आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hirdayam Stotra) Hindi PDF

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आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hirdayam Stotra) - Summary

आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hirdayam Stotra) एक विशेष धार्मिक ग्रंथ है जो भगवान सूर्य को समर्पित है। इसे अगस्त्य ऋषि ने रचा है और यह स्तोत्र शक्ति और बुद्धि का संचार करता है। जब भगवान श्री राम युद्ध में थक गए थे, तब मुनि अगस्त्य ने उन्हें इसका जाप करने की सलाह दी थी।

सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में पिता, पुत्र, प्रसिद्धि, यश, तेज, आरोग्यता, आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना गया है। सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति को सूर्य के समान तेज और यश की प्राप्ति होती है।

प्रतिदिन सुबह सूर्योदय के समय आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह सूर्य को मजबूत करने के लिए सर्वोत्तम उपाय है।

आदित्य हृदय स्तोत्र – Aditya Hirdayam Stotra पाठ की विधि

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक तांबे के लोटे में जल भरें, उसमें रोली या चंदन और पुष्प डालकर सूर्य को अर्पित करें।
  • जल अर्पित करते समय गायत्री मंत्र का जाप करें और उसके बाद सूर्यदेव के समक्ष आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
  • यदि इस पाठ को शुक्ल पक्ष के किसी रविवार को किया जाए, तो यह अधिक फलदायक होता है।
  • इस पाठ का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए, नित्य सुबह सूर्योदय के समय इसका पाठ करना चाहिए।

आदित्य हृदय स्तोत्र – Aditya Hridaya Stotra

।। विनियोगः ।।

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।।

ध्यानम्-

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे, जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे, त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे, विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ।।१।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्या ब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः ।।2।।

उधर थककर चिंता करते हुए श्री राम जी रणभूमि में खड़े थे, उतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने आ गया। यह देखकर अगस्त्य मुनि श्री राम चंद्र जी के पास गए और इस प्रकार बोले।।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ।।3।।
आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम् ।
जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम् ।।4।।

यह आदित्य हृदय स्तोत्र सभी के हृदय में बसने वाला है और सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला सिद्ध होता है। इसके जप करने से धैर्य, शक्ति और विजय की प्राप्ति होती है।

सर्वमङ्गल माङ्गल्यं सर्व पाप प्रणाशनम्।
चिन्ताशोक प्रशमनम् आयुर्वर्धन मुत्तमम् ।।5।।
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।।6।।

यह स्तोत्र सभी मंगलों में भी मंगल है और सभी पापों का नाश करता है। जो अनंत किरणों से अलंकृत (रश्मिमान) हैं, तुम उनसे प्रार्थना करो।

फलश्रुति

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्-नावशीदति राघव ।।25।।
पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ।।26।।

जो भी विपत्ति या कठिनाई में आदित्य हृदय स्तोत्र का kiंर्तन करता है, उसे कभी भी दुःख का सामना नहीं करना पड़ता।

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