देवीभागवत पुराण (Shreemad Devi Bhagvat Puran) - Summary
देवी पुराण का पढ़ना और सुनना कई तरह की समस्याओं का समाधान कर सकता है। इससे भयंकर रोग, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूत-प्रेत बाधाओं, कष्ट योग, और अन्य आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आधिदैहिक कष्टों को दूर किया जा सकता है। सूतजी ने कहा कि वसुदेव जी द्वारा देवी भागवत पुराण का पारायण करने से प्रसेनजित संकट से मुक्त होकर सकुशल लौट आए। इस पुराण के श्रवण से दरिद्र व्यक्ति धनी बनता है, रोगी नीरोग होता है और पुत्रहीन माता-पिता संतान प्राप्त करते हैं। यह ग्रंथ सभी वर्गों के लिए पठनीय और श्रवण योग्य है, चाहे वह ब्राह्मण हो, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र। यह पुराण आयु, विद्या, बल, धन, यश और प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला अनमोल ग्रंथ है।
श्रीमद देवी भागवत पुराण
एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पुण्यात्मा महर्षियों ने श्री वेदव्यास के परम शिष्य सूतजी से प्रार्थना की कि, “हे ज्ञानसागर! आपके मुख से विष्णु भगवान और शंकर के देवी चरित्र और अद्भुत लीलाएं सुनकर हमें बहुत खुशी हुई। ईश्वर में हमारी आस्था बढ़ी और ज्ञान प्राप्त हुआ। कृपा करके मानव जाति को समस्त सुखों और आत्मिक शक्ति देने वाले इस पवित्रतम पुराण का आख्यान सुनाने का कष्ट करें।” सूतजी ने उनकी अभिलाषा को सुनकर कहा कि जन कल्याण की आकांक्षा से आपने बहुत सुंदर इच्छा प्रकट की है।
उन्होंने कहा, “यह सच है कि श्री मद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों में श्रेष्ठतम है। इसके सामने बड़े-बड़े तीर्थ और व्रत नगण्य हैं। इसके श्रवण से पाप जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक और दु:ख नहीं भोगने पड़ते। जैसे सूर्य के प्रकाश से अंधकार मिटता है, वैसे ही देवी भागवत पुराण के श्रवण से सभी कष्ट और दुख समाप्त हो जाते हैं।”
महात्माओं ने सूतजी से कई प्रश्न भी किए:
- यह पवित्र श्रीमद् देवी भागवत् पुराण कब प्रकट हुआ?
- इसके पठन-पाठन का उचित समय क्या है?
- इसका श्रवण करने से कौन-कौन सी इच्छाएं पूरी होती हैं?
- इस पुराण का श्रवण सबसे पहले किसने किया था?
- इसके पारायण की विधि क्या है?
पौराणिक महत्त्व
श्री कृष्ण ने प्रसेनजित को ढूंढ़ने के प्रयास में खो गए थे, परंतु श्री देवी भगवती के आशीर्वाद से सकुशल लौट आए। यह वृत्तांत महर्षियों की इच्छा से विस्तार से सुनाते हुए सूतजी ने कहा कि, “बहुत समय पहले द्वारका पुरी में भोजवंशी राजा सत्राजित रहते थे। सूर्य की भक्ति करने के कारण उन्होंने स्वमंतक नाम की अत्यंत चमकदार मणि हासिल की। इस मणि के प्रभाव से राजा सूर्य जैसी आभा से भासित होते थे। जब यादवों ने कृष्ण से भगवान सूर्य के आगमन की बात कही, तब कृष्ण ने स्पष्ट किया कि स्वमंतक मणिधारी राजा सत्राजित हैं, सूर्य नहीं। स्वमंतक मणि धारण करने वाला प्रतिदिन आठ किलो सोना प्राप्त करता है। उस प्रदेश में किसी भी प्रकार की विपत्ति का कोई चिन्ह नहीं था। स्वमंतक मणि सर्वोत्तम मणि थी, और इसे प्राप्त करने की इच्छा स्वयं कृष्ण की भी थी, लेकिन सत्राजित ने इससे इंकार कर दिया।”
आप देवीभागवत पुराण PDF को डाउनलोड कर सकते हैं नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके।