अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र
अर्धनारीश्वर स्तोत्र श्रीमद् शंकराचार्य की रचना है, जिसमें उन्होंने शिवशक्ति के अर्धनारीश्वरस्वरूप का वर्णन करके शिवपार्वती को प्रणाम किया है। आठ श्लोकों का यह स्तोत्र इष्टसिद्धि करनेवाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होकर दीर्घजीवी बनता है। आठ श्लोकों का यह स्तोत्र इष्टसिद्धि करनेवाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होकर दीर्घजीवी बनता है।
ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की।
Ardhanarishwara Stotram ( अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित)
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ १ ॥
अर्थात्–आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं । भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ २ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है । पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ३ ॥
अर्थात्–भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है । पार्वती जी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ४ ॥
अर्थात्–पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ५ ॥
अर्थात्–मन्दार-पुष्पों की माला भगवती पार्वती के केशपाशों में सुशोभित है और भगवान् शंकर के गले में मुण्डों की माला सुशोभित रही है। भगवती पार्वती के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप में सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शिव को नमस्कार है।।५।।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ६ ॥
अर्थात्–भगवती पार्वती केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान् शंकर की जटा विद्युत प्रभा के समान कुछ लालिमा लिये हुए चमकती दिखाई दे रही हैं। भगवती पार्वती परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत् के स्वामी हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शिव को नमस्कार है।।६।।
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ७ ॥
अर्थात्–भगवती पार्वती लास्य (कोमल और मधुर) नृत्य करती हैं और उससे जगत् की रचना होती है और भगवान् शंकर का नृत्य सृष्टि-प्रपंच का संहारक है। भगवती पावती संसार की माता और भगवान् शंकर संसारके एकमात्र पिता हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शिव को नमस्कार है।।७।।
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ८ ॥
अर्थात्– भगवती पार्वती प्रदीप्त रत्नों के उज्ज्वल कुण्डल धारण की हुई हैं और भगवान् शंकर फूत्कार करते हुए महान् सर्पों का आभूषण धारण किये हैं। भगवती पार्वती भगवान शंकर की और भगवान् शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार है।।८।।
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ॥ ९ ॥
अर्थात्– आठ श्लोकों का यह स्तोत्र इष्टसिद्धि करनेवाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, अनन्त काल के लिये सौभाग्य प्राप्त करता है एवं अनन्त काल के लिये सभी सिद्धियों से युक्त हो जाता है।।९।।
॥ इति आदिशंकराचार्य विरचित शिव अर्धनारीश्वर सम्पूर्णम् ॥