गाँधी वध क्यों – नथूराम गोडसे (Gandhi Vadh Kyo) Book - Summary
गाँधी वध क्यों – नथूराम गोडसे (Gandhi Vadh Kyo) Book
गाँधी वध क्यों की कहानी देश के लिए एक बड़े विवाद का हिस्सा है। नथूराम गोडसे ने गांधी जी को गोली मारने का जो कारण बताया, वह खुद गांधी जी के विचारों और उनके द्वारा की गई नीतियों से संबंधित है। गोडसे ने कहा, “गांधी जी ने देश को छलकर देश के टुकड़े किए। क्योंकि ऐसा न्यायालय या कानून नहीं था, जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसलिए मैंने गांधी जी को गोली मारी। उनको दंड देने का केवल यही एक तरीका रह गया था। ‘भारत सरकार ने गांधी के अनशन के कारण पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपये न देने का अपना निर्णय बदल दिया। तब मुझे यह विश्वास हो गया कि गांधी जी की पाकिस्तान-परस्ती के आगे जनता के मत को कोई महत्त्व नहीं।”
गाँधी वध क्यों – मैंने गाँधी को क्यों मारा नथूराम गोडसे Book
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यहाँ कुछ महत्वपूर्ण विषय हैं जो इस पुस्तक में शामिल हैं:
- विभाजन के घाव
- निर्वासित और गांधी जी
- सरदार पटेल और ५५ करोड़
- गांधी – वध का पूर्वज्ञान और उदासीन नेतागण
- कश्मीर
- निवेदन पढ़ने से पूर्व
- नथूराम का निवेदन
- आरोपों की चर्चा और नथूराम का पूर्ववृत
- गांधी जी की राजनीति का क्षय दर्शन
- गांधी जी की राजनीति का क्षय दर्शन-2
- गांधी जी और स्वराज्य
- आदर्शवाद की विफलता (Frustration of Ideal)
- राष्ट्र विरोधी तुष्टीकरण की परिसीमा
- निवेदन का परिशिष्ट
- पाकिस्तान को शेष राशि देने का विषय
- समन्वय के सम्बन्ध में
- सद्भावना
- परिशिष्ट
- हिन्दू महासभा के लोकतंत्र विषयक प्रस्ताव
- नथुराम का माडखोलकर को पत्र
दिव्य सन्देश – नथूराम गोडसे
‘वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अन्त हो गया था, जब मैंने गांधी पर “गोली चलाई थी। उसके पश्चात् मैं मानो समाधि में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ। मैं मानता हूँ कि गांधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए, जिसके कारण मैं उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नहीं था।
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता हूँ। मैं यह भी नहीं चाहता हूँ कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करे।
अपने देश के प्रति भक्ति भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है। यदि वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य-पदं पर मेरा नम्र अधिकार है। मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य नीति की दृष्टि से पूर्णतया उचित है। मुझे इस बात में लेशमात्र भी सन्देह नहीं कि भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे।
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