मृत्युंजय – शिवाजी सावंत (Mrutyunjay) - Summary
मृत्युंजय (Mrutyunjay) एक अद्भुत ऐतिहासिक कादंबरी है जिसे प्रसिद्ध लेखक श्री शिवाजी सावंत ने लिखा है। यह कादंबरी महाभारत के एक खास दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जिसमें भीष्म पितामह अपने अंतिम क्षणों में अर्जुन को ज्ञान देते हैं। यह किताब सबसे पहले संस्कृत में लिखी गई और बाद में अन्य भाषाओं में अनुवादित की गई।
“मृत्युंजय” कादंबरी महाभारत के इस महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करती है, जो हमें धर्म, नैतिकता और विचारों के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करती है। यह कादंबरी भारतीय साहित्य का एक अनमोल रत्न है और इसके लेखक श्री शिवाजी सावंत का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मृत्युंजय कादंबरी – Mrutyunjay Book Download
हिरण्यकेशी नदी के किनारे बसे, कोल्हापूर जिले के आजरा नामक खूबसूरत और छोटे से गांव में 31 अगस्त 1940 को शिवाजीराव सावंत का जन्म हुआ। उन्होंने व्यंकटराव प्रशाले से प्रथम श्रेणी में शालान्त परीक्षा उत्तीर्ण की। परिस्थितियों के कारण उन्हें महाविद्यालयी शिक्षा को एफ.वाय.बी.ए. के बाद छोड़ना पड़ा और वाणिज्य विषय के लघुलिपी और टंकलेखन के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा।
कोल्हापुर के राजाराम प्रशाले में उन्होंने 20 साल तक अध्यापन किया। इसके बाद वे पुणे आए और महाराष्ट्र शासन के ‘लोकशिक्षण’ मासिक में छह साल तक कार्य किया।
श्री शिवाजी सावंत को भारतीय जीवन और संस्कृति पर गर्व था। जैसे ही उन्होंने कहा, ‘मेरा भारत महाभारत है’, उनके मन में महाभारत का गहरा अध्ययन करने की जिज्ञासा जाग उठी। उन्होंने उन तत्वों को खोजा जो भारतीय समाज को अस्मिता भुलाने के कगार पर होने के बावजूद अपने अपने मूल्यों और आदर्शों के प्रति जागरूक कर सके।
जबरदस्त शोध और गहन चिंतन के बाद, उन्होंने एक लंबी और संपूर्ण कादंबरी की रचना की, जो न केवल महाभारत के पात्रों को जीवित करती है, बल्कि हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनती है।
महाराष्ट्र सरकार और केसरी-मराठा संस्था ने ‘मृत्युंजय’ को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया। विशेष रूप से, बंगाली पाठकों ने ‘विवेक संस्थान’ द्वारा 1986 में ‘पूनमचंद भुतोडिया’ पुरस्कार देकर इसे बहुत सराहा।
दिल्ली के भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 1995 में ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ से भी इसे सम्मानित किया गया। इस कादंबरी का हिंदी में अनुवाद 1974 में दिल्ली के भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसके बाद, कन्नड़, गुजराती और मलयालम में भी इसके अनुवाद हुए हैं।
1980 में, सावंत ने छत्रपती संभाजी राजें की जीवनी पर ‘छावा’ कादंबरी लिखी। उन्होंने कई नाटक भी लिखे, जिनमें से ‘मृत्युंजय’ को मोहन वाघ के चंद्रलेखा नाट्यसंस्थान ने कई वर्षों तक मंचित किया।
श्री सावंत का स्वर्ण युग 1983 से लेकर 2000 के दशक तक विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति और योगदान से भरा रहा।
विभिन्न कोर्स, पुरस्कार और सम्मान पाने के बावजूद, श्री सावंत का एक आकस्मिक निधन 18 सितंबर 2002 को हुआ, जो साहित्य प्रेमियों के लिए एक बड़ी क्षति थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी मृणालिनी, बेटी कादंबिनी धारप और बेटा अमिताभ हैं।
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