वसुधैव कुटुम्बकम Sanskrit

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वसुधैव कुटुम्बकम Sanskrit

वसुधैव कुटुम्बकम् PDF सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। 5000 साल पुरानीभारतीय सभ्यता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की सर्वोत्कृष्टता है, भारत दुनिया के सभी चार प्रमुख धर्मों का घर है, विभिन्न मान्यताओं, विचारधाराओं, जातीयताओं, संस्कृतियों, भोजन की आदतों, पोशाक भावना, मूल्यों आदि का एक पिघलने वाला बर्तन है।

वसुधैव कुटुम्बकम की रचना आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा की गए थी। वसुधैव कुटुम्बकम वाक्यांश संस्कृत के तीन शब्दों, वसुधा (पृथ्वी/संसार), इव (जैसे) और कुटुम्बकम (बड़ा/विस्तारित परिवार) से बना है। पद्य का उल्लेख महा उपनिषद (VI. 72) में मिलता है; और आगे हितोपदेश और भारत के अन्य साहित्यिक कार्यों में इसका उल्लेख किया गया है।

वसुधैव कुटुम्बकम – Vasudhaiva Kutumbakam

(गीतिका) (सग्विणी वृत्तम्)

विश्ववन्धुत्व-मन्त्रं सदा गीयतां

विश्व कल्याण-भावं सदा धीयताम् ।

लोक-कल्याण-भावामृतं पीयतां

लोक-शोकाऽऽधि-तापावलिं क्षीयताम् ॥ विश्व०॥

स्वार्थमूल मतं दीन-सन्तापनं

शोक-मोहादि-मूलं मत नाशनम् ।

स्वार्थ एवास्ति लोकस्य संशोषक

क्लेश हेतुः सदा शान्ति-संरोधक ॥ विश्व०॥

द्वेष-बुद्धिः सदा ताप-सञ्चारिणी

स्वार्थबुद्धिः सदा शान्ति-संहारिणी ।

भेद-बुद्धिः सदा स्नेह-संहारिणी

लोभ-बुद्धिः सदा दुःख-संसारिणी ॥ विश्व०॥

विश्वशान्तेः समस्याऽस्ति घोराऽघुना,

राष्टसघं समाधातुकामं सदा ।

विश्वशान्तिं विना नास्ति लोके सुखं

नैव दु खाऽऽधि व्याधिश्च संहारणम् ॥ विश्व०॥

रागद्वेषावविश्वास-भावोदयो

देश-संशोषणं राष्ट्र संहारणम् ।

स्वाथसिद्धयैः परस्यापि संशोषणं

विश्वशान्तेस्तु संस्थापने रोधकम् ॥ विश्व०॥

विश्वबन्धुत्व-भावोदयं सौख्यदं,

विश्व-कल्याण भावं सदा मोददम् ।

विश्वबन्धुत्व-भावेन शान्ते सुधा

भ्रातृभावोदयं स्नेह-भावोद्गम् ॥ विश्व०॥

प्रेममूला सदा सम्पदं सौख्यदा

द्वेषमूला सदैवाऽऽपदो दुःखदा ।

द्वेषनाशो नृणां सौख्य-सञ्चारकं,

शान्ति-संस्थापको राष्ट्र-क्षेमावहम् ॥ विश्व०॥

वेद-शास्त्रेषु बन्धुत्व भावोद्गमः

सर्वधर्मेषु बन्धुत्व-भावाऽऽश्रयः ।

सार्वभौमा यमा शान्ति-संस्थापकाः

स्नेहदा सौख्यदा भ्रातृभावोदया ॥ विश्व०॥

यत्र जागर्ति बन्धुत्व-भावावलि

स्नेह-भावोदयो दीन-संरक्षणम् ।

ताप-नाशं क्षुधादेश्च संवारणं

तत्र शान्तिव्यवस्थोन्नतिं सम्पदः ॥ विश्व०॥

विश्वबन्धुत्व-मन्त्रं सदा श्रेयसे

विश्वबन्धुत्व शक्तिः सदा प्रेयसे ।

विश्वशान्त्यै समद्ध्यै सदा सम्पदे

विश्वबन्धुत्व-भावोद्गतिः सम्मुदे ॥ विश्व०॥

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वसुधैव कुटुम्बकम

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