सामुद्रिक शास्त्र (Samudrik Shastra) - Summary
समुद्रशास्त्र: जीवन पर प्रभाव
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, समुद्री तत्वों के गुण और उनके आलोचना आपके जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अंतर्गत, समुद्री तत्वों की स्थिति, गति, और परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है ताकि व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन किया जा सके। यह दृष्टिकोण न केवल ज्ञानवर्धक है, बल्कि हमारे जीवन की कई पहलुओं को समझने में मदद करता है।
सामुद्रिक शास्त्र विद्या – Samudrik Shastra Book Download
- पहला भाग
- मूल बात
- हस्त परीक्षा
- हथेली
- हस्त परिचय
- हाथ की उंगलिया
- नाखून
- ग्रह ज्ञान
- चिन्ह ज्ञान
- दूसरा भाग
- रेखा विचार
- जीवन रेखा
- स्वास्थ्य रेखा
- हृदय रेखा
- मस्तक रेखा
- भाग्य रेखा
- सूर्य रेखा
- विवाद रेखा
- सन्तान रेखा
- मणिबन्ध रेखा
- फुटकर रेखायें
- रेखाओं का महत्य
- तीसरा भाग
- शारीरिक लक्षण
- दाहिना पैर
- पांया पैर
मानव जाति के करतल में शंख, चक्र, यव, पद्मादि जो चिन्ह दिखाई पड़ते हैं उन्हें ‘कराङ्क’ कहते हैं। विभिन्न आकार की जो रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं उन्हें ‘कर-रेखा’ कहा जाता है। जिस प्रकार पदाङ्क और ललाट-रेखा दोनों के सामञ्जस्य से मानव के जीवन का शुभाशुभ निश्चित किया जाता है, उसी प्रकार केवल करतल को देखने से ही मनुष्य के जीवन की समस्त घटनावली का एक चित्र बन जाता है।
अब भी पाश्चात्य देशों के ज्योतिषी हाथ देखकर प्रत्यक्ष फल दिवाकर सर्व साधारण में प्रतिष्ठित होते हैं। किसी सुप्रसिद्ध पाश्चात्य पण्डित ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है: ‘हम लोग वलवती कामना लेकर घोर अन्धकार में भटक कर सदा यश और भाग्य के अन्वेषण में श्रान्त हुआ करते हैं; फिर भी करतल स्थित दीपक की कोई सहायता नहीं लिया करता। इसकी अपेक्षा आश्चर्य का और कौन विषय हो सकता है?’ सरलता से संक्षेप में, जिज्ञासुगण इन प्रयोजनीय करतल रेखाओं का स्थूल मम ग्रहण करने में समर्थ हो सकें, इस दृष्टि से उसका कुछ परिचय यहां प्रस्तुत किया जाता है।
हाथ की रेखाएँ दो प्रकार की होती हैं — अङ्क के समान और रेखाओं के समान। शंख, चक्र, गदा आदि के विज्ञान की ‘अ-कोठी’ और उसके अन्तर्गत रेखादि विचार के विज्ञान को ‘रेखा कोठी’ कहते हैं। यहाँ पहले पहल अङ्क-कोष्ठी के सम्बन्ध में लिखा जाता है।
जिन जिन ग्रहों से, जिन जिन विषयों की घटनाएँ स्थिर की जाती हैं, वह संक्षेप में ये हैं: शुक्र ग्रह से विवाह और प्रेम, बृहस्पति से मान-सम्भ्रम, शनि से दुःख, कृशादि, बुध से विद्या-बुद्धि, चन्द्र से आन्तरिक पीड़ा, दुःख आदि और मंगल ग्रह से सामर्थ्य, पराक्रम, अस्त्राग्निभय आदि।
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