दशहरा पूजा विधि (Dussehra Puja Vidhi) Hindi

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दशहरा पूजा विधि (Dussehra Puja Vidhi) Hindi

दशहरा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। जो इस बार दशहरा का पर्व 24 अक्टूबर को मनाया जायेगा और इस पर्व को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। इस दिन कई जगह रावण का दहन किया जाता है।  ये परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में निभायी जाती है। इस दिन शस्त्र पूजन भी किया जाता है।

इस दिन गाय के गोबर से दस गोले बनाए जाते हैं जिन्हें कंडे भी कहते हैं, जिनका उपयोग पूजन में किया जाता है तथा इन कंडों में नवरात्रि के दिन बोये गए जौ को लगाते हैं। यदि आप भी एक सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, तो इस वार्षिक दशहरा पूजा को पूर्ण भक्ति – भाव तथा श्रद्धा से करनी चाहिए।

दशहरा पूजा विधि

  • सर्वप्रथम सुबह नहाकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • दशहरा की पूजा अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
  • इस पूजा को करने के लिए घर की पूर्व दिशा और ईशान कोण सबसे शुभ माना गया है।
  • जिस स्थान पर पूजा करनी है उसे साफ करके चंदन के लेप के साथ 8 कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र बनाएं।
  • अब संकल्प करते हुए देवी अपराजिता से परिवार की सुख और समृद्धि की कामना करें।
  • देवी की पूजा के बाद भगवान श्रीराम और हनुमानजी की पूजा भी करें।
  • अंत में माता की आरती उतारकर सभी को प्रसाद बांटें।
  • अब प्रार्थना करें- हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार की है। कृपया मेरी यह पूजा स्वीकार करें। पूजा संपन्न होने के बाद मां को प्रणाम करें।
  • हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
  • इसके बाद रावण दहन के लिए बाहर जाएं।
    रावण दहन के बाद शमी की पूजा करें और घर-परिवार में सभी को शमी के पत्ते बांटने के बाद बच्चों को दशहरी दें।

दशहरा का महत्व / Significance of Dussehra

दशरहा के दिन ही भगवान श्री राम ने अत्याचारी रावण का वध कर विजय हासिल की थी और कहा जाता है​ ​कि यह युद्ध 9 दिनों तक लगातार चला। इसके बाद 10वें दिन भगवान राम ने विजय प्राप्त की। इसके बाद माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराकर लाए। वहीं यह भी कहा जाता है कि भगवान राम से युद्ध पर जाने से पहले मां दुर्गा की अराधना की थी और मां ने प्रसन्न होकर उन्हें विजयी होने का वरदान दिया था। इसके अलावा एक और मान्यता है कि मां दुर्गा ने दशहरा के दिन महिषासुर का वध कर जीत हासिल की थी।

दशहरा पूजा मुहूर्त:

विजयादशमी पूजा का मुहूर्त दोपहर 01:20 से 03:37 बजे तक रहेगा।

दशमी तिथि की शुरुआत 24 अक्टूबर को शाम 06:52 बजे से हो जाएगी और इसकी समाप्ति 15 अक्टूबर को शाम 06:02 बजे पर होगी।

दशहरा की व्रत कथा  (Dussehra Ki Katha in Hindi)

एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया- आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सर्वमनोकामना पूरी करने वाला होता है। इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तो और भी शुभ हो जाता है। भगवान राम ने इसी विजय काल में लंकापति रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन के गांडीव धनुष को धारण किया था।

पार्वती माता ने पूछा शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस प्रकार धारण किया था। शिवजी ने उत्तर दिया- दुर्योधन ने पांडवों को जुएं में हराकर 12 वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञात वास की शर्त रखी थी। तेरहवें वर्ष में यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुन: 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को शमी वृक्ष पर छुपाया था तथा स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट के पास सेवा दी थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट

के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन रामचंद्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने रामचंद्रजी की विजय का उद्घोष किया था। इसीलिए दशहरे के दिन शाम के समय विजय काल में शमी का पूजन होता है।

Dussehra Arti Lyrics in hindi (दशहरा की आरती के ह‍िंदी ल‍िर‍िक्‍स )

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्

नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरम्

पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतानरम्

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकंदनम्

रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्

आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्

मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्

Ram Ji Ki Aarti (श्री राम जी की आरती)आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥

पहली आरती पुष्पन की माला।

काली नाग नाथ लाये गोपाला॥

दूसरी आरती देवकी नन्दन।

भक्त उबारन कंस निकन्दन॥

तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।

रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥

चौथी आरती चहुं युग पूजा।

देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥

पांचवीं आरती राम को भावे।

रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

Dussehra Puja Vidhi

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