केवल अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है, बल्कि यह सभी संकटों का नाश भी करती है और नवग्रहों के भय को दूर करती है।
गुरु गीता का पाठ करने से महाव्याधि भी दूर होती है और भक्तों को सर्व ऐश्वर्य एवं सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और यदि सही मनन एवं चिंतन किया जाए, तो जीवन में उन्नति संभव है। प्रभुप्रेम और ज्ञान से मन का विकास होता है।
गुरु गीता का महत्व
गुरु गीता एक अद्भुत हिन्दू ग्रंथ है, जिसके रचयिता भगवान सदाशिव हैं। यह वास्तव में स्कंद पुराण का एक अंश है और इसमें कुल 352 श्लोक शामिल हैं। गुरु गीता में भगवान शिव और देवी पार्वती के संवाद से हमें यह समझने को मिलता है कि गुरु का महत्व क्या है। पार्वती, भगवान शिव से गुरु की महत्ता को समझने का अनुरोध करती हैं।
भगवान शंकर इस ग्रंथ में गुरु की पूजा की विधि, गुरु गीता के लाभ, और उत्कृष्ट सद्गुरु की महिमा को स्पष्ट रूप से वर्णित करते हैं। इस ग्रंथ में शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि का भी सही विवरण दिया गया है।
गुरु गीता में श्रद्धा और पूजा
गुरु गीता में बताया गया है कि जब शिष्य गुरु की शरण में जाता है, तो उसे पूर्णत्व प्राप्त होता है, और वह स्वयं ब्रह्मरूप बन जाता है। उसके सभी धर्म और अधर्म, पाप और पुण्य समाप्त हो जाते हैं, और केवल एकमात्र चैतन्य ही शेष रह जाता है। वह गुणातीत और रूपातीत हो जाता है—यह उसकी अंतिम गति है, जहाँ वह पहुँच जाता है। यही उसका असली स्वरूप है, जिसे वह प्राप्त कर लेता है।
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