मनुस्मृति सटीक विचार Sanskrit
मनुस्मृति में 12 अध्याय हैं, जिनमें 2684 श्लोक हैं। यह एक प्राचीन विशाल ग्रंथ है। इस ग्रंथ को प्राचीन भारतीय संविधान भी कहा जाता था लेकिन इसके कुछ अध्याय को लेकर हमेशा विवाद रहता है। मनुस्मृति में बताया गया है कि कुछ लोगों से भूलकर भी विवाद नहीं करना चाहिए। इन लोगों से विवाद करने पर ना केवल धन का हानि होती है बल्कि मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है। मनुस्मृति की बात को अगर जीवन में धारण कर लिया जाए तो कई तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।
मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है। यह 1776 में अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले पहले संस्कृत ग्रंथों में से एक था, ब्रिटिश फिलॉजिस्ट सर विलियम जोंस द्वारा, और ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के लाभ के लिए हिंदू कानून का निर्माण करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है।
मनुस्मृति सटीक विचार (Manusmruti Satik)
जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते।
अर्थ – जो जन्म से शूद्र होते हैं, कर्म के आधार पर द्विज कहलाते हैं।
धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥
अर्थ – धर्म के दस लक्षण हैं – धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, स्वच्छता, इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना (अक्रोध)।
नास्य छिद्रं परो विद्याच्छिद्रं विद्यात्परस्य तु।
गूहेत्कूर्म इवांगानि रक्षेद्विवरमात्मन: ॥
वकवच्चिन्तयेदर्थान् सिंहवच्च पराक्रमेत्।
वृकवच्चावलुम्पेत शशवच्च विनिष्पतेत् ॥
अर्थ – कोई शत्रु अपने छिद्र (निर्बलता) को न जान सके और स्वयं शत्रु के छिद्रों को जानता रहे, जैसे कछुआ अपने अंगों को गुप्त रखता है, वैसे ही शत्रु के प्रवेश करने के छिद्र को गुप्त रक्खे। जैसे बगुला ध्यानमग्न होकर मछली पकड़ने को ताकता है, वैसे अर्थसंग्रह का विचार किया करे, शस्त्र और बल की वृद्धि कर के शत्रु को जीतने के लिए सिंह के समान पराक्रम करे। चीते के समान छिप कर शत्रुओं को पकड़े और समीप से आये बलवान शत्रुओं से शश (खरगोश) के समान दूर भाग जाये और बाद में उनको छल से पकड़े।
नोच्छिष्ठं कस्यचिद्दद्यान्नाद्याचैव तथान्तरा।
न चैवात्यशनं कुर्यान्न चोच्छिष्ट: क्वचिद् व्रजेत् ॥
अर्थ – न किसी को अपना जूठा पदार्थ दे और न किसी के भोजन के बीच आप खावे, न अधिक भोजन करे और न भोजन किये पश्चात हाथ-मुंह धोये बिना कहीं इधर-उधर जाये।
तैलक्षौमे चिताधूमे मिथुने क्षौरकर्मणि।
तावद्भवति चांडालः यावद् स्नानं न समाचरेत् ॥
अर्थ – तेल-मालिश के उपरान्त, चिता के धूंऐं में रहने के बाद, मिथुन (संभोग) के बाद और केश-मुण्डन के पश्चात – व्यक्ति तब तक चांडाल (अपवित्र) रहता है जब तक स्नान नहीं कर लेता – मतलब इन कामों के बाद नहाना जरूरी है।
अनुमंता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी।
संस्कर्त्ता चोपहर्त्ता च खादकश्चेति घातका: ॥
अर्थ – अनुमति (= मारने की आज्ञा) देने, मांस के काटने, पशु आदि के मारने, उनको मारने के लिए लेने और बेचने, मांस के पकाने, परोसने और खाने वाले – ये आठों प्रकार के मनुष्य घातक, हिंसक अर्थात् ये सब एक समान पापी हैं।
मनुस्मृति की संरचना एवं विषयवस्तु
मनुस्मृति भारतीय आचार-संहिता का विश्वकोश है, मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा दो हजार पाँच सौ श्लोक हैं, जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, संस्कार, नित्य और नैमित्तिक कर्म, आश्रमधर्म, वर्णधर्म, राजधर्म व प्रायश्चित आदि विषयों का उल्लेख है।
- जगत् की उत्पत्ति
- संस्कारविधि, व्रतचर्या, उपचार
- स्नान, दाराघिगमन, विवाहलक्षण, महायज्ञ, श्राद्धकल्प
- वृत्तिलक्षण, स्नातक व्रत
- भक्ष्याभक्ष्य, शौच, अशुद्धि, स्त्रीधर्म
- गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ, मोक्ष, संन्यास
- राजधर्म
- कार्यविनिर्णय, साक्षिप्रश्नविधान
- स्त्रीपुंसधर्म, विभाग धर्म, धूत, कंटकशोधन, वैश्यशूद्रोपचार
- संकीर्णजाति, आपद्धर्म
- प्रायश्चित्त
- संसारगति, कर्म, कर्मगुणदोष, देशजाति, कुलधर्म, निश्रेयस।
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