दुर्गा चालीसा आरती सहित Maa Durga Chalisa Aarti Sahit 2025 - Summary
दुर्गा चालीसा आरती सहित (Maa Durga Chalisa Aarti Sahit) नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर मां दुर्गा की पूजा में सबसे महत्वपूर्ण होती है। यह दुर्गा चालीसा न केवल मां दुर्गा की सुंदर स्तुति का तरीका है, बल्कि इससे भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति भी मिलती है। अगर आप दुर्गा चालीसा आरती सहित PDF डाउनलोड करना चाहते हैं, तो यह आपके लिए बहुत फायदेमंद होगा। यह 2025 में मां दुर्गा की पूजा करने वाले भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ है।
दुर्गा चालीसा आरती सहित PDF डाउनलोड करें
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दुर्गा चालीसा और आरती का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि में हर दिन दुर्गा चालीसा का पाठ करना बहुत लाभदायक होता है। इससे न केवल मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं, बल्कि भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। नवरात्रि के दौरान दिनभर व्रत रखने वाले श्रद्धालु शाम को आरती करते हैं और दुर्गा चालीसा का पाठ कर मां की पूजा पूरी करते हैं। यह पूजा शत्रुओं से रक्षा, जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाने में मदद करती है। दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ 2025 में आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
मां दुर्गा की महिमा और भक्तिपाठ
मां दुर्गा ने धर्म की रक्षा के लिए कई रूप धारण किए हैं और उन्होंने संसार के अंधकार को दूर किया है। उनकी पूजा, उनकी चालीसा और आरती के जरिए भक्तों का मनोबल बढ़ता है और वे अपने जीवन की हर मुश्किल का सामना कर पाते हैं। भलाई, समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक मां दुर्गा की रोज़ की स्तुति से जीवन में नए रास्ते खुलते हैं। दुर्गा चालीसा आरती सहित का पाठ आपको मां दुर्गा के और करीब लाता है।
Durga Chalisa Lyrics
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा Amit न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमirौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
माँ दुर्गा चालीसा आरती (Maa Durga Ji Ki Aarti)
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुणडाल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुja चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
दुर्गा चालीसा आरती सहित PDF 2025 डाउनलोड करने के लिए ऊपर दिए गए लिंक का उपयोग करें। यह आपको माँ दुर्गा की कृपा पाने में मदद करेगा।