Chandrasekhara Ashtakam (चंद्रशेखर अष्टकम) Sanskrit - Summary
चंद्रशेखर अष्टकम (चंद्रशेखर अष्टकम) एक लोकप्रिय भक्तिपूर्ण भजन है जिसमें भगवान शिव की स्तुति करने वाले 8 श्लोक शामिल हैं। ‘चंद्रशेखर’ का अर्थ है वह जो चंद्रमा के साथ अपना मुकुट सजाए हुए है (चंद्र-चंद्रमा, शेखर-मुकुट)। यह महान भक्ति भजन मार्कंडेय द्वारा लिखा गया है। चंद्रशेखर अष्टकम का जप करने से शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद मिलती है। इस सिद्ध मंत्र का पाठ करने से व्यक्ति अकाल मृत्यु और भय से बच सकता है।
यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, तो आपको सोमवार के दिन चंद्रदेव का ‘चंद्रशेखर स्तोत्र’ अवश्य करना चाहिए। इस उपाय से चंद्रमा मजबूत होता है। इसके साथ ही, सोमवार के दिन रामायण के अयोध्याकाण्ड का पाठ भी करने से चंद्रमा की शक्ति में और बढ़ोतरी होती है, जिससे आमदनी में भी वृद्धि होती है।
Chandrasekhara Ashtakam Sanskrit
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम् ।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम् ॥
रत्नसानु शरासनं रजताद्रि शृङ्ग निकेतनं
शिञ्जिनीकृत पन्नगेश्वर मच्युतानल सायकम् ।
क्षिप्रदग्द पुरत्रयं त्रिदशालयै रभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 1 ॥
मत्तवारण मुख्यचर्म कृतोत्तरीय मनोहरं
पङ्कजासन पद्मलोचन पूजिताङ्घ्रि सरोरुहम् ।
देव सिन्धु तरङ्ग श्रीकर सिक्त शुभ्र जटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 2 ॥
कुण्डलीकृत कुण्डलीश्वर कुण्डलं वृषवाहनं
नारदादि मुनीश्वर स्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्तक माश्रितामर पादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 3 ॥
पञ्चपादप पुष्पगन्ध पदाम्बुज द्वयशोभितं
फाललोचन जातपावक दग्ध मन्मध विग्रहम् ।
भस्मदिग्द कलेबरं भवनाशनं भव मव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 4 ॥
यक्ष राजसखं भगाक्ष हरं भुजङ्ग विभूषणम्
शैलराज सुता परिष्कृत चारुवाम कलेबरम् ।
क्षेल नीलगलं परश्वध धारिणं मृगधारिणम्
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 5 ॥
भेषजं भवरोगिणा मखिलापदा मपहारिणं
दक्षयज्ञ विनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्ति मुक्ति फलप्रदं सकलाघ सङ्घ निबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 6 ॥
विश्वसृष्टि विधायकं पुनरेवपालन तत्परं
संहरं तमपि प्रपञ्च मशेषलोक निवासिनम् ।
क्रीडयन्त महर्निशं गणनाथ यूथ समन्वितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥ 7 ॥
भक्तवत्सल मर्चितं निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूत पतिं परात्पर मप्रमेय मनुत्तमम् ।
सोमवारिन भोहुताशन सोम पाद्यखिलाकृतिं
चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्ति मयत्नतः ॥ 8 ॥
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