Gayatri Samhita - Summary
गायत्री संहिता ऐसी एक अद्भुत स्तोत्र है जो देवी गायत्री को समर्पित है। देवी गायत्री को वेदमाता गायत्री के रूप में पूजा जाता है। गायत्री मंत्र हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह जनेऊ संस्कार जैसे विशेष अवसरों में भी बहुत महत्त्व रखता है।
श्री गायत्री मंत्र के प्रभाव से मनुष्य के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है, साथ ही साथ व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यदि आप भी अपनी ज़िंदगी में श्री गायत्री माता की कृपा चाहते हैं, तो श्री गायत्री संहिता का पाठ अवश्य करें।
गायत्री संहिता – Gayatri Samhita in Hindi
आदि शक्तिरिति विष्णोस्तामहं प्रणमामि हि ।
सर्गः स्थितिर्विनाशश्च जायन्ते जगतोऽनया ॥ १॥
नाभि-पद्म-भुवा विष्णोर्ब्रह्मणा निर्मितं जगत् ।
स्थावरं जङ्गमं शक्त्या गायत्र्या एव वै ध्रुवम् ॥ २॥
चन्द्रशेखर केशेभ्यो निर्गता हि सुरापगा ।
भगीरथं ततारैव परिवारसमं यथा ॥ ३॥
जगद्धात्री समुद्भूय या हृन्मानसरोवरे ।
गायत्री सकुलं पारं तथा नयति साधकम् ॥ ४॥
सास्ति गङ्गैव ज्ञानाख्यसुनीरेण समाकुला ।
ज्ञान गङ्गा तु तां भक्त्या वारं-वारं नमाम्यहम् ॥ ५॥
ऋषयो वेद-शास्त्राणि सर्वे चैव महर्षयः ।
श्रद्धया हृदि गायत्रीं धारयन्ति स्तुवन्ति च ॥ ६॥
ह्रीं श्रीं क्लीं चेति रूपैस्तु त्रिभिर्वा लोकपालिनी ।
भासते सततं लोके गायत्री त्रिगुणात्मिका ॥ ७॥
गायत्र्यैव मता माता वेदानां शास्त्रसम्पदाम् ।
चत्वारोऽपि समुत्पन्ना वेदास्तस्या असंशयम् ॥ ८॥
परमात्मनस्तु या लोके ब्रह्म शक्तिर्विराजते ।
सूक्ष्मा च सात्त्विकी चैव गायत्रीत्यभिधीयते ॥ ९॥
प्रभावादेव गायत्र्या भूतानामभिजायते ।
अन्तःकरणेषु देवानां तत्त्वानां हि समुद्भवः ॥ १०॥
गायत्र्युपासनाकरणादात्मशक्तिर्विवर्धते ।
प्राप्यते क्रमशोऽजस्य सामीप्यं परमात्मनः ॥ ११॥
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