आर्थिक समीक्षा 2022-2023 - Summary
केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट से पहले आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2022-23 PDF में पेश किया है। वर्ष 2023 को आर्थिक समीक्षा अवधि वैश्विक स्तर पर अनिश्चतापूर्ण है। अभी महामारी से उबर ही रहे थे कि फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध छिड़ गया भोजन, ईंधन और उर्वरक की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जैसे-जैसे मुद्रास्फीति की दर में तेजी आई. उन देशों के केन्द्रीय बैंकों ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी मौद्रिक नीति को सख्त किया। कई विकासशील देशों विशेषरूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्रों को कमजोर, मुद्रा, उच्च आयात को कीमतों जीवन यापन की बदती लागत और मजबूत डॉलर के मेल के कारण गंभीर आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, जिससे सेवा और अधिक महंगी हो गई और इससे उबरना काफी मुश्किल साबित हुआ।
2023-24 के दौरान भारत की जीडीपी विकास दर 6.0 से 6.8 प्रतिशत रहेगी, जो वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर है। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 का अनुमान है कि जीडीपी विकास दर वित्त वर्ष 2024 के लिए वास्तविक आधार पर 6.5 प्रतिशत रहेगी। अर्थव्यवस्था की विकास दर मार्च 2023 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए 7 प्रतिशत (वास्तविक) रहने का अनुमान है, पिछले वित्त वर्ष में विकास दर 8.7 प्रतिशत रही थी। केन्द्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स), जो वित्त वर्ष 2023 के आठ महीनों के दौरान 63.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा, यह वर्तमान वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने का प्रमुख कारण रहा है।
आर्थिक समीक्षा 2022-2023 – Economic Survey 2022-2023 in Hindi
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के लिए ऋण में तेज वृद्धि दर्ज की गई है, जो जनवरी-नवम्बर, 2022 के दौरान औसत आधार पर 30.6 प्रतिशत रही और इसे केन्द्र सरकार की आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) का समर्थन मिला। एमएसएमई क्षेत्र में रिकवरी की गति तेज हुई है, जो उनके द्वारा भुगतान किए जाने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की धनराशि से परिलक्षित होती है। उनकी आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ऋण संबंधी चिंताओं को आसान कर रही है।
- इसके अलावा बैंक ऋण में हुई वृद्धि, उधार लेने वालों के बदलते रुझानों से भी प्रभावित हुई है, जो जोखिम भरे बॉन्ड मार्किट में निवेश कर रहे हैं, जहां धन अर्जन अधिक होता है। यदि मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में कम होती है और ऋण की वास्तविक लागत नहीं बढ़ती है तो वित्त वर्ष 2024 के लिए ऋण वृद्धि तेज रहेगी।
- केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) वित्त वर्ष 2023 के पहले 8 महीनों में 63.4 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख घटक रहा है। 2022 के जनवरी-मार्च तिमाही से नीजि पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है। वर्तमान रुझानों के अनुसार लगता है कि पूरे वर्ष के लिए पूंजीगत व्यय बजट हासिल कर लिया जाएगा। निजी पूंजीगत निवेश में भी वृद्धि होने का अनुमान है, क्योंकि कॉपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्र मजबूत हुए है जिससे ऋण देने में वृद्धि होगी।
- सर्वेक्षण ने महामारी के कारण निर्माण गतिविधियों में आई बाधाओं को रेखांकित किया है। सर्वेक्षण कहता है कि टीकाकरण से प्रवासी श्रमिकों को शहरों में वापस आने में सुविधा मिली है। इससे आवास बाजार मजबूत हुआ है। यह इस बात से परिलक्षित होता है कि विनिर्माण सामग्री के भंडार में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, जो पिछले साल के 42 महीनों के मुकाबले वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में 33 महीने रह गया है।
- सर्वेक्षण कहता है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार प्रदान कर रही है और अप्रत्यक्ष तौर पर ग्रामीण परिवारों को अपनी आय के स्रोतों में बदलाव लाने में मदद कर रही है। पीएम किसान और पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाएं देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है और इनके प्रभावों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने भी अनुशंसा प्रदान की है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के परिणामों ने भी दिखाया है कि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 तक ग्रामीण कल्याण संकेतक बेहतर हुए हैं, जिनमें लिंग, प्रजनन दर, परिवार की सुविधाएं और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
- सर्वेक्षण उम्मीद करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभावों से मुक्त हो चुकी है और वित्त वर्ष 2022 में दूसरे देशों की अपेक्षा तेजी से पहले की स्थिति में आ चुकी है। भारतीय अर्थव्यवस्था अब वित्त वर्ष 2023 में महामारी-पूर्व के विकास मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। हालांकि चालू वर्ष में भारत ने यूरोपीय संघर्ष के कारण हुई मुद्रास्फीति में वृद्धि को कम करने की चुनौती का सामना किया है। सरकार और आरबीआई के द्वारा किए गए उपायों और वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में आई कमी से नवंबर, 2022 से खुदरा मुद्रास्फीति को आरबीआई की लक्ष्य-सीमा से नीचे लाने में मदद मिली।
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