Ganesh Chalisa (गणेश चालीसा) - Summary
गणेश चालीसा हिन्दी अनुवाद सहित – गणेश चालीसा का नित्य पाठ करने से गंभीर मुकदमों एवं परेशानियों में जीत मिलती है। श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से “बुध दोष” भी दूर हो जाता है। श्री गणेश चालीसा का नित्य पाठ करने से विद्यार्थियों का मन एकाग्रचित होकर नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है।
गणेश चालीसा का रोज़ पाठ करने से व्यक्ति सुखी एवं स्वस्थ रहता है। श्री गणेश जी की कृपा से वह धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। रिद्धि-सिद्धि के स्वामी के आशीर्वाद से व्यक्ति की दरिद्रता, कर्ज एवं सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
गणेश चालीसा इन हिंदी – Ganesh Chalisa in Hindi
दोहा
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
अर्थ: हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश, आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप कष्टों का हरण कर सबका कल्याण करते हैं। माता पार्वती के लाडले श्री गणेश जी महाराज, आपकी जय हो।
चौपाई
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभः काजू॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥
अर्थ: हे देवताओं के स्वामी, देवताओं के राजा, हर कार्य को शुभ और कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो। घर-घर सुख प्रदान करने वाले, हे हाथी के समान विशालकाय शरीर वाले गणेश भगवान, आपकी जय हो। आप समस्त विश्व के विनायक हैं, आप ही बुद्धि के विधाता हैं। आपका सुहावना हाथी का मुंह और पवित्र तिलक, आपके मस्तक पर सोने का मुकुट और बड़ी-बड़ी आंखें आकर्षक हैं। आपके हाथ में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल हैं। आपको मोदक का भोग और सुगंधित फूल चढ़ाए जाते हैं। पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सजे हुए हैं। आपकी चरण पादुका इतनी खूबसूरत हैं कि ऋषि-मुनियों का मन भी उन्हें देखकर खुशी से भर जाता है। आप भगवान शिव के पुत्र और षडानन यानि कार्तिकेय के भाई हैं। माता पार्वती के पुत्र, आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है। ऋद्धि-सिद्धि हमेशा आपकी सेवा में रहती हैं और आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक खड़ा रहता है।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै॥
अर्थ: हे प्रभु, आपकी जन्मकथा का कहना और सुनना बहुत ही शुभ और मंगलकारी है। एक समय गिरिराज कुमारी यानि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठिन तप किया। जब उनका तप और यज्ञ पूर्ण हो गया, तो आप वहाँ ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए। माता पार्वती ने आपको अतिथि मानकर अनेक प्रकार से सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर आपने माता को वर दिया कि हे माता, आप बुद्धिमान बालक का ज्ञान प्राप्त करेंगी। आपने कहा कि आप बिना गर्भ धारण किए (इस पल) पुत्र प्राप्त करेंगी, जो सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, गुणों और ज्ञान का निर्धारण करेगा और जिसे पूरी दुनिया पहले रूप में पूजा करेगी। यह कहकर आप अंतर्धान हो गए और पालने में बालक के रूप में प्रकट हो गए।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥
अर्थ: माता पार्वती के उठाते ही आपने रोना शुरू कर दिया। माता पार्वती आपको गौर से देखती रहीं, आपका मुख बहुत ही सुंदर था और माता पार्वती में आपकी सुंदरता नहीं मिल रही थी। सभी लोग खुशी से मगन होकर नाचने लगे। देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे। भगवान शंकर और माता उमा ने आशीर्वाद दिया। देवता, ऋषि, मुनि सब आपके दर्शन के लिए पधारे। आपको देखकर हर कोई आनंदित था। आपको देखने के लिए भगवान शनिदेव भी आए, लेकिन वे मन ही मन घबरा रहे थे।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो। उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥
अर्थ: शनिदेव को इस तरह बचते हुए देखकर माता पार्वती नाराज हो गईं और शनि से कहा कि आप हमारे पुत्र के आगमन से खुशी नहीं महसूस कर रहे। शनिदेव ने कहा, “मेरा मन सकुचा रहा है, मुझे बालक को दिखाकर क्या करोगी? कुछ अनिष्ट हो जाएगा।” परंतु माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने शनिदेव को बालक देखने के लिए कहा। जैसे ही शनिदेव की नजर बालक पर पड़ी, बालक का सिर आकाश में उड़ गया।
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
अर्थ: अपने शिशु को सिर विहीन देखकर माता पार्वती को बहुत दुख हुआ और वे बेहोश होकर गिर गईं। उस समय माता पार्वती की जो हालत हुई, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनिदेव ने शिव-पार्वती के पुत्र को देख लिया। उसी समय भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहां आए और अपने सुदर्शन चक्र से हाथी का सिर काटकर ले पहुंचे। उन्होंने उस सिर को बालक के धड़ के ऊपर रख दिया। फिर भगवान शिव ने मंत्रों का जाप करके उसमें प्राण डाल दिए। इस समय भगवान शिव ने आपको गणेश नाम दिया और वरदान दिया कि संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी। अन्य देवताओं ने भी आपको बुद्धि निधि सहित अनेक वरदान दिए।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
अर्थ: जब भगवान शिव ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली, तो पूरे पृथ्वी का चक्कर लगाने का आदेश दिया। आदेश होते ही कार्तिकेय तो भ्रम में पड़कर पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने निकल पड़े, लेकिन आपने अपनी बुद्धि लगाते हुए एक उपाय खोजा। आपने अपने माता-पिता के चरणों को छूकर उन्हें ही सात चक्कर लगाकर दिखाया। इस प्रकार आपकी बुद्धि और श्रद्धा को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए और देवताओं ने आसमान से फूलों की बारिश की।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुंदर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
अर्थ: हे भगवान श्री गणेश, आपकी बुद्धि और महिमा का गुणगान हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता। हे प्रभु, मैं तो मूर्ख और दुखी हूं। मैं किस विधि से आपकी प्रार्थना करूं? श्री गणेश के दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करते हैं। इस दुनिया में प्रयाग के ककरा गांव में दुर्वासा जैसे ऋषियाँ भी हैं। हे प्रभु, अब दीन दुखियों पर दया कीजिए और अपनी शक्ति और भक्ति की कृपा करें।
दोहा
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश॥
अर्थ: श्री गणेश की इस चालीसा का जो ध्यान से पाठ करते हैं, उनके घर में हर रोज सुख और शांति आती रहती है और उसे समाज में प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है। सहस्त्र यानि हजारों संबंधों का निर्वाह करते हुए भी ऋषि पंचमी (गणेश चतुर्थी के अगले दिन भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी) के दिन भगवान श्री गणेश की यह चालीसा पूरित हुई।
गणेश चालीसा पाठ विधि इन हिंदी
- स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। जिस स्थल पर प्रतिमा विराजमान करनी है, उसे साफ करें। गंगाजल डालकर पवित्र करें।
- भगवान गणेश की प्रतिमा को चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर विराजमान करें।
- धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं। ध्यान रखें कि जब तक गणेश जी आपके घर में रहेंगे, तब तक अखंड दीपक जलाकर रखें।
- गणेश जी के मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाएं।
- फिर चावल, दुर्वा घास और पुष्प अर्पित करें।
- गणेश जी का स्मरण कर गणेश स्तुति और गणेश चालीसा का पाठ करें।
- इसके बाद ॐ गं गणपते नमः का जप करें।
- भगवान गणेश की आरती करें।
- आरती के बाद गणेश जी को फल या मिठाई आदि का भोग लगाएं। संभव हो तो मोदक का भोग जरूर लगाएं। भगवान गणेश को मोदक प्रिय हैं।
- रात्रि जागरण करें।
- गणेश जी को जब तक अपने घर में रखें, उन्हें अकेला न छोड़ें। कोई न कोई व्यक्ति हर समय गणेश जी की प्रतिमा के पास रहे।
Ganesh Aarti in Hindi
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूषक की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
Ganesh Chalisa Video Mein Dikhayen
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