Arya Samaj ke 10 Niyam Hindi
आर्य समाज एक महान धार्मिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य सभ्यता, सामाजिक न्याय और समरसता को प्रमुखता देना है। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज के 10 नियमों को तैयार किया था जो आधारभूत सिद्धांतों को संकलित करते हैं।
यदि आप आर्य समाज के अनुयाय हैं या आर्य समाज के नियमों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो यह नियम आपके जीवन में नीति और आदर्शों के साथ मदद करेंगे। इन नियमों के पालन के माध्यम से आप एक अच्छे सामाजिक नागरिक बन सकते हैं और एक उत्कृष्ट जीवन जी सकते हैं। धार्मिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों के प्रतीक आर्य समाज के 10 नियम आपके जीवन को धन्य करेंगे और आपको सफलता की ओर अग्रसर बनाएंगे।
आर्य समाज के 10 नियम
- सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।
- ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करनी योग्य है।
- वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।
- सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।
- सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए।
- संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।
- सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिए।
- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए।
- प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिए किन्तु सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
- सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें।
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