Jagannath Rath Yatra Story (जगन्नाथ रथ यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी ) Hindi

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Jagannath Rath Yatra Story (जगन्नाथ रथ यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी ) Hindi

भारत में धार्मिक महामहोत्सवों में सबसे प्रमुख और धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्‍वपूर्ण भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा का त्योहार मनाया जाता हैं। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं।  यह रथयात्रा न केवल भारत में बल्कि विदेश में भी उन स्‍थानों पर आयोजित होती है जहां पर भारतीयों की आबादी रहती है। भारत में आयोजित होने वाली रथ यात्रा को देखने हर साल विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्‍नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। सागर तट पर बसे पुरी शहर में होने वाली जगन्‍नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था का जो भव्‍य उत्‍सव देखने को मिलता है, वह और कहीं दुर्लभ है।इस रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। जगन्‍नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न भगवान जगन्‍नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आए थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। इस मूल मंदिर का कब निर्माण हुआ और यह कब नष्ट हो गया इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल गंगदेव तथा अनंग भीमदेव ने कराया था। परंतु जगन्नाथ संप्रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है।

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की कहानी ( Jagannath Puri Rath Yatra Story)

पौराणिक मत यह है कि स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। उस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है। 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है। फिर मान्यता यह है कि इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है।

तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।

श्रीकृष्ण की मौत के पश्चात् जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया जाता है, तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्याधिक दुखी होते है। कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद जाते है, उनके पीछे-पीछे सुभद्रा भी कूद जाती है। इसी समय भारत के पूर्व में स्थित पूरी के राजा इन्द्रद्विमुना को स्वप्न आता है कि भगवान् का शरीर समुद्र में तैर रहा है, अतः उन्हें यहाँ कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए और मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए। उन्हें स्वप्न में देवदूत बोलते है कि कृष्ण के साथ, बलराम, सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनाई जाये। और श्रीकृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रखा जाये।

राजा का सपना सच हुआ, उन्हें कृष्ण की आस्तियां मिल गई। लेकिन अब वह सोच रहा था कि इस प्रतिमा का निर्माण कौन करेगा। माना जाता है, शिल्पकार भगवान् विश्वकर्मा एक बढई के रूप में प्रकट होते है, और मूर्ती का कार्य शुरू करते है। कार्य शुरू करने से पहले वे सभी से बोलते है कि उन्हें काम करते वक़्त परेशान नहीं किया जाये, नहीं तो वे बीच में ही काम छोड़ कर चले जायेगें। कुछ महीने हो जाने के बाद मूर्ती नहीं बन पाती है, तब उतावली के चलते राजा इन्द्रद्विमुना बढई के रूम का दरवाजा खोल देते है, ऐसा होते ही भगवान् विश्वकर्मा गायव हो जाते है। मूर्ती उस समय पूरी नहीं बन पाती है, लेकिन राजा ऐसे ही मूर्ती को स्थापित कर देते है, वो सबसे पहले मूर्ती के पीछे भगवान कृष्ण की अस्थियाँ रखते है, और फिर मंदिर में विराजमान कर देते है। विश्वकर्मा जयंती पूजा विधि एवम आरती को पढने के लिए क्लिक करें।

एक राजसी जुलूस तीन विशाल रथों में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा का हर साल मूर्तियों के साथ निकाला जाता है। भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमा हर 12 साल के बाद बदली जाती है, जो नयी प्रतिमा रहती है वह भी पूरी बनी हुई नहीं रहती है। जगन्नाथ पूरी का यह मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है, जहाँ तीन भाई बहन की प्रतिमा एक साथ है, और उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

जगन्नाथ पूरी रथ का पूरा विवरण (Jagannath puri rath yatra information)

किसका रथ है रथ का नाम रथ में मौजूद पहिये रथ की ऊंचाई लकड़ी की संख्या
जगन्नाथ/श्रीकृष्ण नंदीघोष/गरुड़ध्वज/ कपिलध्वज 16 13.5 मीटर 832
बलराम तलध्वज/लंगलाध्वज 14 13.2 मीटर 763
सुभद्रा देवदलन/पद्मध्वज 12 12.9 मीटर 593
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