विश्वकर्मा स्तोत्र – Vishwakarma Stotram Sanskrit

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विश्वकर्मा स्तोत्र – Vishwakarma Stotram in Sanskrit

विश्वकर्मा स्तोत्र PDF भगवान श्री श्री विश्वकर्मा जी को समर्पित हैं जो इस संसार के प्रथम अभियन्ता (इंजीनियर) हैं।  यहाँ तक कि इस संसार का मानचित्र भी उन्ही ने निर्मित किया तय था। यह विश्वकर्मा स्तोत्र अत्यन्त उपयोगी है, जिसके नियमित पाठ के फलस्वरूप आप विभिन्न प्रकार के भूमि – भवन का सुख प्राप्त कर सकते हैं।

विश्वकर्मा जयंती के दिन विश्वकर्मा स्तोत्र का पाठ करने से सारे दखु दूर हो जाते हैं। यह विश्वकर्मा स्तोत्र अत्यन्त उपयोगी है, जिसके नियमित पाठ के फलस्वरूप आप विभिन्न प्रकार के भूमि – भवन का सुख प्राप्त कर सकते हैं।

विश्वकर्मा स्तोत्र – Vishwakarma Stotra

। विश्वकर्म ध्यानम् ।

न भूमिर्न जलञ्चैव न तेजो न च वायवः

नाकाशं च न चित्तञ्च न बुद्धीन्द्रियगोचराः

न च ब्रह्मा न विष्णुश्च न रुद्रश्च तारकाः

सर्वशून्या निरालम्बा स्वयम्भूता विराटसत्

सदापरात्मा विश्वात्मा विश्वकर्मा सदाशिवः ॥

श्रितमध्यतमध्यस्तं ब्रह्मादिसुरसेवितम् ।

लोकाध्यक्षं भजेऽहं त्वां विश्वकर्माणमव्ययम् ॥

प्राकादिदिङ्मुखोत्पन्नो सनकश्च सनातनः ।

अभुवनस्य प्रत्नस्य सुपर्णस्य नमाम्यहम् ॥

अखिलभुवनबीजकारणम् ।

प्रणवतत्त्वं प्रणवमयं नमामि ॥

पञ्चवक्त्रं जटाधरं पञ्चदशविलोचनम् ।

सद्योजाताननं श्वेतं च वामदेवन्तु कृष्णकम् ॥

अघोरं रक्तवर्णं च तत्पुरुषं हरितप्रभम् ।

ईशानं पीतवर्णं च शरीरं हेमवर्णकम् ॥

दशबाहुं महाकायं कर्णकुण्डलशोभितम् ।

पीताम्बरं पुष्पमालं नागयज्ञोपवीतिनम् ॥

रुद्राक्षमालासंयुक्तं व्याघ्रचर्मोत्तरीयकम् ।

पिनाकमक्षमालाञ्च नागशूलवराम्बुजम् ॥

वीणां डमरुकं बाणं शङ्खचक्रधरं तथा ।

कोटिसूर्यप्रतीकाशं सर्वजीवदयापरम् ॥

विश्वेशं विश्वकर्माणं विश्वनिर्माणकारिणम् ।

ऋषिभिः सनकाद्यैश्च संयुक्तं प्रणमाम्यहम् ॥

॥ इति विश्वकर्मस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

विश्विकर्मा पूजा विधि – Vishwakarma Pooja Vidhi

विश्वकर्मा जी की आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥1॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।

शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥2॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।

ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥3॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।

संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥4॥

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।

सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥5॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥6॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।

मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥7॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥8॥

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