मंगल चंडिका स्तोत्र (Mangala Chandika Stotram) PDF Sanskrit

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मंगल चंडिका स्तोत्र (Mangala Chandika Stotram) Sanskrit

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श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का वर्णन ब्रह्मवार्ता पुराण में देखने को मिल जायेगा श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् पूरी तरह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ हैं श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का जाप करने से उस व्यक्ति की सभी इच्छाये पूरी हो जाती हैं।  चंडीका देवी महात्म्य की सर्वोच्च देवी मानी जाती है दुर्गा सप्तशती में चंडीका देवी को चामुंडा या माँ दुर्गा कहा गया हैं।

चंडीका देवी महाकाली, महा लक्ष्मी और महा सरस्वती का एक संयोजन रूप हैं श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का व्यक्ति नियमित रूप से जाप करता हैं उसे धन, व्यापार, गृह-कलेश आदि समस्या से परेशानी नही आती हैं।  जिस भी जातक का विवाह में परेशानी आ रही हो तो उसे श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का नियमित जाप करने से शादी में आ रही परेशानी दूर हो जाती हैं।

मंगल चंडिका स्तोत्र | Mangala Chandika Stotram

श्रीमङ्गलचण्डिकास्तोत्रं अथवा मङ्गलागौरीस्तोत्रम्

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके ।
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः ॥ १॥

पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः ।
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥ २॥

मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः ।
ध्यानञ्च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् ॥ ३॥

देवीं षोडशवर्षीयां रम्यां सुस्थिरयौवनाम् ।
सर्वरूपगुणाढ्याञ्च कोमलाङ्गीं मनोहराम् ॥ ४॥

श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् ।
वह्निशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् ॥ ५॥

बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् ।
बिम्बोष्टीं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् ॥ ६॥

ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् ।
जगद्धात्रीञ्च दात्रीञ्च सर्वेभ्यः सर्वसम्पदाम् ॥ ७॥

संसारसागरे घोरे पीतरुपां वरां भजे ॥ ८॥

देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने ।
प्रयतः सङ्कटग्रस्तो येन तुष्टाव शङ्करः ॥ ९॥

॥ शङ्कर उवाच ॥

रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके ।
संहर्त्री(संहर्त्रि) विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके ॥ १०॥

हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके ।
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके ॥ ११॥

मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्वमङ्गलमङ्गले ।
सतां मङ्गलदे देवि सर्वेषां मङ्गलालये ॥ १२॥

पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते ।
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य सन्ततम् ॥ १३॥

मङ्गलाधिष्ठातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले ।
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि ॥ १४॥

सारे च मङ्गलाधारे पारेत्वं सर्वकर्मणाम् ।
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये त्वं मङ्गलप्रदे ॥ १५॥

स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् ।
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वागतः शिवः ॥ १६॥

देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श‍ृणोति समाहितः ।
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् ॥ १७॥

प्रथमे पूजिता देवी शम्भुना सर्वमङ्गला ।
द्वितीये पूजिता देवी मङ्गलेन ग्रहेण च ॥ १८॥

तृतीये पूजिता भद्रा मङ्गलेन नृपेण च ।
चतुर्थे मङ्गले वारे सुन्दरीभिश्च पूजिता ।

पञ्चमे मङ्गलाकाङ्क्षैर्नरैर्मङ्गलचण्डिका ॥ १९॥
पूजिता प्रतिविश्वेषु विश्वेशैः पूजिता सदा ।

ततः सर्वत्र सम्पूज्य सा बभूव सुरेश्वरी ॥ २०॥
देवादिभिश्च मुनिभिर्मनुभिर्मानवैर्मुने ।

देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श‍ृणोति समाहितः ॥ २१॥
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत्तदमङ्गलम् ।

वर्द्धन्ते तत्पुत्रपौत्रा मङ्गलं च दिने दिने ॥ २२॥

॥ इति श्री ब्रह्मवैवर्ते द्वितीये प्रकृतिखण्डे
नारद नारायणसंवादे मङ्गलोपाखाने तत्स्तोत्रादिकथनं नाम
चतुश्चत्वारिंशत्तमोऽध्याये मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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