Jaya Parvati Vrat Katha Gujarati PDF
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Jaya Parvati Vrat is observed in Ashada Maas by unmarried girls and married women in Gujarat and some other Western India parts. This vrat is observed for five days a year for 5, 7, 9, or maybe even 11 years.
Jaya Parvati vrat katha (the story or legend of Jaya Parvati vrat) is associated with a Brahmin woman who observed this vrat to get her husband free from his curse(was not really a curse). The divine couple Lord Shiva and Goddess Parvati is worshipped during this vrat.
જયા પાર્વતી વ્રત અષાhad મહિનાના શુક્લ પક્ષની ત્રયોદશી તિથિ પર મનાવવામાં આવે છે. આ દિવસે દેવી પાર્વતી માટે વ્રત રાખવામાં આવે છે અને તેમાંથી ભાગ્યશાળી અને સમૃદ્ધ લોકોનો આશીર્વાદ પ્રાપ્ત થાય છે. આ વ્રત ખાસ કરીને મહિલાઓ દ્વારા મનાવવામાં આવે છે. આ વર્ષે આ વ્રત 14 જુલાઈ, રવિવારના રોજ મનાવવામાં આવશે.
जया पार्वती | Jaya Parvati Vrat Vidhi
- आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद हाथ में जल लेकर जया पार्वती व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी या मिट्टी के, बैल पर बैठे शिव-पार्वती की मूर्ति की स्थापना करें।
- स्थापना किसी मंदिर या ब्राह्मण के घर पर वेदमंत्रों से करें या कराएं और पूजा करें।
- पूजा करते समय सबसे पहले कुंकुम, कस्तूरी, अष्टगंध, शतपत्र (पूजा में उपयोग आने वाले पत्ते) व फूल चढ़ाएं।
- इसके बाद नारियल, दाख, अनार व अन्य ऋतुफल चढ़ाएं और उसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
- इसके बाद माता पार्वती का स्मरण करें और उनकी स्तुति करें।
- अंत में कथा सुनें और कथा समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को भाजन कराएं और उसके बाद खुद नमकरहित भोजन ग्रहण करें। इस विधि से जया पार्वती व्रत करने से मां पार्वती प्रसन्न होती है और मनाकमना पूरी करने का आशीर्वाद देती है।
जया पार्वती | Jaya Parvati Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौडिन्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके यहां संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे। एक दिन नारद जी उनके घर पधारें। उन्होंने नारद की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। तब नारद ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने उस शिवलिंग की ढूंढ़कर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए।
एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को स्मरण किया। ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ बैठा।
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ( mata parvati ) ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कहीं। आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपत्ति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया, जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन व्रत करने वालों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखंड सौभाग्य भी बना रहता है।
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