Champak Magazine Hindi
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चंपक मैगजीन (Magazine) की स्थापना 1969 में दिल्ली प्रेस के विश्वनाथ ने की थी। उस समय, चंपक ने बच्चों की सबसे अधिक बिकने वाली पत्रिकाओं में से एक चंदामामा और पराग (टाइम्स ऑफ इंडियन प्रेस) और नंदन (हिंदुस्तान टाइम्स प्रेस) के साथ प्रतिस्पर्धा की । 1980 में, एक अन्य प्रतियोगी, टिंकल को रिलीज़ किया गया। फिर भी अभी तक चंपक भारत में बच्चों की पसंदीदा पत्रिकाओं में से एक है।
चंपक पत्रिका कहानियां की खूबसूरती से सचित्र हैं, बच्चों की रचनात्मकता और कल्पना का विस्तार करती हैं, पढ़ने के कौशल को निखारती हैं और सकारात्मक आत्म-मूल्य लाती हैं। अनोखे जंगल, चंपकवन में स्थापित अपनी कहानियों के माध्यम से, मानवरूपी चरित्र बच्चों को दूसरों के साथ सम्मान, दया और संवेदनशीलता के साथ व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
Champak Magazine Hindi – पलटू की शैतानियां (बाल कहानी)
चंपक वन में रहने वाले पलटू बंदर की शैतानियों से सभी जानवर तंग आ चुके थे। वह जब चाहता किसी को परेशान कर देता था, किसी को चिढ़ा देता, किसी का मजाक बना देता। जंगल के सभी जानवर उसे समझाते, पर उसकी शैतानियां बढ़ती ही जा रही थीं। एक दिन गणित के अध्यापक भोलू भालू ने किसी बात पर उसे डांटा तो उसने उनका मजाक बना दिया। दूसरे दिन वे कक्षा में पढ़ाने आए, तो उनकी टेबल-कुर्सी पर ‘कोंच फली’ रगड़ डाली, जिससे उनके पूरे शरीर पर खुजली होने लगी। एक दिन रानी बंदरिया की पूंछ चुपके से स्टूल से बांध दी। जैसे ही रानी उठकर जाने लगी स्टूल भी उसके साथ घिसटने लगा। सारी कक्षा के छात्र ठहाका मार कर हंस पड़े। उस दिन तो पलटू ने गजब ही कर दिया। जम्बू जिराफ का जन्मदिन था। वह कक्षा में बांटने के लिए टॉफियां लाया था। पलटू को किसी तरह से पता चल गया। जब जम्बू ने टॉफियां बांटने के लिए अपना टिफिन खोला, तो उसमें टॉफियों की बजाय दो मेंढक निकले। पूरी कक्षा में जम्बू का मजाक बन गया। वह संगीत अध्यापक को भी सूरदास कहकर चिढ़ाता था, जबकि सभी छात्र उनका आदर करते थे।
ऐसा नहीं था कि पलटू स्कूल में ही अपने साथियों को परेशान करता था, बल्कि जब वह घर पर रहता था, तब भी पड़ोसियों को परेशान करता था। न वह किसी की उम्र का लिहाज करता था और न ही उसे इस बात की परवाह रहती थी कि लोग उसके बारे में क्या कहेंगे या उसकी इन हरकतों से सामने वाले को कितनी ठेस पहुंचेगी। पेड़ के नीचे बैठकर काली भैंस सुस्ताती तो पलटू उसकी पूंछ के बाल ही कुतर डालता। मोनू कबूतर का मेहनत से बनाया घोंसला भी उसने तोड़ डाला। आज स्कूल से लौटते वक्त रास्ते में लम्बू जिराफ उसे मिला। वह लंगड़ा कर चलता था। पलटू ने अपनी आदत के मुताबिक उसे भी लंगडू़-लंगड़ू कह कर चिढ़ाया। जिराफ उसे समझाने के लिए बैसाखियों के सहारे तेजी से उसकी ओर बढ़ा। पलटू ने सोचा कि शायद वह उसकी पिटाई करने के उसकी तरफ आ रहा है। उसने आव देखा न ताव, झट से सड़क के दूसरे किनारे की ओर छलांग लगा दी। अचानक पलटू एक कार की चपेट में आ गया। जंगल के जानवरों की भीड़ चारों ओर एकत्रित हो गई। इतने में लंगड़ाता हुआ जिराफ भी वहां आ गया। पलटू को बेहोश देखकर उसे बहुत दुख हुआ। उसने चालक से निवेदन किया कि वह पलटू को अस्पताल तक पहुंचा दे। वह स्वयं भी साथ गया। वहां मालूम हुआ कि उसके दाएं पैर की हड्डी टूट गई है। कुछ अन्य जगहों पर चोटें भी आई हैं। खून बहुत बह गया था। ऑपरेशन के लिए लम्बू जिराफ ने ही अपना खून दिया। डॉ. भालूराम व नर्स पूसी बिल्ली ने ऑपरेशन किया। लम्बू ने उसकी स्कूल डायरी से पता देखकर उसके घर सूचना भिजवाई। कुछ देर बाद पलटू के माता-पिता भी वहां आ पहुंचे। शाम तक पलटू को होश आ गया। सबके साथ लम्बू जिराफ को भी वहां देखकर वह डर गया। उसके पिता व डॉक्टर ने उसे बताया कि यदि आज लम्बू न होता, तो तुम्हारा बचना असम्भव था।
यह सुनकर पलटू की आंखों में आंसू आ गए। पटलू बंदर ने हाथ जोड़कर लम्बू जिराफ से माफी मांगी। लम्बू ने पलटू के सिर पर हाथ फेराते हुए उसे माफ कर दिया। पलटू ने मन ही मन दृढ़ निश्चय किया कि अब आगे से वह किसी को कभी नहीं परेशान करेगा।
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