Geetanjali Hindi PDF

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Geetanjali - Summary

रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित गीतांजलि वास्तव में बांग्ला भाषा में एक अद्भुत पद्यात्मक कृति है। इसमें कोई गद्यात्मक रचना नहीं है, बल्कि सभी गीत और गान हैं। इस संग्रह में 125 अप्रकाशित और 32 पूर्व के संकलनों में प्रकाशित गीत सम्मिलित हैं। पूर्व प्रकाशित गीतों में नैवेद्य से 15, खेया से 11, शिशु से 3 तथा चैताली, कल्पना और स्मरण से एक-एक गीत शामिल हैं। इस प्रकार कुल 157 गीतों का यह संकलन ‘गीतांजलि’ के नाम से सितंबर 1910 ई. (1317 बंगाब्द) में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा प्रकाशित हुआ था। विश्वभारती की बांग्ला गीतांजलि में स्पष्ट है कि अंग्रेजी गीतांजलि में इसकी मात्र 53 कविताएं ली गई हैं।

गीतांजलि – रवींद्रनाथ टैगोर का काव्य संग्रह

गीतांजलि, कविता का एक संग्रह है, जो रवींद्रनाथ टैगोर का सबसे प्रसिद्ध काम है। यह 1910 में भारत में प्रकाशित हुआ था। टैगोर के द्वारा इसके बाद अंग्रेजी में गद्य कविताओं में गीतांजलि: सॉन्ग ऑफरिंग के रूप में इसका अनुवाद किया गया। यह अंग्रेजी संस्करण 1912 में विलियम बटलर येट्स द्वारा एक प्रस्तावना के साथ प्रकाशित किया गया। यह काव्य संग्रह भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

Geetanjali (गीतांजलि) – कविता

गान महिमा

जब तू मुझे गाने की श्राज्ञा देता है तो प्रतीत होता है कि मानों गर्व से मेरा हृदय टूटना चाहता है। मैं तेरे बुन्न की ओर निहारता हूँ, और मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं।

मेरे जीवन में जो कुछ कठोर और अनमिल है वह मधुर स्वरावलि में परिणत हो जाता है; और मेरी आराधना उस प्रसन्न पक्षी की तरह अपने पर फैला देती है जो उड़ कर सिन्धु पार कर रहा हो।

मैं जानता हूँ कि तुझे मेरा गाना अच्छा लगता है। मैं जानता हूँ कि तेरे सम्मुख मैं गायक ही के रूप में आता हूँ।

तेरे जिन चरणों तक पहुँचने की श्राकांक्षा भी मैं नहीं कर सकता था, उन्हें मैं अपने गीतों के दूर तक फैले हुए परों के किनारे से छू लेता हूँ।

गाने के आनंद में मस्त होकर मैं अपने स्वरूप को भूल जाता हूँ और स्वामी को सखा पुकारने लगता हूँ। 😊

विराट गायन

ऐ मेरे स्वामी! न जाने तुम कैसे गाते हो। मैं तो आश्चर्य से अवाक् होकर सदा ध्यान में सुनता रहता हूँ।

तुम्हारे गान का प्रकाश सारे जगत् को प्रकाशित करता है। तुम्हारे गान का प्राणवायु लोक-लोकान्तर में दौड़ रहा है। तुम्हारे गान की पवित्र धारा पथरीली रुकावटों को काटती हुई वेग से बह रही है।

मेरा हृदय तुम्हारे गान में सम्मिलित होने की बड़ी उत्कंठा रखता है लेकिन प्रयत्न करने पर भी आवाज नहीं निकलती। मैं बोलना चाहता हूँ किन्तु वाणी गीत के रूप में प्रगट नहीं होती। बस, मैं अपनी हार मान लेता हूँ।

ऐ मेरे स्वामी! तुमने मेरे हृदय को अपने गान रूपी जाल के अनन्त छिद्रों का बँधुआ बना लिया है।

मेरा संकल्प

हे जीवन-प्राण, यह अनुभव करके कि मेरे सत्र अंग में तेरा सचेतन स्पर्श हो रहा है, मैं अपने शरीर को सदैव पवित्र रखने का यत्न करूँगा।

हे परम-प्रकाश, यह अनुभव करके कि तूने मेरे हृदय में बुद्धि के दीपक को जलाया है, मैं अपने विचारों से समस्त असत्यों को दूर रखने का सदेव यत्न करूँगा।

यह अनुभव करके कि इस हृदय-मन्दिर के भीतर तू विराजमान है, मैं सर्व दुर्गुणों को अपने हृदय से निकालने और [तेरे] प्रेम को प्रस्फुटित करने का सदैव यत्न करूँगा।

यह अनुभव करके कि तेरी ही शक्ति मुझे काम करने का बल देती है, मैं सब कार्यों में तुझे व्यक्त करने का सदैव यत्न करूँगा।

केवल गान

मैं तेरे लिए गीत गाने को यहाँ उपस्थित हूँ। तेरे इस मन्दिर के एक कोने में मेरा स्थान है।

तेरी सृष्टि में मुझे कोई काम नहीं करना है। मेरे निरर्थक जीवन से कुछ तानें कभी-कभी निष्प्रयोजन निकल सकती हैं।

आधीरात के अंधेरे मन्दिर में जब तेरी उपासना का घंटा बजे, तब मुझे गाने के लिए अपने सम्मुख खड़े होने की आज्ञा प्रदान कर।

प्रभात वायु में जब सुनहरी वीणा का सुर मिलाया जाता है, तब अपनी सेवा में उपस्थित होने की आज्ञा देकर मेरा मान कर।

मेरा नवीन शृंगार

मैंने सोचा था कि गुलाब के फूलों का जो हार तेरे गले में है, उसे मैं तुझसे मागूँगा, किन्तु मेरा साहस नहीं पड़ा।

मैं प्रातःकाल तक इस श्राशा में बैठा रहा कि जब तू चला जाएगा, तो तेरी शय्या पर हार के एक दो पुष्प मैं भी पा जाऊँगा।

किन्तु एक भिखारी की भाँति मैंने बहुत सवेरे उसकी तलाश की और फूल के एक दो पंखड़ियों के सिवा और कुछ नहीं पाया।

अरे, यह क्या है जिसे वहाँ देखता हूँ! तू ने अपने प्रेम का यह कैसा चिह्न छोड़ा है! वहाँ न तो कोई पुष्प है और न गुलाब-पात्र।

यह तो तेरी भीषण कृپाण है जो एक ज्वाला की भाँति प्रज्वलित होती है और इन्द्र वजू के समान भारी है। प्रभात की नवीन प्रभा झरोखों से श्री है और तेरी शय्या पर फैल जाती है।

प्रातःकालीन पक्षी चहचहाते हैं और मुझसे पूछते हैं। तुझे क्या मिला? नहीं, न तो यह पुप्प है और न गुलाब पात्र, यह तो भीषण कृपाण है।

मैं बैठ जाता हूँ और चकित होकर सोचता हूँ कि यह तेरा कैसा दान है? मुझे ऐसा कोई स्थान नहीं मिलता जहाँ मैं इसे छिपा सकूँ।

मैं दुर्बल हूँ और इसे पहनते हुए मुझे लाज आती है, और जब मैं इसे अपने हृदय से लगाता हूँ तो वह मुझे पीड़ा पहुँचाती है। तिस पर भी मैं इस वेदना के मान को तेरे इस दान को-अपने हृदय में धारण करूँगा।

आज से मेरे लिए इस जगत में भय का अभाव हो जाएगा और मेरे सारे जीवन-संग्राम में तेरी जय होगी। तू ने मृत्यु को मेरा साथी बनाया है और मैं अपने जीवन-रूपों मुकुट से उसके मस्तक को सुभूषित करूँगा।

तेरी कृपाण मेरे सब बन्धनों को काटने के लिए मेरे पास है और मेरे लिए अब सांसारिक कोई भय न रह जाएगा।

आज से मैं समस्त तुच्छ शृंगारों को तिलांजलि देता, ऐ मेरे हृदयनाथ, आज से एकान्त में बैठकर रोने और प्रतीक्षा करने का अन्त है।

श्राज से लज्जा और संकोच की इतिश्री है। तू ने अपनी कृपाण मुझे शृंगार के लिए प्रदान की है। गुड़ियों का साज-बाज मेरे लिए अब उचित नहीं है।

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