श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur PDF Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur Hindi PDF Download

Download PDF of श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur in Hindi from the link available below in the article, Hindi श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur PDF free or read online using the direct link given at the bottom of content.

44 People Like This
REPORT THIS PDF ⚐

Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur (श्रीमद्भगवद्गीता) Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur हिन्दी PDF डाउनलोड करें इस लेख में नीचे दिए गए लिंक से। अगर आप Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur (श्रीमद्भगवद्गीता) हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको दे रहे हैं श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और पीडीएफ़ का direct डाउनलोड लिंक।

महाकाव्य महाभारत में कुल 18 पर्व है, जिसमें ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ छठे पर्व यानी भीष्म पर्व का भाग है। भीष्म पर्व में श्रीमद्भगवद्गीता को सभी शास्त्रों से युक्त कहा गया है। विद्वान ऐसा मानते हैं कि गीता में सभी चारों वेदों तथा शास्त्रों का निचोड़ निहित है। भीष्म पर्व में इसकी सार्थकता और महत्ता को बताते हुए यह बताया गया है कि जिसने श्रीमद्भगवद् को पूरा पढ़ लिया, उसे अन्य ग्रंथों की अध्ययन करने की कोई विशेष जरूरत नहीं होती।

गीता में हर दशा एवं स्थिति में एक तरह होने पर यानी समता (parity) पर जोर दिया गया है।

दुनिया में आज के समय में यदि गीता को इस ढंग से अध्ययन किया जाये तो पूरी मानवता का भला होगा। श्रीमद्भगवद्गीता में मानवों में समता, मानव एवं प्राणियों में समता और सारे प्राणियों में समता का वर्णन है। इस संबंध में गीता के भीष्म पर्व का छठा तथा 32वां श्लोक विशेष ध्यान देने योग्य है।

मनुष्य की क्या गति क्या है? इस प्रश्न पर आज का आदमी विशेष रूप से ज्यादा चिन्तित दिखाई देता हैं हालांकि आम आदमी यह बहुत अच्छी तरह जानता है कि जो जिस तरह का कर्म करेगा, वह उसी तरह का फल पाएगा। मनुष्य की यही प्रकृतिस्थ गति है। फिर भी मनुष्य इसका परिणाम जानते हुए भी सही कर्म नहीं करता और अंततः ज्यादा दुख ही भोगता है।

Geeta में प्राणियों के गुण तथा कर्म के अनुसार उनकी उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ, इन 3 गतियों का वर्णन किया गया हैं। कर्म योग एवं सांख्य योग की नजर से अच्छे भाव से किया गया कर्म और भक्ति करने वाले की गति तथा सामान्य रूप से सभी जीवों की गति का भी इसमें उचित उल्लेख किया गया है।

अपनी रचना के समय से ही श्रीमद्भगवद्गीता जन-सामान्य को प्रेरित करती आई है। वर्तमान समय का मनुष्य समस्याओं से ग्रस्त होकर गीता की ओर जाने का सोचता तो है, परन्तु वह गीता की ओर कितना जा पाता है, यह उसके कर्मों की गति से निर्धारित होता है।

दुनिया की लगभग 80 से ज्यादा भाषाओं में भगवद्गीता का अनुवाद हो चुका है। इसे पूरे विश्व में एक प्रमाणिक शास्त्र माना जाता है।

श्रीमद्भागवत गीता का एक संदेश – दूसरों का हित करना सबसे बड़ा धर्म

इस विशाल सृष्टि में मानव ऐसा प्राणी है, जिसमें विवेक का प्राधान्य होता है। अपने विवेक के माध्यम से उसने अनेक प्रकार के उद्यम करके वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नमि की है। इस उन्नति का लक्ष्य जीवन को सुखी बनाना है। सुख प्राप्त करने की उसकी यह अभिलाषा धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है। जब सुख के साधन केवल भौतिक सुखों तक ही सीमित रह जाते हैं, तो धीरे-धीरे स्वार्थ और ‘स्व’ की भावना बढ़ने से मनुष्य दूसरों के हित-अहित की चिंता किए बिना अपने ही सुख-साधनों को बढ़ाने में जुट जाता है।

इससे समाज के साधन-हीन वर्ग निरंतर शोषण की चक्की में पिसने लगते हैं। समाज में असंतुलन उत्पन्न होने और शोषण बढ़ने से असंतोष, अराजकता एवं अनैतिकता को बल मिलता है। प्रकृति भी इस मानवीय शोषक का शिकार होती है और अंततः इससे प्राकृतिक आपदाएं भी आने लगती है। मानव का पूर्ण और प्राकृतिक जीवन केवल लिप्सा, भोग और कामनाओं के जाल में घिर जाता है। इससे मानवता के समर्थक दुख पाते है। लेकिन इसका एक पक्ष और भी है, कि निजी स्वार्थ से उठकर कुछ लोग मानवता की भलाई में ही अपने जीवन को समर्पित कर देते हैं।

परहित का अर्थ:- परहित दो शब्दों के योग से बना हैं – पर हित। पर का अर्थ है – अपनों से अतिरिक्त कोई भी दूसरा तथा हित का अर्थ है- भलाई। अतः इस शब्द का अर्थ है – दूसरों की भलाई। दूसरों का अर्थ है – वे लोग, जो हमारे अपने नहीं हैं, जिनसे हमारा कोई स्वार्थ नहीं है। कभी-कभी हम अपने नाते-रिश्ते के लोगों प्रति भी करूणा की भावना रखकर उनका हित करते हैं। लेकिन अपने प्रियजन-परिजन, नाते-रिश्तेदारी का हित करना वास्तव में मनुष्य का नैतिक कर्तव्य होता है। इसे सहायता रूप में जाना जा सकता है। इसका भी महत्व होता है और यह सद् कर्म है, मानवीयता है और मानव का धर्म भी है।

लेकिन परहित इससे भिन्न अर्थ संकेतित करता है। जब अपने हित-अहित, लाभ-हानि का ध्यान रखे बिना, दूसरे लोगों का हित, उनकी भलाई की जाती है तो यही कर्म परहित कहलाता है। परहित करने वाला व्यक्ति परोपकारी होता है। सभी प्रकार की कामना और इच्छाओं को त्यागकर ही वह दूसरों की सेवा करता है।

भारतीय संस्कृति में पाप और पुण्य की चर्चा भी होती है। व्यवहार और चरित्र के धरातल पर ये दो मूल्य माने गए हैं। अपना हित सोचना मानव का कर्तव्य है और धर्म भी। लेकिन अपने हित के कार्यों को इस प्रकार करना कि दूसरों को किसी प्रकार की हानि न उठानी पड़े, यह उससे भी श्रेष्ठ कर्म है। इनके अतिरिक्त तीसरा पक्ष भी है- अपने हित-अहित की चिंता किए बिना, जब कोई मानव दूसरों की सेवा या सहायता करता है तो यह श्रेष्ठ कर्म परहित होता है।

विश्व इतिहास और साहित्य में इस प्रकार के अनेक चरित्र हुए हैं, जिनमें ईसा मसीह, बुद्ध, गांधी, नानक, दयानंद सरस्वती, राम कृष्ण, भगत सिंह, चंद्रशेखर, सुभाषा आदि महान व्यक्तित्व हैं। इन महान चरित्रों में यही समानता देखी जाती है कि इनके कार्यों से लोगों को पीड़ा और दुख से मुक्ति मिली तभी वे सुख ओर बढ़े हैं।

आप (श्रीमद्भगवद्गीता) Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur PDF को डाउनलोड करे नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके।

2nd Page of श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur PDF
श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur
PDF's Related to श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur

Download link of PDF of श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur

REPORT THISIf the purchase / download link of श्रीमद्भगवद्गीता – Srimad Bhagavad Gita by Gita Press Gorakhpur PDF is not working or you feel any other problem with it, please REPORT IT by selecting the appropriate action such as copyright material / promotion content / link is broken etc. If this is a copyright material we will not be providing its PDF or any source for downloading at any cost.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *