Ganesh Kavach - Summary
गणेश कवच: शक्ति और सुरक्षा का स्त्रोत
गणेश कवच का महत्व हिन्दू धर्म के शास्त्रों में बहुत अधिक है। इस खास कवच को सिद्ध कर लेने से जीने वाले को हर काम में सफलता मिलती है। माना जाता है कि भगवान श्रीविष्णु ने शनैश्चर देव के विनय करने पर गणेश कवच का ज्ञान दिया था।
गणेश कवच पहनने के बाद मनुष्य अमर, बुद्धिमान, धनवान और सम्मानित बन जाता है। इस कवच को धारण करने वाले व्यक्तियों को किसी बीमारी या नकारात्मकता का सामना नहीं करना पड़ता। यह कवच सभी के लिए लाभकारी है, चाहे वे विद्यार्थी हों, कामकाजी लोग हों, गृहिणियां हों या व्यवसायी।
Ganesh Kavach – गणेश कवच हिन्दी अनुवाद सहित
श्री गणेशाय नमः
गौरी उवाच-
एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ।।1।।
पार्वती जी बोले: हे ऋषि श्रेष्ठ (मरीचि मुनि) हमारा पुत्र गणेश अत्यधिक चपल हो गया है। बचपन से ही इन्होंने दुष्ट लोगों का नाश किया है और अद्भुत कार्य कर दिखाए हैं। इससे आगे क्या होगा, मुझे समझ में नहीं आता।
दैत्या नानाविधा दुष्टा: साधुदेवद्रुह: खला: ।
अतोऽस्य कण्ठे किंचित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि ।।2।।
नकारात्मक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों से बचने के लिए बाल गणेश के गले में ताबीज आदि बांधने का आदेश दिया।
ऋषि उवाच-
ध्यायेत्सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्यं युगे
त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।
द्वापरे तु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम्
तुर्ये तु द्विभुजं सितांगरूचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ।।3।।
मुनि जी बोले: ध्यान करें, सतयुग में दस हाथ धारण करने वाले सिंह पर सवार विनायक का। त्रेता युग में छह हाथ धारण करके मयूर पर सवार होने वाले गणेश का ध्यान करें। द्वापर के गजानन का, जो रक्तवर्ण वाले हैं, ध्यान करें तथा कलयुग में द्विभुज और सुंदर सफेद स्वरूप वाले गणेश जी का ध्यान करें, जो अपने भक्तों को सभी प्रकार का सुख देते हैं।
विनायक: शिखां पातु परमात्मा परात्पर: ।
अतिसुंदरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कट: ।।4।।
परमात्मा विनायक, आप हमारी शिखा स्थान की रक्षा करें। अतिशय सुंदर शरीर वाले गणेश जी हमारे मस्तक की रक्षा करें।
ललाटं कश्यप: पातु भ्रूयुगं तु महोदर: ।
नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्तवोष्ठपल्लवौ ।।5।।
कश्यप के पुत्र गणेश जी हमारे ललाट की रक्षा करें, विशाल उधर वाले गणेश जी हमारी भौहों की रक्षा करें। भालचंद्र गणेश जी हमारी आंखों की रक्षा करें और गजबदन गणेश जी मुख्य और दोनों होठों की रक्षा करें।
जिह्वां पातु गणाक्रीडश्रिचबुकं गिरिजासुत: ।
पादं विनायक: पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुख: ।।6।।
शिवगणों में क्रीड़ा करने वाले गणेश जी हमारे ठोड़ी की रक्षा करें, गिरिजेश पुत्र गणेश जी हमारे तालु की रक्षा करें, विनायक हमारी वाणी की और विघ्नहर्ता गणेश जी दांतों की रक्षा करें।
… (अन्य श्लोक का अनुवाद इसी तरह जारी रखा जाएगा) …
जो व्यक्ती इस गणेश कवच को भोजपत्र पर लिखकर धारण करता है, उसके सामने यक्ष, राक्षस और पिशाच कभी नहीं आते।
इस प्रकार, हमें गणेश कवच का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए, जिससे हम हर प्रकार के विघ्न से दूर रह सकें। इसे पढ़ना और ध्यान करना हमें सुरक्षा और समृद्धि की ओर ले जाता है।
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