Prithviraj Chauhan History Latest 2025 Hindi PDF

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Prithviraj Chauhan History Latest 2025 - Summary

Prithviraj Chauhan’s history is an interesting part of Indian history, showing the fearless last ruler of the Chauhan dynasty who ruled Delhi. Born in 1168 to Someshwar Chauhan, the king of Ajmer, Prithviraj was a talented child known for his amazing military skills, including an unusual ability to hit targets just by listening to sounds. His bravery and determination are still admired today.

Prithviraj Chauhan’s Courage and Leadership

Known as a brave king, Prithviraj Chauhan stood firm against invading Muslim rulers. His bravery in battles is an important part of his history, showing how dedicated he was to protect his kingdom and culture.

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास – A Detailed Account

पृथ्वीराज तृतीय (शासनकाल: 1178–1192), जिन्हें सामान्यतः पृथ्वीराज चौहान कहा जाता है, चौहान वंश के आखिरी शक्तिशाली राजा थे। उन्होंने उत्तर-पश्चिमी भारत के पारंपरिक चौहान क्षेत्रों जैसे अजमेर के साथ-साथ राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों पर शासन किया। उनकी राजधानी अजमेर थी, लेकिन लोककथाओं में उन्हें दिल्ली का भी राजा बताया गया है, जो पूर्व-इस्लामी भारतीय शक्ति का प्रतीक थे।

पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राज्यों के खिलाफ अपनी सेना का उपयोग करते हुए कई बड़ी जीत हासिल कीं। खासकर चन्देल राजवंश के राजा परमर्दिदेव के खिलाफ हुई लड़ाई में सफल रहे। उन्होंने ग़ौरी वंश के शासक मोहम्मद ग़ौरी के शुरूआती आक्रमणों को भी रोका। हालांकि, 1192 की दूसरी तराइन की लड़ाई में वे हार गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना को भारत में इस्लामी विजय के लिए एक बड़ा मोड़ माना जाता है।

पृथ्वीराज के समय के शिलालेख कम मिलते हैं, और वे खुद से जारी नहीं किए गए थे। उनके जीवन और शासन के बारे में ज्यादातर जानकारी मध्यकालीन लोककथाओं से मिलती है। जैसे कि पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य और पृथ्वीराज रासो में उनका वर्णन है। पृथ्वीराज रासो, जो उनके दरबारी कवि चंद बरदाई ने लिखा था, उन्हें एक महान राजपूत राजा के रूप में दिखाता है, हालांकि इसमें कुछ बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है।

अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ जैसे प्रबन्ध चिन्तामणि, प्रबन्ध कोष, और पृथ्वीराज प्रबन्ध ने उनकी वीरता और शासन की कहानियाँ बताई हैं, जो उनकी मौत के बाद कई सालों बाद लिखे गए। जैन संस्कृत ग्रन्थ में भी उनका उल्लेख मिलता है, जो 1250 के करीब लिखा गया था। इसके अलावा, चन्देला कवि जगनिका द्वारा लिखित आल्हा-खण्ड में चन्देलों के खिलाफ हुई लड़ाई का विस्तृत और रंगीन वर्णन है।

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