Hindi Kahani Book Hindi

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Hindi Kahani Book in Hindi

Hindi Kahani Book PDF में आप नई और पुरानी कहानियों को पढ़ सकते हैं। कहानी को परिभाषा इस प्रकार की थी :”लघु-कथा एक एसा प्रास्यान है, जो इतना छोटा हो कि एक ही बैठक में पूरा पढ़ा जा सके,जो उसके पाठक पर किसी एक प्रभाव को ही उत्पन्न करने के लिए लिखा गया हो योर ऐसा निर्दिष्ट प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक न हो सकने वाली सारी बातें जिसमें से छोड़ दी गई हों तथा जो स्वत सर्वथा सम्पूर्ण हो।

हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कहानी-लेखक प्रेमचन्दरजी के मतानुसार कहानी की रूपरेखा निम्नलिखित होती है गल्प एक ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उपन्यास की भांति उसमें मानव जीवन का सम्पूर्ण तथा वृहद् रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता । न उसमें उपन्यास की भति सभी रसों का सम्मिश्रण होता है। कहानियों के कई रूप हैं – प्रेम, नफ़रत, देश भक्ति, शौर्य, दुःख, ख़ुशी, भुत पिशाच, जासूसी आदि ऐसे कई भाव. आमतौर पर शिक्षाप्रद छोटी- छोटी कहानियाँ, प्रेरणादायक कहानियाँ, जासूसी कहानियाँ पाठको को लुभाती हैं।

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न्याय का महत्व

एक राजा था जिसे शिल्पी कला अत्यंत प्रिय थी । वह मूर्तियों की खोज में देश परदेश जाया करता था । इस प्रकार वे कई मूर्तियाँ अपने राज महल में लाकर रखते और स्वयं उनकी देख रेख करवाते सभी मूर्तियों में उन्हें तीन मूर्तियाँ जान से भी ज्यादा प्यारी थी । सभी को पता था कि राजा को इन मूर्तियों से अत्यंत लगाव हैं ।

एक दिन एक सेवक इन मूर्तियों की सफाई कर रहा था तभी गलती से उसके हाथों एक मूर्ति टूट गई । जब राजा को यह बात पता चली तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने उस सेवक को मृत्युदान दे दिया । सजा के सुनने के बाद सेवक ने अन्य दो मूर्तियों को भी तोड़ दिया । यह देख कर सभी को आश्चर्य हुआ । राजा ने उस सेवक से इसका कारण पूछा तब उस सेवक ने कहा महाराज ! क्षमा करना । यह मूर्तियाँ मिट्टी की बनी हैं अत्यंत नाजुक हैं । अमरता का वरदान लेकर तो आई नहीं हैं । आज नहीं तो कल टूट ही जाती । अगर मेरे जैसे किसी प्राणी से टूट जाती तो उसे अकारण ही मृत्युदंड का भागी बनना पड़ता । मुझे तो मृत्यु दंड मिल ही चूका हैं इसलिए मैंने ही अन्य दो मूर्तियों को तोड़’कर उन दो व्यक्तियों की जान बचा ली । यह सुनकर राजा की आँखे खुल गई उसे अपनी गलती का भान हुआ और उसने सेवक को सजा से मुक्त कर दिया ।

इस तरह सेवक ने सिखाया साँसों का मूल्य । न्यायाधीश के आसन पर बैठकर अपने निजी प्रेम के चलते छोटे से अपराध के लिए मृत्युदंड देना उस आसन का अपमान हैं । एक उच्च आसन पर बैठकर हमेशा उसका आदर करना चाहिये । राजा हो या कोई भी अगर उसे न्याय करने के लिए चुना गया हैं तो उसे न्याय के महत्व (Importance Of Judgement) को समझना चाहिये ।

मूर्ति से राजा को प्रेम था लेकिन उसके लिए सेवक को मृत्युदंड देना न्याय के विरुद्ध था । न्याय की कुर्सी पर बैठकर किसी को भी अपनी भावनाओं से दूर हट कर फैसला देना चाहिये । राजा से कई गुना अच्छा तो वो सेवक था जिसने मृत्यु के इतना समीप होते हुए भी परहित का सोचा ।

यह कहानी हमें अपने जीवन में भी बदलाव करने के प्रति प्रेरित करती हैं । कभी कभी हमारी प्रिय वस्तु के टूट जाने अथवा खो जाने पर हम अपनों पर ही गुस्सा करते हैं । हम एक वस्तु और रिश्ते के फर्क को भूल जाते हैं और अनादर करने लगते हैं जो कि गलत हैं । यह कहानी हमें शिक्षा देती हैं कि आवेश में आकार कभी कोई निर्णय नहीं लेना चाहिये ।

न्याय का महत्व (Importance Of Judgement) बहुत बड़ा होता हैं न्यायाधीश ईश्वर तुल्य होता हैं अगर ईश्वर भी भक्तों में प्रिय एवम अप्रिय देखने लगे तो संसार का रूप ही बदल जायें

सेवक ने बताया साँसों का मूल्य / न्याय का महत्व (Importance Of Judgement) यह कहानी आपको कैसी लगी ? आप राजा के स्थान पर होते तो क्या करते ?

दान का महत्व निबंध कहानी हिंदी में

एक बहुत प्रसिद्ध संत थे जिन्होंने समाज कल्याण के लिए एक मिशन शुरू किया । जिसे आगे बढ़ाने के लिए उन्हें तन मन धन तीनो की ही आवश्यक्ता थी। इस कार्य में उनके शिष्यों ने तन मन से भाग लिया और इन कार्य कर्ताओं ने धन के लिए दानियों को खोजना शुरू किया ।

एक दिन, एक शिष्य कलकत्ता पहुँचा । जहाँ उसने एक दानवीर सेठ का नाम सुना । यह जान कर उस शिष्य ने सोचा कि इन्हें गुरूजी से मिलवाना उचित होगा, हो सकता हैं । यह हमारे समाज कल्याण के कार्य में दान दे ।

इस कारण शिष्य सेठ जी को गुरु जी से मिलवाने ले गए । गुरूजी से मिल कर सेठ जी ने कहा – हे महंत जी आपके इस समाज कल्याण में, मैं अपना योगदान देना चाहता हूँ पर मेरी एक मंशा हैं जो आपको स्वीकार करनी होगी । आपके इस कार्य के लिए मैं भवन निर्माण करवाना चाहता हूँ और प्रत्येक कमरे के आगे मैं अपने परिजनों का नाम लिखवाना चाहता हूँ । इस हेतु मैं दान की राशि एवम नामो की सूचि संग लाया हूँ और यह कह कर सेठ जी दान गुरु जी के सामने रखते हैं ।

गुरु जी थोड़े तीखे स्वर में दान वापस लौटा देते हैं और अपने शिष्य को डाटते हुए कहते हैं कि हे अज्ञानी तुम किसे साथ ले आये हो, ये तो अपनों के नाम का कब्रिस्तान बनाना चाहते हैं। इन्हें तो दान और मेरे मिशन दोनों का ही महत्व समझ नहीं आया ।

यह देख सेठ जी हैरान थे क्यूंकि उन्हें इस तरह से दान लौटा देने वाले संत नहीं मिले थे । इस घटना से सेठ जी को दान का महत्व समझ आया कुछ दिनों बाद आश्रम आकार उन्होंने श्रध्दा पूर्वक हवन किया और निस्वार्थ भाव दान किया तब उन्हें जो आतंरिक सुख प्राप्त हुआ वो कभी पहले किसी भी दान से नहीं हुआ था ।

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